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Pammy Rajan

Abstract

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Pammy Rajan

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जनाजा-एक अधूरी ख्वाइश की दासता

जनाजा-एक अधूरी ख्वाइश की दासता

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अभि भैया ! थोड़ा बड़े मस्जिद तक आ जाइये।बहुत जरूरी काम है ।"- अजहर ने फोन कर सुबह सुबह ही मुझे बड़े मस्जिद बुलाया। 

अजहर मेरे दोस्त का छोटा भाई है, जो पढाई के लिए दिल्ली में रह रहा था। अक्सर वो मेरे पास मिलने आता-जाता रहता था। लेकिन आज अचानक सुबह सुबह मस्जिद आने का क्यूं बोल रहा था ,ये मेरी समझ से परे था । मै थोड़ी देर में अपनी बाइक निकाली और बड़े मस्जिद के लिए निकल गया।

मस्जिद पहुँच कर जब मैने अजहर को फोन किया ।थोड़ी देर में अजहर अपने मौसेरे भाई रकीब के साथ आता हुआ दिखा ।वो मेरे पास आया और आते ही बोला- "भैया एक घटना हो गयी है। "

मै घबराते हुए पूछा-" क्या हुआ?"

वो भइया ,रकीब भाई यही पिछले कुछ सालों से रह रहा है। कुछ साल पहले वो घर छोड़ के भाग आया है। यही किसी बुटीक में काम भी करता है । इसने शादी भी कर ली थी । भाभी को बच्चा होने वाला था। डिलीवरी में कुछ समस्याए आई और वह बच नही सकी। 

-कहते हुए अजहर ने सारी बाते मुझे संक्षेप में बताई। ये सुन मै रकीब के मुताबिख होके पूछा - ऐसा कैसे हुआ? और तुम यहाँ कहा रह रहे थे। कभी मिले नही मुझे। भाभी के घरवाले कहा के है।

इतना सुनकर रकीब बिलखते हुए रोने लगा - भैया हम वो भाग के यही शादी करके रह रहे थे। वो हिन्दू लड़की है मैंने उसका नाम बदल कर इसी मस्जिद में निकाह पढ़वाई थी । लेकिन शायद खुदा को ये मंजूर न था । उसने काफी कोशिश की कि उसके घरवाले उसे पुनः स्वीकार कर ले। लेकिन वे उसे नही अपनाए । भइया उसने एक बार ख्वाइश की थी कि उसका अंतिम संस्कार हिन्दू रीती से ही हो । पर शायद मै उसकी ये इच्छा मै पूरी ना कर सकूंगा। क्यूंकि उसके घरवाले उसे बिलकुल भुला दिए है।- कहते हुए वो फफक पड़ा।

 मै उसके कंधे पर हाथ रखकर दिलाशा दिया और बोला- "होनी को कौन टाल सकता हूं ।हिम्मत रखो ।वैसे कहा कि लड़की थी। उसके घरवालों को अब तो इतला कर दो।"

थोड़ा सा नजर चुराते हुए वह बोला- भइया , अभी पंद्रह दिन पहले ही वो फोन पर अपने घर बात करने की कोशिश की। लेकिन वो लोग" रांग नंबर "कहकर फोन डिसकनेक्ट कर दिए। 

"अच्छा लाओ एक बार मैं भी फोन करके देखता हूँ। भाभी कहा कि थी।" - कहते हुए मै अपनी जेब में मोबाईल को टटोलने लगा।

"भइया ,वो आपके पड़ोस में एक रूचि नाम की लड़की थी न ,जो चार साल पहले भाग गई थी। उसे मैंने ही भगाया था।"- जब झिझकते हुए रकीब बताया तो मैं चौक-सा गया। 

मुझे अपने पड़ोस में रहने वाली उस पंद्रह साल की लड़की का गोरा सा चेहरा झलक गया। उस लड़की के भागने के बाद उसके पिता सदमे से काफी दिनों तक बीमार रहे ।फिर अंततः लोक-लज्जा ने उनकी मौत को बुला ही लिया। फिर बड़े भाई ने पिता के साथ ही बहन का भी अंतिम संस्कार कर दिया। वे उस बहन को क्या अपनाते जिसकी एक गलत कदम ने पूरे परिवार की नींव को बिखेर दिया था। 

मैने रकीब के कंधे पर हाथ रखकर कहा -" तुम अपने रिवाज के अनुसार अपनी पत्नी को अंतिम विदाई दे दो क्योंकि इसकी ये इच्छा दो साल पहले ही इसकी जिंदगी में ही पूरी हो गयी है। एकबार तुमलोग इस गलत कदम को उठाने के पहले सोचा तो होता । "

मेरे इस बात से रकीब के चहरे पर पछतावा साफ दिख रहा था।वो रूचि के जनाज़े की तैयारी में लग गया। न जाने क्यों मै भी उसे दफन करते वक्त अपनी आखो को गीली होने से रोक न पाया।

दोस्तों, ये कहानी एक सच्ची घटना पर लिखी है। किशोराव्स्था और युवाव्स्था जीवन का एक ऐसा दौड़ होता है जिसमे शरीर में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन के कारण नई नई इच्छाएं और भावनाए जन्म लेती है। और इसी भावनाओ के वश में आकर अक्सर बच्चे गलत कदम उठा लेते है। वो ये भी नही जानते कि उनका ये कदम न सिर्फ उनका भविष्य बल्कि उनके पूरे परिवार का कल भी बदल सकता है। 


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