ख्वाबों के सब्जबाग से सजा ससुरा
ख्वाबों के सब्जबाग से सजा ससुरा
नेहा की ख़ुशी तो छुपाए नहींं छुप रही थी। अरे भई क्यूँ न खुश हो अपनी नेहा ? इतने बड़े घर में रिश्ता जो तय हुआ था। और पति तो मत पूछो! हिंदी टेलीफिल्म का हीरो जैसा लग रहा था मंगनी के दिन। पल्लू के पीछे से नेहा ने कई बार नजर चुरा कर देखा था अपने होने वाले जीवनसाथी संदीप को। सारी रस्मोंं के बाद संदीप ने नेहा से अकेले में मिलने की इच्छा जताई।
शर्माती हुई दिल में धुक-धुकी लिए नेहा कमरे में गई। जहाँ पहले से ही संदीप नेहा का इंतजार कर रहा था। नेहा और संदीप कुछ देर तक चुप्पी के साथ एक-दूसरे को देखते रहे। फिर संदीप ने अपने साथ लाए एक छोटा सा तोहफा नेहा की तरफ बढ़ाते हुए बोला - "आपको मैं पसन्द तो हूँ ना? अगर नहींं हूँ तो वो भी कह दीजिए।" नेहा नजर झुकाए बैठी रही। ये देख संदीप बोला - "तुमसे बहुत उम्मीदें हैं, नेहा। मेरी उम्मीदे टूटने न देना।"
नेहा थोड़ी घबराते हुए नजर उठाई और संदीप को मुस्कुराते हुए गहरी नजरों से अपनी ओर देखता पाकर शर्म से लाल हो गयी। नजरों की इस मौन सहमति को देख संदीप ने नेहा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला- "आप मुझसे बात करना।"
नेहा सहमति में अपना सर हिला दी और मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर निकल गई। दिल में बल्लियां उछल रहीं थी।
शादी की डेट, दो महीने बाद की निकली। संदीप ने मंगनी में नेहा को मोबाईल फोन गिफ्ट किया था। सगाई और शादी के बीच दोनों एक दूसरे से फोन पर घंटो बातें करने लगे। बातों में प्यार और कसमे वादे होते रहते। नेहा संदीप की बात सुन ख्याली ख्वाब सजाते रहती। कई बार सहेलियां उसकी ख्याली बातें सुन कहती भी थी कि इतने ख्वाबों से सब्जबाग न लगाओ। क्यूंकि ससुराल हकीकत का आईना होता है।
लेकिन नेहा तो अपने ख्वाबों के महल से बाहर आना ही छोड़ दी थी। संदीप के अनुसार,उसकी सास बिलकुल ममतामयी मूरत, ससुर समझदारी का पुतला ,भाई-बहन बिलकुल दोस्तों के जैसे लगते थे ।भाभियां हर काम में मदद करने वाली ।और घर तो महल था ,जहाँ उसे कोई दिक्कत ही ना होगा।
फिर वो दिन भी आ गया जब नेहा दुल्हनिया बनी संदीप के साथ शादी करके उसके घर आ गई।गृहप्रवेश के रस्म में संदीप ने नेहा को गोद में उठा लिया। प्यार और सिर्फ प्यार के आगोश में नेहा शर्माती हुई घर में प्रवेश की । फिर शुरू हुआ रस्मों का दौर ,जो एक आध घंटे तक चला।इन रस्मों के बीच ही ननद रानी और भाभियां हँसी -फुहारों के साथ नेहा ये जता दी की हमेशा पिया जी के गोद मे ही रहने की कल्पना नहींं करे।
थोड़ी देर बाद एक छोटे से स्टोरनुमा घर में नेहा को बैठने को बोल सासु माँ मेहमानों की विदाई में लग गयी । नेहा शादी की थकान के कारण उसी कमरे में सो गई । शाम तक नींद खुली ।तो देखा घर में बिलकुल शांति है। अपने शादी के लहँगे को सम्हालते हुए नेहा कमरे से बाहर निकली ।देखा सारे लोग इधर उधर सोए हुए हैं।उसके पायलों की झम झम सुन सासु माँ आई और बोली- बहु तुम सो गई थी, इसलिए तुम्हे जगाया नहीं। जाओ शाम की रस्मों के लिए तैयार हो जाओ।आज ही तुम्हारी रसोई की रस्म भी है ।
नेहा की भूख भी लग गयी थी लेकिन रसोई की रस्म का नाम सुनकर उसकी हालत खराब हो गयी । क्यूंकि नेहा को इतनी थकान के बाद रसोई में जाकर कुछ बनने की बिलकुल इच्छा नहीं हो रही थी ।और साथ ही रस्मों का नाम से वापस तैयार होने का सोचकर उसे तो चक्कर आने लगा।
लेकिन क्या करती फिर तैयार होने लगी। इधर सुबह से कुछ खाई भी ना थी, इसलिए उसे भूख भी लग गयी थी। पर किससे कहती, पतिदेव भी न जाने इस ससुराल की भीड़ में कहा खो गए थे। जो शादी से पहले न जाने कितने ख्वाब दिखाये थे। शाम को तैयार होकर नेहा रसोई की तरफ चल पड़ी, पर ये क्या? तभी सासु माँ आई और माथे पर पल्ला चढ़ा दी और बोली- "बहु सबके सामने ऐसे नहींं आना।"
गर्मी से बेहाल नेहा कभी पल्ला संभालती तो कभी रसोई के काम को। बीच बीच में सासु माँ का इंस्ट्रक्शन भी चल रहा था। ननद एक बार आई भी तो हेल्प कराने के बजाय नेहा के बनाए खाने को चख कर सुधार करने को बोल कर चली गयी।
थकान और भूख से बेहाल नेहा इधर सम्हालती तो कभी उधर। आखो में आंसू भी आ जाते उसे अपनी दुर्दशा पर। रसोई की रस्म के बाद ससुर जी के जब वो पैर छूकर आशीर्वाद ली तो वो जेब से निकले पैसे वापस जेब में रख कर बोले- "असली आशीर्वाद तो खाना चखने के बाद ही दूंगा।" जो आशीर्वाद उन्होंने दिया ही नहीं। नेहा शर्मिंदगी से सोचते रह गई " क्या सच में ये ससुर जी समझदारी है "?
काम के बीच ना किसी की मदद मिली ना एक बार भी किसी ने खाने को पूछा - आज उसे पति के द्वारा बताए गए उनके माँ और बहनों की ममत्व की व्यख्या कर रहा था। आज नेहा को अपनी सहेलियों की कही बात समझ में आने लगी कि शादी के पहले ससुराल एक ख्वाबों का सब्जबाग ही होता है।जो पति के द्वारा दिखाया जाता है। अभी आगे और भी ख्वाब टूटने बाकी थे जिनकी तैयारी नेहा ने अब शुरू कर दी थी।
दोस्तों, अक्सर लड़कियों की अपने भावी जीवन से कई अपेक्षाएं होती हैं, लेकिन जरूरी नहींं कि हर अपेक्षाएं पूरी ही हों। इसके लिए उन्हें पहले से तैयार रहना चाहिए।