STORYMIRROR

Pammy Rajan

Abstract

3  

Pammy Rajan

Abstract

तमाशा -बाढ़ का

तमाशा -बाढ़ का

2 mins
270

अरे रमुआ उठ भी ! तेरे को सहारा म्युनिसिपिलटी कई बार बुलावा आ चूका है। दो दिन से शहर में बारिश छूटी ही न है, पूरे मुहल्ले में पानी भर गया है । "- कमला बाई अपने बेटे को झकझोरते हुए जगाई।

"छोड़ ना माई सोने दे ।" - रमुआ अलसाते हुए बोला। 

"लेकिन बेटा मुहल्ले में पानी भर गया है । शायद कही जाम-वाम हो ,एक बार जाकर देख तो ले। "- कमला बाई ने बेटे से कहा।

"भरने दो पानी ! ताकि सबको पता तो चले पानी में रहने का मजा।" - रमुआ ने अपने खाट के नीचे बहते नाले के तरफ देखते हुए बोला।

कमला को कुछ याद आया और वो चुप हो गयी।

रमुआ मुहल्ले का सफाईकर्मचारी था । उसकी माँ घरों में झाड़ू- पोछा करती थी। बाप नशेड़ी था । जो अब बीमारी के कारण बिस्तर पर पड़ा है। रमुआ का एक छोटा भाई भी था ,जो पिछले साल ही डेंगू के कारण मर गया था। बस्ती के हर घर में ऐसी बीमारियों से हर साल कोई न कोई मरता रहता था। 

पिछले साल बारिस शुरू होने के पहले रमुआ ने म्युनिसिपिलटी ऑफिस में काफी काफी गुहार लगाई थी की बस्ती से गुजरने वाले नाला का रास्ता बदलने की या उसकी सफाई करवाने की । और साथ ही बस्ती में भी हमेशा दवाई का छिड़काव करवाने की। 

लेकिन वो अपनी दरख्वास्त लेकर इस टेबल से उस टेबल घूमता रहा ।जब इससे काम नहीं बना तो फिर इस साहब से उस साहब के पास चक्कर काटता रहा । लेकिन बाद में "बजट ज्यादा हो जाएंगा " कह कर उसकी दरख्वास्त को म्युनिसिपिलटी वालो ने अस्वीकृत कर दिया ।

साथ में, एक साहब ने तो ये भी कह दिए की - "बस्ती वालो का क्या ,वो पैदा ही होते है ऐसा जीवन जीने के लिए।"

रमुआ खून का घुट पी कर रह गया। और फिर बारिश के बाद फैलने वाले डेंगू बीमारी ने उसी साल उसके छोटे भाई की जान ले ली। 

कई दिनों तक रमुआ को कुछ सुध न थी। लेकिन पापी पेट का सवाल था । फिर से काम पर जाने लगा। इस साल दो दिन की बारिश ने ही पूरे शहर को नाला बना दिया था। म्युनिसिपिलटी ऑफिस से कई बार बुलावा आ चुका था रमुआ को । लेकिन रमुआ अभी भी चुपचाप बैठा तमाशा देख रहा था।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract