निर्माण नियति का!

निर्माण नियति का!

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"कोई जरूरत नहीं अब ज्यादा रस्मे रिवाज निभाने की।सारे काम करवाओ उससे और विदाई भी नहींं करनी अब तो हमें। देखते कैसे इसके पीहर वाले यहाँ आते है ।"

सहमी सकुचाई सी नीलू अपने ससुराल के कमरे में बैठी थी। बाहर ससुर जी के चिल्लाने की आवाज लगातार कमरे में आ रही थी।सभी उसके मायके वालों पर काफी गुस्सा थे। कल ही तो शादी हुई उसकी। रिश्ते के चाचा जी शराब के नशे में उसके ससुराल वालो के संग हाथा-पाई पर आमादा हो गए थे। बारात वापस आने की नौबत आ गयी थी।वो तो नीलू के पापा ने काफी हाथ-पाव जोड़े तो विवाह सम्प्पन हुआ। लेकिन सारे बाराती गुस्से में थे।

नीलू की माँ ने विदाई में रोने से ज्यादा समय नीलू को ये समझाने में लगा दिए की "बेटी अब इस घर की लाज तुम्हारे हाथ में है ।अपनी तरफ से ससुरालियों को कोई मौका न देना शिकायत का ।"

कमरे में बैठी नीलू को ससुर जी और सबकी बाते सुनकर जी हल्क में आ रहा था पर दिल विद्रोह भी कर रहा था क्यूँ सहे वो ये ताना,जब उसके मायके वालों और उसकी गलती न है तो।लेकिन तभी माँ की बाते याद आ जाती और दिल का गुबार आखो के आँसू के माध्यम से निकलने लगता।

रस्में भी अब समाप्त हो चुकी थीं और पति से मिलने की बेला भी आ गई।पति ने अपना प्रेम तो बखूबी निभाया पर परिवार के सामने कुछ ना बोलने की हिदायत भी साथ में दे दी। पति के इस व्यवहार से नीलू के दिल में कही कुछ टूट सा गया था।

 

शादी में आए मेहमान भी अब धीरे-धीरे चले गए। सासु माँ नीलू को घर के तौर-तरीके समझाने लगी।लेकिन नीलू के चेहरे पर एक उदासी हमेशा छाई रहती थी। उसके उदास से चेहरे को देखकर सासु माँ अब पिघलने लगी थी। शादी के चार माह हो गए थे ।सबके दिलों में उसके मायके वालों के प्रति गुस्सा ज्यूँ का त्यूं था। कई बार नीलू के मायके वाले नीलू से मिलने आये पर ससुर जी उन्हें बाहर से ही वापस कर दिए।

 यूं तो नीलू अपनी तरफ से शिकायत का कोई भी मौका नहीं दे रही थी।लेकिन नीलू के चेहरे पर फैली उदासी को सासु माँ से छुपी नहीं थी थी । इन्ही सबके बीच उसके गर्भ में हलचल सी मचने लगी। नीलू ने माँ बनने की खबर सुनाई । बच्चे की आने की आहट ने सबके गुस्से को थोड़ा नरम कर दिया था। 

एक दिन मौका देख नीलू सासु माँ से मायके जाने की बात कही । पहले तो सासु माँ थोड़ा ना नुकड़ की फिर बहु के उदास चेहरे पर खुशी की रंगत देखने के लिए ससुर जी से इसबारे में बात की। अब तक बात काफी सम्हल चुकी थी । नीलू को आखिरकार मात्र दो दिनों के लिए मायके जाने की इजाजत मिल गई।

नीलू मायके के देहरी पर माँ के गले लग के घंटो रोती रही।माँ भी अपनी बिटिया को पूरे छह माह बाद देख रही थी । "ना रो बेटी ये ही जगत की रीत है ।" माँ का ये दिलासा भी नीलू की कान में गूँजते रहा था।

"माँ,काफी मुश्किल है उस घर में रहना। उस घर में औरतों की कोई इज्जत नहीं।सिर्फ खाना बनाना और रात गये अपने पति को खुश करना ,बस यही औरतों की भूमिका है । माँ सच कहूं तो उस घर में मै अपने लिए जीना ही छोड़ दी हूँ । आपने क्लास की टॉपर स्टूडेंट हूँ ,ये बात तो मैं न जाने कब की भूल गई हूँ।मेरे सपनों का क्या होगा माँ! मेरी पढाई लिखाई सब बर्बाद हो गई। माँ मुझे कुछ दिनों के लिए अपने पास और रोक लो । ताकि मै अपने सपने को पंख दे पाऊँ, जो आप सब मेरे लिए देखते थे। "- नीलू माँ की खुशामद करते हुए बोली। 

"ना बेटी अब वो ही तेरा घर है, इतनी मुश्किल से तो बात सम्हली है। तेरे ससुराल वाले बमुश्किल माने है। अब तू अपनी पढ़ाई, नौकरी और सपनों के लिए फिर से ससुराल वालो को गुस्सा न दिला। "- नीलू की माँ सहमते हुए नीलू को समझाई ।

माँ की ऐसी बाते सुन नीलू का दिल एकबार फिर टूट गया।उसे समझ आ गया कि अब मायके में भी उसके सपनों को पूरा करने में उसका साथ कोई न देगा । नीलू दो दिन मायके में रहने के बाद अपने सारे डॉक्युमेंट्स लेकर सासुराल चली आई।

अब तक मायके से साथ का आस था।पर अब वो आस न रह गया।नीलू अब दिल ही दिल खुद को कड़ा बनाने का प्रयास करने लगी। अब ससुराल में ही कुछ फुर्सत के पल चुरा कर अपने स्वाध्याय को देने की कोशिश करने लगी। ठीक समय पर उसने एक बेटे को जन्म दिया। लेकिन बच्चे के जन्म के साथ ही जिम्मेदारियां भी बढ़ गई ।वो पढ़ना और अपने सपनों को भी भूलने लगी। बेटा चार साल का हो गया। वो स्कूल जाने लगा था। अपनी टूटी फूटी बातों से सबका दिल मोहने लगा । लेकिन उसकी शब्दो में स्पष्टता नहींं आ रही थी ।बार बार बच्चे के स्कूल से ये बात उसको बोली जा रही थी । नीलू को भी अपने बच्चे की जबान की लड़खड़ाहत समझ में आने लगी ।वो पति से बच्चे को दिखाने की जिद की । फिर दोनों बच्चे को बड़े शहर में दिखाने लाए। डॉक्टर ने सारे चेकअप के बाद उसे कुछ दिनों तक स्पीच थेरेपी करवाने की सलाह दे दी ।गांव में ऐसी कोई सुविधा न थी। लेकिन बेटे के सुरक्षित भविष्य के लिए ये जरूरी था। उन्होंने शहर में रह कर ही बच्चे को थेरेपी दिलवाने का निश्चय किया ।लेकिन ससुर जी और पति ने जब ये बात सुनी तो वे विरोध करते हुए बोले- "क्या जरूरत है शहर में अकेले रहने की ।बच्चा धीरे धीरे बोलना सीख जाएगा। "

लेकिन ससुर जी की बात सुन नीलू बेचैन हो गईं।वो सासु माँ से बोली - "माँ जी ,इस घर में किसी ने मेरा कभी साथ नहींं दिया ।पर अपने थोड़ा-बहुत मुझे सपोर्ट किया ।आपका सपोर्ट ही था कि मैं अपने मायके जा पाई थी । माँ जी, ये मेरे बच्चे के भविष्य की बात है।आप ही पापा जी और इनको समझाइए ।ये थेरेपी मेरे बच्चे के लिए जरूरी है ।"

बहु की आखो में आंसू और दृढ निश्चय देखकर सासु माँ ससुर जी को समझाते हुए बोली- "देखो जी,ऐसा न है कि अपनी बहु अनपढ़ है।वो शहर में अकेली रह लेगी।उसे कुछ दिनों के लिए उसे शहर जाने दे। "काफी हील हुज्जत के बाद नीलू शहर आ गई।

बेटे को थेरेपी क्लास में डाल दी । उस स्कूल में बच्चे के साथ पेरेंट्स को भी थेरेपी की ट्रेंनिग दी जा रही थी । स्कूल के प्रिंसिपल ने नीलू को भी ये सीखने की सलाह दे दी । नीलू ने इस बात को अवसर की तरह देखी और अपनी माँ और सासु माँ से अनुमति और आर्थिक मदद लेकर ट्रेंनिग क्लास ज्वाइन कर ली।दो साल पंख लगा कर गुजर गए। नीलू की ट्रेंनिग कंप्लीट हो गई और वो उसी स्कूल में जॉब करने लगी थी। उसका बेटा भी नार्मल स्कूल जाने लगा । नीलू अब आर्थिक रूप से स्वालंबी हो गयी थी ।जीवन के कुछ सालों के अथक संघर्ष के बाद वो अपने बेटे के साथ जीवन के सुखद मोड़ पर थी। वो बेटे की पढ़ाई के साथ खुद के लिए भी जीने लगी। अपने सपनों का रूप दे कर अपने सपनों जी रही थी।

आज सुबह ही गांव से सासु माँ ने फोन किया - " बहु मै और तेरे पापा जी कुछ दिनों के लिए तीर्थ यात्रा के लिए जाना चाहती हूँ। तू ही हमें लेकर चलना ।"

डरी सहमी वो नीलू आज आत्मविश्वास से लरजेब महिला बन गयी थी । उसका ये आत्मविश्वास ही था कि अब ससुर जी और पति भी उसका सम्मान करने लगे थे। आज माँ को भी अपनी बेटी पर गर्व हो रहा था ।

दोस्तों, एक बेटी, पत्नी , बहू और माँ होने के बाद औरते जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे सी जाती है। कई परिस्थियां ऐसी आती है जब महिलाएं अपने सपनों को खो देती है ।इस कहानी की नायिका नीलू ने तो जीवन के हर मोड़ पर विपरीत परिस्थियां ही पाई । नीलू ने एक मजूबत स्त्री , बहू ,बेटी और सबसे बड़ी बात वो अपने बेटे के सामने एक मजबूत माँ के किरदार को जिन्दा किया । उसने अपने सपनों को ना सिर्फ जिया बल्कि उसे पूरा भी किया और परिवार और समाज में अपना मान सम्मान भी पाया। सपनों को देखने का हौसला कभी ना छोड़े क्यूंकि अगर सपने दिल में जब्ज होते है और उन्हें थोड़ा - सा भी सहारा भी मिलता है तो उसे सच होने से कोई नहीं रोक सकता। 


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