वो बेपरवाह सा लड़का
वो बेपरवाह सा लड़का
अर्चू का सिड से मिलना और बिछड़ना एक ऐसा खेल था जिसे वो समझ कर भी न समझ सकी।अजीब इंसान था जब दो साल पहले वो उसे मिला था तो वो उसे देखती ही रह गई थी। टॉल, हैंडसम और डार्क यही तो क्रेटेरिआ ढूँढती रही थी न वो लड़को में लेकिन लड़को ने उसे प्रेम के जाल में फंसाया, यूज किया और थ्रो भी कर दिया था। कॉलेज के अंतिम साल तक आते-आते वो लड़को की मोहब्बत की असलियत को समझ चुकी थी सारे टॉल, हैंडसम और डार्क दगाबाज़ थे, लड़कियां उनके लिए एक खिलौना मात्र थी; एक खिलोने से बोर होते ही वो दूसरे खिलोने की तलाश में लग जाते थे।
इंग्लिश लिट्रेचर से एम ए करना अर्चू का कोई शौंक नहीं था बल्कि मजबूरी थी; उसके पिता की जिद्द थी इंग्लिश लिट्रेचर से एम ए कर वो पी एच डी करे और किसी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बने।
कॉलेज में इंग्लिश लिट्रेचर का सिर्फ एक सैक्शन ही बना क्योकि स्टूडेंट कम थे २० लड़किया और आठ लड़के।सिड उसे एच ओ डी विराट सर के ऑफिस में पहली बार दिखा था, विराट सर एक ऐसे टीचर थे जिनके लिए इंग्लिश लिट्रेचर एक साधना थी कई यूनिवर्सिटी में वो पी एच डी स्कालर्स का वाय वा लेने जाते रहते थे इसलिए उनके जूनियर प्रोफेसर ही क्लास लिया करते थे। लेकिन उनकी एक आदत थी वो क्लास के हर स्टुडेंट का उसके एडमीशन के बाद कस कर वाय वा जैसा ही इंटरव्यू लेते और कोई सलाह देकर उसे जाने देते। हर स्टूडेंट को बाय नेम बाय फेस याद रखते और वो स्टूडेंट पढाई के अलावा किसी और एक्टिविटी में इन्वॉल्व मिलता तो उसका एग्जाम में बैठना मुश्किल हो जाता था। यह सच्चाई सब जानते थे इसलिए सब पहले साल में ही पढ़ाई के अलावा हर एक्टिविटी से किनारा कर लेते थे।
'स्टूडेंट्स इफ यू आर इंटरेस्टेड इन स्पोर्ट्स दैन टेक एडमीशन इन फिजिकल एजुकेशन; इंग्लिश लिट्रेचर इज नॉट योर कप ऑफ़ टी।'
यह उनका फेमस तकिया कलाम था।
उनकी क्लास में कोई हिंदी में बोल पड़ा तो उसे एक लंबा लेक्चर सुनना पड़ता, 'हिंदी इज योर मदर टंग, रेस्पेक्ट इट बट नाउ यू आर एक्सपेक्टेड तो बी फ़्लूएंट इन इंग्लिश; सो नो हिंदी इन माय क्लास।'
सिड अपवाद था जो सिड उसे एच ओ डी विराट सर के ऑफिस में फ्लुएंट इंग्लिश बोलता दिखा था वो दूसरे प्रोफेसर्स की क्लास की तरह विराट सर की क्लास में हिंदी बोल पड़ता था लेकिन न जाने क्या जादू था उसकी बात में उसकी हिंदी में कही बात को भी विराट सर गौर से सुनते और उसे डांटते नहीं थे।
ऐसा लगता था फर्स्ट ईयर में जो भी लिट्रेचर का सेलेबस था उसे सिड रटे हुए था, क्लास के सारे लड़के लड़कियाँ उसके नोट्स लेने के लिए उसके आगे पीछे रहते थे।
उसे भी अपने नोट्स शेयर करने में कोई दिक्कत नहीं होती थी। क्लास की एक चालाक सी लड़की अदिति जो स्कूल में हमेशा अपनी क्लास की मॉनिटर रही थी उसने क्लास का एक व्हाट्सप्प ग्रुप बना लिया था और हर स्टूडेंट्स को उस ग्रुप से जोड़ भी दिया था।
कॉलेज में क्लास मॉनिटर का कोई कंसेप्ट नहीं होता लेकिन अदिति को पूरी क्लास ने मॉनिटर का दर्जा दे दिया था और वो इस दर्जे को पाकर बहुत खुश रहती थी।
सिड उस ग्रुप में था लेकिन न कभी किसी डिस्कसन में भाग लेता न ही कोई मैसेज करता, बाकि स्टूडेंट्स को अपनी स्टडी में उसकी मदद लेनी होती थी इसलिए सब उसकी ख़ामोशी के बाद भी उसके पीछे-पीछे रहते थे।
अर्चू के लिए सिड एक ऐसा स्टूडेंट था जो क्लास में सबसे अलग था, खामोश, अपने आप में व्यस्त न उसे किसी लड़की से वास्ता था न ही कोई लड़का उसका फ्रेंड ही था। पता नहीं मन ही मन अर्चू को वो क्यों अच्छा लगने लगा था, अर्चू उससे बातें करना चाह
ती थी और प्रेम भी करना चाहती थी।
फिर धोखा खाना चाहती है लड़की
उसका अंतर्मन उसे चेतावनी देता रहता था।
पहला साल गुजरा और १४ फरवरी को वो हुआ जो अर्चू के लिए सब कुछ बदल गया।
उसके फोन पर एक व्हाट्सप्प कॉल आई; नंबर अजनबी था, अर्चू ने काल कनेक्ट की दूसरी तरफ से आवाज़ आई, 'अदिति सिद्धार्थ बोल रहा हूँ, विराट सर का फोन नहीं लग रहा है, आज मैं उनकी क्लास अटैंड नहीं कर सकूँगा प्लीज उनसे कह देना।'
अर्चू मंत्र मुग्ध सी सिड की आवाज सुनती रही और बोली, 'सिड सर मैं अर्चना हूँ आपने अदिति की बजाय मुझे फोन कर दिया है।'
कुछ देर ख़ामोशी रही उसके बाद फिर सिड की आवाज आई, 'ओह अर्चना आप, गलती से आपको कॉल कर दिया। प्लीज आप विराट सर से कह देन……..'
'गलती से ही सही सिद्धार्थ सर आपने कॉल तो की, कह दूँगी मैं विराट सर से।' पता नहीं किस धुन में बोलती चली गई थी अर्चू।
'थैंक्यू अर्चना जी।' कह कर सिड ने फोन काट दिया था।
उस दिन के बाद सब बदल गया अगले दिन सिड ने पहली बार अर्चना से बात की और गलती से कॉल करने के लिए माफ़ी मांगी।
अब सिड अक्सर अर्चू से बाते करने लगा था, जल्दी ही दोनों ने एक दूसरे के फोन नंबर लिए और व्हाट्सप्प मैसेज्स और कॉल का अनवरत सिलसिला शुरू हुआ। पहला गिफ्ट अर्चू ने ही दिया उसके बाद सिड अक्सर उसे गिफ्ट देने लगा।
बातो ही बातो में एक दूसरे के परिवारों, पसंद, नापसंद की जानकारी साझा की गई।
'आय लव यू' जैसे मैजिकल वर्ड्स कभी न कहे गए लेकिन प्रेम तो था ही जिसे जाहिर करने के लिए किसी शब्द की आवश्यकता शायद नहीं थी।लेकिन सिड कभी उनके रिश्ते के भविष्य के बारे में बात नहीं करता था ये अर्चू के लिए अजीब था एक दिन अर्चू ने पूछ ही लिया, 'सिड सेकड़ ईयर खत्म हो रहा है क्या फाइनल एग्जाम के बाद भी मिलोगे मुझसे?'
'हाँ अर्चू, क्यों नहीं मिलूँगा?' सिड ने संक्षिप्त सा जवाब दिया था।
'सिड ये तो बता दो इस रिश्ते का अंजाम क्या है?' अर्चू ने पूछा था।
'अर्चू रिश्ते सच्चाई के धरातल की कसौटी पर कसे जाते है, अगर मैं जिंदगी में कुछ कर सका तो मेरे लिए इस रिश्ते के मायने भी होंगे लेकिन यदि कुछ न कर सका तो क्या मैं तुम्हारे परिवार से तुम्हारा हाथ मांग सकूँगा?' सिड ने जवाब दिया था।
यह एक कड़वा सच था अर्चू के पिता अपनी सामाजिक स्थिति को देखते हुए उसका हाथ कभी भी विजातीय बेरोजगार लड़के को बिलकुल नहीं देंगे बल्कि पैसे के दम पर उसके लिए हर तरिके से योग्य वर तलाश कर उसके साथ अर्चू का विवाह करना पसंद करेंगे।
अर्चू चुप रह गई। इसके बाद दोनों के बीच एक सन्नाटा सा पसर गया था जिसे न तो अर्चू ने तोड़ने की कोशिश की और न सिड ने। कभी कभी किसी त्यौहार पर एक दूसरे को मैसेज करना एक फॉर्मैलिटी ही रह गई थी।
अंतिम वर्ष की क्लासेज खत्म हुई, एग्जाम हुए फेयरवेल पार्टी हुई और सब हमेशा के लिए एक दूसरे से बिछड़ गए।
सिड दुनिया की भीड़ में खो चुका था, उसका फोन नम्बर बदल चुका था। अर्चू नेट जे आर ऍफ़ क्लियर कर चुकी थी पी एच डी में एडमिसन ले कर उसी में व्यस्त रहती थी। पिता हमेशा शादी के लिए काबिल लड़को को लाते रहते थे लेकिन अर्चू को जिस चेहरे की तलाश रहती थी वो उसे कभी न मिल सका। ये कैसा ब्रेकअप था जो कभी टूट ही न सका, क्या सिड उससे वास्तव में प्रेम करता था या वो बी उन लड़को में से ही था जिनके लिए लड़की एक खिलौना थी, वो लड़की के साथ खेलकर बेशर्मी के साथ ब्रेकअप करते थे लेकिन ब्रेकअप तो सिड ने भी किया ही था बस उसका ब्रेकअप का तरीका सभ्य था।