भावना कुकरेती

Abstract Romance Fantasy

4.0  

भावना कुकरेती

Abstract Romance Fantasy

वो और मैं - 6

वो और मैं - 6

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वो-तुमने क्या और क्यों लिखा, तुम्हें इससे कोई 

मतलब नहीं रहता न ?

मैं-हां सही कहा, मेरे लिए ये तो बस मेरे ये अफसाने ,लफ्जों के जंगल मे नाचते मोर जैसे हैं। 

वो-फिर भी लोग तो पढते ही हैं न इन्हें।

मैं-हां, शायद 'कुछ' मिलता होगा उन्हें ...खोया हुआ!

वो- मेरा तो कुछ भी नहीं खोया?

मैं-तुम पढ़ते कहाँ हो, तुम तो 'कुछ मिले' ये खोजते हो।

वो- ...और वो तुमने अभी तक लिखा भी नहीं।

मैं- हहह क्या पता कभी तुम्हें लगें की लिख दिया।

वो-वॉव, कब?

मैं-जिस दिन तुम कुछ खो दोगे।

वो-उफ्फ़ बीsssss!

मै-सॉरी ।


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