वो और मैं - 6
वो और मैं - 6
वो-तुमने क्या और क्यों लिखा, तुम्हें इससे कोई
मतलब नहीं रहता न ?
मैं-हां सही कहा, मेरे लिए ये तो बस मेरे ये अफसाने ,लफ्जों के जंगल मे नाचते मोर जैसे हैं।
वो-फिर भी लोग तो पढते ही हैं न इन्हें।
मैं-हां, शायद 'कुछ' मिलता होगा उन्हें ...खोया हुआ!
वो- मेरा तो कुछ भी नहीं खोया?
मैं-तुम पढ़ते कहाँ हो, तुम तो 'कुछ मिले' ये खोजते हो।
वो- ...और वो तुमने अभी तक लिखा भी नहीं।
मैं- हहह क्या पता कभी तुम्हें लगें की लिख दिया।
वो-वॉव, कब?
मैं-जिस दिन तुम कुछ खो दोगे।
वो-उफ्फ़ बीsssss!
मै-सॉरी ।