भावना कुकरेती

Abstract Romance fantasy

3.5  

भावना कुकरेती

Abstract Romance fantasy

वो और मैं - 2

वो और मैं - 2

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मैं-दरख्तों के नीचे ..कई बार बैठे होगे न!

वो-बैठना? बी ,मैं तेज दुपहरी में वहीं खाट डाल सोता हूँ।

मैं-...उसकी मोटी काली ऊबड़खाबड़ सी छाल को महसूस किया है?

वो-क्या मतलब? 

मैं-अच्छा कभी जड़ो के पास की मिट्टी को छू कर महसूस किया है?

वो-आज कैसी बहकी बहकी बातें कर रही हो।

मैं-न न ..पहले मेरी बात का जवाब दो।

वो-ओके डियर ,तुम्हारा हुक्म सर आंखों पर ,इश्क है तो ...

मैं-होता रहे ...तुम ये बताओ कभी शाखों पर रेंगती चींटियों का चलना महसूस किया है,

वो-होता रहे...?! ख़ैर छोड़ो..तुम्हारे ये सवाल...मै ये फालतू के काम नहीं करता।

मैं- नहीं करता?!!! तो रहने दो तुम्हें किसी से इश्क हो ही नहीं सकता।


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