वो और मैं - 2
वो और मैं - 2
मैं-दरख्तों के नीचे ..कई बार बैठे होगे न!
वो-बैठना? बी ,मैं तेज दुपहरी में वहीं खाट डाल सोता हूँ।
मैं-...उसकी मोटी काली ऊबड़खाबड़ सी छाल को महसूस किया है?
वो-क्या मतलब?
मैं-अच्छा कभी जड़ो के पास की मिट्टी को छू कर महसूस किया है?
वो-आज कैसी बहकी बहकी बातें कर रही हो।
मैं-न न ..पहले मेरी बात का जवाब दो।
वो-ओके डियर ,तुम्हारा हुक्म सर आंखों पर ,इश्क है तो ...
मैं-होता रहे ...तुम ये बताओ कभी शाखों पर रेंगती चींटियों का चलना महसूस किया है,
वो-होता रहे...?! ख़ैर छोड़ो..तुम्हारे ये सवाल...मै ये फालतू के काम नहीं करता।
मैं- नहीं करता?!!! तो रहने दो तुम्हें किसी से इश्क हो ही नहीं सकता।