वो अच्छी लडक़ी
वो अच्छी लडक़ी
"अरे यार घर में कैश कितना है ?मितेश को 5000 /- चाहिये। " "टेंशन मत लो ,घर में 10000 /- कैश है ,ATM से निकाल लेंगे। "रितिका ने गिरीश को 5000 /- देते हुए कहा।
रितिका मितेश की पत्नी शुभा के बारे में सोचने से अपने आप को रोक नहीं सकी। कोई महिला इतनी भी क्रूर कैसे हो सकती है ,जो अपने पति को पाई पाई का मोहताज़ बना दे। जबकि मितेश ,जो कि दूर के रिश्ते में उसका देवर है ,लेकिन हमउम्र और हमपेशा होने के कारण उसके पति गिरीश काअच्छा दोस्त भी है। मितेश एक सफल सर्जन होने के साथ साथ एक समझदार और सुलझा हुआ इंसान भी है।
लेकिन हर समझदार इंसान को जीवन साथी भी समझदार मिले ,जरूरी नहीं। शुभा जैसी नकचढ़ी ,पैसे वाले बाप की इकलौती औलाद ,घमंड में अमचूर से ,जैसा कि मितेश और उसके घरवालों ने शुभा के बारे में रितिका को बताया था ,सुलझे हुए व्यवहार की उम्मीद करना व्यर्थ ही था।
मितेश के सारे क्रेडिट कार्ड्स ,डेबिट कार्ड्स ,चेक बुक सभी शुभा अपने पास रखती थी। मितेश बता रहा था कि ,"उसे हर एक खर्च का हिसाब शुभा को देना होता है। यदि गलती से भी वह एक पैसा भी अपने मां बाप या भाई बहिन पर खर्च कर दे तो शुभा पूरा घर सर पर उठा लेती है।"
रितिका भी शुभा से एक-दो बार मिली थी ,लेकिन उसे शुभा हमेशा एक सामान्य लड़की ही लगी थी। उसने गिरीश को बोला भी कि मुझे तो शुभा एक अच्छी और समझदार लड़की ही लगती है। गिरीश के विचार में हाथी के दांत दिखाने के कुछ और खाने के कुछ और ही होते हैं।
रितिका की सासु माँ का भी यही कहना था कि,शुभा के पास तो जाकर कोई रुक भी नहीं सकता। उसे ससुराल के लोग घर पर फूटी आँख नहीं सुहाते। कोई आ जाए तो खाना तो दूर की बात है,चाय पानी तक नहीं पहुँचती। बेचारा कोई रात को रुक जाए तो ,खुद सबसे पहले अपने कमरे में जाकर सो जाती है। आने वाला खुद या बेचारा मितेश हॉस्पिटल से आने के बाद व्यवस्था करता है।
रितिका ने महसूस किया कि जहाँ पर भी बहुओं की बात चलती ,वहां शुभा पुराण जरूर शुरू हो जाता। रितिका ने भी सबकी सुनी सुनाई बातों के आधार पर शुभा की एक छवि गढ़ ली थी। वैसे भी लोग किसी के बारे में राय बनाने में ज़रा भी देर नहीं लगाते और अगर वो कोई लड़की है तो गति कुछ ज़्यादा ही तीव्र होती है। पढ़ी लिखी और कामकाजी रितिका भी उसी समाज का हिस्सा थी ,तो उसने भी शुभा के लिए एक राय बना ही ली थी ,जबकि उसका अनुभव इससे भिन्न था।
रितिका की राय कभी परिवर्तित भी नहीं होती ,अगर उसे एक सेमिनार में भाग लेने शुभा और मितेश के शहर नहीं जाना पड़ता। रितिका ने होटल बुक करा ही लिया था,लेकिन मितेश और शुभा दोनों ही उसे लेने एयरपोर्ट पहुंच गए और दोनों ही ने उसे होटल की बुकिंग कैंसिल करने के लिए कहा। उनकी ज़िद के आगे रितिका ना नहीं कह सकी और उसने उनके घर रहने का निर्णय लिया।
शुभा के साथ समय व्यतीत करने पर रितिका ने जाना कि शुभा एकदम सिंपल लड़की है। उसके पापा एक अमीर व्यक्ति हैं, लेकिन इसका उसे कोई घमंड नहीं है। वास्तव में,अमीर बाप की बेटी होने के कारण ही मितेश तथा उसके घरवालों ने शुभा को शादी के लिए चुना था। उन्होंने बाकायदा शुभा के पापा से एक मोटी रकम दहेज़ के रूप में भी लिए थे।
रितिका के आश्चर्य की सीमा नहीं रही ,जब शुभा ने बताया कि ,"उसके पापा घर खर्च के लिए भी पैसे देते हैं।इसीलिए शुभा मितेश से उसके बैंक खाते की डिटेल्स भी पूछती रहती है। "
रितिका ने उससे कहा भी कि ," उसे अपने पापा से पैसे नहीं लेने चाहिए। " शुभा ने बताया कि ," उसके पापा के पास कैश ज्यादा रहता है ,इसीलिए उन्होंने सुझाव दिया था कि तुम लोग कैश खर्च कर लिया करो ,बैंक से पैसे क्यों निकालते हो ?लेकिन मितेश के घरवालों ने शुभा के पापा को पैसे की खान ही समझ लिया और शुभा अभी भी खर्च के लिए अपने पापा पर ही निर्भर है। मितेश के घरवाले मितेश की आमदनी पर अपना एकाधिकार समझते हैं।
"मितेश घर की जरूरतों के लिए अपनी आमदनी में से कोई पैसा नहीं देता। शुभा ने जब मितेश से घर खर्च के लिए पैसे मांगने चाहे तो उसके घरवालों ने शुभा को ही कसूरवार ठहराना शुरू कर दिया। शुभा की बेटी अभी छोटी है ,इसलिए घर के काम करने के लिए उसे समय नहीं मिल पाता। ससुराल से कोई आता है तो ,न तो कोई बेटी को ही रखता है और न ही घर के काम में मदद करता है। इसीलिए उसे कभी कभी मेहमानों के लिए बाहर से ही खाना मंगवाना पड़ता है। उसकी समस्या को न समझकर ,अपने लालच के कारण उसे सबने कामचोर ,नकचढ़ी ,घमंडी आदि न जाने क्या क्या तमगे दे दिए। सबसे ज्यादा तकलीफ उसे इस बात की होती है कि मितेश ने भी कभी अपने घरवालों का विरोध नहीं किया।
तस्वीर का दूसरा पहलू देखने के बाद रितिका को अपनी सोच पर शर्मिंदगी हुई।उसने शुभा को समझाया कि ," अपने पापा से कुछ दिन के लिए पैसे लेना पूरी तरीके से बंद कर दो।अपने लिए खड़े होना शुरू करो। तुम अच्छी हो और अच्छी ही थी। ससुराल वालों के प्रमाण पत्र की चिंता मत करो। साथ ही मैं गिरीश से बात करूंगी कि सही वक़्त देखकर मितेश को समझाये "
रितिका सोच रही थी कि किसी भी लड़की को अपने आपको साबित करने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। पग पग पर लोग उनको लेकर राय बनाते रहते हैं और तमगे देने के लिए तैयार रहते हैं। रितिका भी तो खुद कई बार इन तमगों के कारण गलत बातों का भी विरोध नहीं कर पाती। लेकिन रितिका आज समझ गयी थी कि तमगा दी गयी अधिकांश लड़कियां अच्छी ही होती हैं। शुभा भी वो अच्छी लडक़ी थी,जिसे दूसरों ने बुरा बना दिया था।
