Preeti Agrawal

Tragedy

4  

Preeti Agrawal

Tragedy

वो आखिरी खत

वो आखिरी खत

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रोहन आज बहुत खुश है। चार साल बाद अपने गांव जाने का अवसर जो मिल रहा है। लग रहा है कितनी जल्दी ये रास्ता कटे। "ये बस भी ना चींटी की गति से चल रही है और मन….वो तो हवाई जहाज की गति से भी तेज भाग रहा है। दूर दूर तक लहलहाते खेत, वो चिड़ियों का कलरव, ठंडी ताज़ी हवाएं, गाय बछड़ों के रंभाने की आवाज, सड़क पर दौड़ते बच्चे और…. और….रीना…" उसके चेहरे पर मीठी सी मुस्कुराहट आ गई। 

रीना हां उसके बचपन की दोस्त। एक ही दीवाल का तो अंतर था उन दोनों के घरों में। खेतों में दौड़ते, बागों से इमली तोड़ते, अमिया चुराते, मिट्टी के घरौंदे बनाकर खेलते, लड़ते - झगड़ते। पर दोनों की दोस्ती गहरी थी और एक दूसरे के बिना काम ही नहीं चलता था।

रोहन थोड़ा अंतर्मुखी, कम बोलने वाला और रीना… दुनिया जहां की बातें उससे करवा लो। दिनभर चटर पटर इधर उधर की गपशप। जब तक वो एक एक बात विस्तार से ना कह ले उसका खाना ही नहीं पचता था और रोहन मुस्कुराते हुए उसकी बातें सुनते रहता। रीना को हमेशा लगता था कि जिस तरह वो रोहन से अपनी हर बात शेयर करती है तो वो भी करे। 

"क्या रोहन हर वक्त मैं ही बक बक करती रहती हूं तुम तो कुछ नहीं बोलते" - रीना ने शिकायती लहजे में कहा।

"बोलता तो हूं पर तुम्हारे पास ही बातों का इतना खजाना रहता है तो मैं और क्या नया बोलूं।" - हंसते हुए रोहन कहता।

इसी तरह समय बीतता रहा। रोहन कॉलेज की पढ़ाई करने के लिए शहर चला गया और रीना पास के ही कस्बे के सरकारी कॉलेज से बी ए करने लगी। 

रोहन के जाते ही वो उदास हो उठी। बचपन से ही हर पल रोहन का साथ था। पर अब.. अब तो रोहन वहां नहीं था। पर उनमें पत्रों का सिलसिला शुरू हुआ। जहां रोहन के कुछ लाइन के पत्र हुआ करते थे वहीं रीना के पन्ने पर पन्ने भरे होते। समय बीतने के साथ रोहन की व्यस्तता बढ़ती गई और उसके पत्रों की संख्या कम होती चली गई। महीनों से तो उसने रीना को कोई पत्र ही नहीं लिखा था और उसका भी तो नहीं आया। 

"पहले तो वो उसके पत्र की प्रतीक्षा किए बिना ही ढेर सारे पत्र भेजा करती थी। इस बार क्यों नहीं भेजे? जाकर अच्छे से खबर लूंगा उसकी। बचपन से ही उसको चाहता हूं पर कभी कह नहीं पाया। अब नौकरी लगी है तो आज ही उसके सामने अपने प्यार का इजहार कर दूंगा"- सोचकर ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई।

बस के तेज हॉर्न से रोहन की तंद्रा टूटी। बस अड्डा आ गया था। रोहन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने इधर उधर देखा। उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि रीना बस अड्डे क्यों नहीं आई। उसको अपने आने की सूचना तो भेजी थी। लगता है बहुत नाराज़ है। कोई बात नहीं उसको मनाना कौन सा मुश्किल है। शहर के  बढ़िया बढ़िया किस्से सुनाऊंगा तो वैसे ही खुश हो जाएगी और फिर उसकी पसंद की हरी चूड़ियां और पायल भी तो लाया हूं। 

घर पहुंचने पर भी उसकी नजरें बेसब्री से रीना को ढूंढ़ रही थी। पर उसका आंगन सूना ही था। आखिरकार उससे रहा नहीं गया उसने मां से पूछ ही लिया। मां ने बात टाल दी। 

"कहीं उसकी शादी तो नहीं हो गई" - सोचकर ही उसका दिल धक से रह गया। "नहीं नहीं। मुझे मालूम है वो बहुत पसंद करती है मुझे। मेरा इंतजार जरूर करेगी और कम से कम मुझे पत्र तो भेजती। इतनी बड़ी बात वो मुझे बिना बताए रहेगी ही नहीं"

उससे रहा नहीं गया तेजी से उसके घर गया। घर में एकदम सन्नाटा पसरा हुआ था। वो रीना को आवाज़ देते हुए आंगन में घुसा। तभी उसकी मां बाहर निकलकर आई। इन चार सालों के वो ऐसी लगने लगीं थीं जैसे बरसों की बीमार हों।

"कौन! रोहन बेटा" 

"हां काकी प्रणाम। रीना कहां है"

"रीना..." - कहते हुए अन्दर गई और एक पुराना सा स्कूल बस्ता लेकर आई। उसे देखकर रोहन को याद आया। मेले से बहुत चाव से खरीदा था उसने रीना के लिए। 

"ये लेे बेटा। तेरे लिए रीना ने कुछ खत लिखकर रखे थे"

"पर वो खुद कहां है काकी" 

सुनते ही काकी की आंखे भर आईं। उसने तुरंत बस्ते में देखा। बहुत से खत रखे हुए थे जो कभी उसने भेजे ही नहीं। 

" और ये लेे उसका आखिरी खत" - काकी रुंधे हुए गले से बोली।

"आखिरी खत"- रोहन के हाथ से बस्ता नीचे गिर पड़ा। सारे खत इधर उधर बिखर गए। उसने कांपते हाथों से वो खत लिया।

"प्रिय रोहन

पता नहीं तुम्हे प्रिय कहने का हक रखती भी हूं कि नहीं। पर बचपन से मेरी दुनिया बस तुम्हारे आसपास ही घूमती रही। हमेशा तुम्हारी खुशियां ही चाही जिसमें तुम खुश उसमे मैं भी खुश और तुम्हारे सारे गम मेरे हो जाएं। बस अपनी मित्रता पर ही भरोसा था। पर तुमने तो इस लायक भी ना समझा और अपनी बीमारी के बारे में खबर तक नहीं की। क्या हमारी बस इतनी ही दोस्ती थी, इतनी कच्ची? क्या अभी तक यह दोस्ती एकतरफा ही थी। मैने कभी तुमसे कुछ नहीं मांगा, ना ही सात जनम साथ निभाने का वादा ही लिया। कहां तुम अब शहर के स्मार्ट लड़के और कहां मैं गांव की गंवार लड़की। कहीं कोई मेल नहीं। भले ही तुम अपनी खुशियां ना बांटना चाहो पर अपना दुख और परेशानी तो बांट ही सकते थे। इतने बड़े शहर में कहने को कोई अपना भी तो नहीं है वहां। वो तो काकी ने बताया। तुमने मुझे इतना पराया क्यों कर दिया रोहन। एक पल के लिए भी नहीं सोचा"

रोहन से आगे पढ़ते नहीं बना। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। इतनी भावुक पागल लड़की। अरे वो परेशान ना हो इसीलिए तो नहीं बताया और वैसे भी कोई बड़ी बीमारी तो थी नहीं कि ठीक ना हो सके। 

"काकी पर वो है कहां कुछ तो बोलो" - रोहन ने रुंधे गले से कहा।

"बेटा ये खत लिखने के बाद रात में वो जो सोई कि सुबह…." काकी ने ऊपर आसमान की ओर इशारा कर दिया और रोहन गश खाकर गिर पड़ा।



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