Preeti Agrawal

Comedy

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Preeti Agrawal

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लॉक डाउन में तलाशी खुशियां

लॉक डाउन में तलाशी खुशियां

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सन 2020 की शुरुआत तो बहुत ही अच्छी हुई। नई उमंग नई तरंग और नए सपने। पर धीरे धीरे कोराना की आहट भी सुनाई देने लगी। मामले की गंभीरता तब भी उतनी समझ में नहीं अाई जब मार्च के पहले सप्ताह में पति महोदय सुबह चार बजे की फ्लाइट से अहमदाबाद वापस आए और सबसे पहले अपना सामान सैनिटाइज करने लगे। मेरे लिए अत्यंत आश्चर्य जनक बात थी। 

"भई पहले थोड़ा आराम तो कर लो"- मैंने आधी नींद में ही कहा।

पर नहीं साहब उन्होंने अपने सामान को मुझे छूने से भी मना कर दिया और इतनी सुबह सबसे पहले अपना पूरा सामान सैनिटाइज किया। फिर गरम पानी से अच्छे से नहा धोकर सारे कपड़े भिगोए। मुझे इनकी ये हरकतें समझ में ही नहीं आ रही थी। 

"अभी साढ़े पांच तो ऐसे ही बज गए फिर साढ़े आठ बजे से ऑफिस जाना है। पूरी रात जागे हो थोड़ा 2-3 घंटे सो जाओ"- मैंने फिर से याद दिलाया। पर जनाब ये कहां मानने वाले थे।

"अभी एयरपोर्ट पर सारा सामान इधर उधर कई जगह छुआ गया है। कोरोना बहुत तेजी से फैल रहा है। पहले इसको सैनिटाइज करना बहुत जरूरी है नहीं तो अगर यह किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आया होगा तो हम भी संक्रमित हो जाएंगे"

उस समय उनकी यह बात मुझे किसी दूसरे ग्रह से आए प्राणी की तरह ही लगी।  

फिर अचानक मार्च के अंतिम सप्ताह में पहले एक दिन का देश बंद और फिर लॉकडाउन। पहले तो समझ में ही नहीं आया कि ये क्या हुआ? 

"ना भूतो ना भविष्यति"। ना कभी किसी किस्से कहानी में पढ़ा और ना ही कभी दादी नानी से ही ऐसा कुछ सुना। 

साल के हर दिन ( शनिवार रविवार को भी) चौबीसों घंटे व्यस्त रहने वाले पति महोदय चौबीसों घंटे एकदम आंखों के सामने और वो भी फुरसत में। वाह सालों की तमन्ना पूरी हो गई। ना कहीं आना और ना जाना बस पूरा परिवार जैसे "हम तुम एक कमरे में बंद हो और …." टाइप दो बेडरूम के फ्लैट में बंद हो गया। पति महोदय ने कहा भी कि सपनों की दुनिया से बाहर आओ ये उतना आसान और खुशनुमा नहीं है जैसा तुम समझ रही हो।

एक दो दिन में मामले की गंभीरता और समझ में आई। कामवाली बंद, बाहर से सब सामान, सब्जी, फल बंद। बस दूध और दवाइयां। वैसे घर में जरूरत का सब सामान उपलब्ध था पर कहते हैं न कि कमी ना हो पर कमी का डर हो तो भी कमी लगने लगती है। 

पहले लगा कि शायद कुछ दिन में सब सामान्य हो जाएगा। पर अब सच से सामना होने लगा था।

बचपन से लेकर अभी तक खाने पीने की शौकीन तो बहुत रही और हर जगह हर चीज बहुत अच्छे से उपलब्ध थी। बचपन में जहां नुक्कड़ नुक्कड़ पोहे, जलेबी, समोसे, कचोरी और चाट की दुकान वहीं शादी के बाद अहमदाबाद में स्वादिष्ट ढोकला, फाफडा, जलेबी, पात्रा, खमन, गांठिया, दाबेली, उंधियू….बस नाम लेते जाओ और हर गली की दुकान पर स्वादिष्ट पकवान मिल ही जाएंगे। 

पति महोदय का यही कहना रहता कि जब बाहर तरह तरह के पकवान उपलब्ध है तो अपना समय अपने दूसरे शौक और कामों में लगा लो। शायद एकाध बार बड़ी कोशिशों के बाद भी किए गए परिणाम का ही वो निष्कर्ष था कि भई हम पर रहम करो।

मुद्दे की बात भी थी कि जब इतना स्वादिष्ट खाना हर कदम पर उपलब्ध हो तो भाई घर में बनाने की क्या जरूरत है। जी हां शुरू से ही पढ़ाई लिखाई और बाहर के कामों में इतनी व्यस्त और मस्त रही कि किचन से बहुत ज्यादा नाता नहीं रहा केवल अपना सादा खाना और थोड़े पकवान बना लो। मुझे हमेशा लगता था कि तरह तरह के पकवान बनाना बहुत ही मुश्किल काम है। ये भी एक बहुत बड़ी कला है जो मेरे बस की तो हैं नहीं पता नहीं लोग कैसे बना लेते हैं। पर लॉकडाउन क्या लगा हमारे खाने पीने पर ताला लग गया। कुछ दिन तो बड़े आराम से निकल गए पर अब चटोरी जीभ भी मचलने लगी। वैसे भी सब दिनभर घर में होते तो कभी कुछ तो कुछ खाने का सभी का मन करता।

अब मरता क्या ना करता पति और बेटी दोनों को राज़ी किया कि भई मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगी पर जैसा भी बने बहुत तारीफ करके खाना क्योंकि उसके अलावा आप लोगों के पास और कोई चारा नहीं है। एक तो सामान भी बहुत सीमित है और फिर रोज दाल, रोटी से ही काम चलाना पड़ेगा।

यूट्यूब जी की मदद ली गई। सबसे पहले असंभव सी लगने वाली यानी ब्रेड को ही ट्राई करने का सोचा। 

"अरे ये क्या हुआ! बहुत ही शानदार ब्रेड बनी वो भी पहली बार की कोशिश में। वोही स्पोंज और लगभग वैसा ही स्वाद। अपनी आंखों पर तो भरोसा ही नहीं हुआ। घरवालों से कई बार चिमटी कटवा ली। अब ये बात अलग है कि उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी कोई पुराना बदला निकालने में, पर ब्रेड के रूप में जो परिणाम मिला वो बहुत ही उत्साहजनक था"

हमने यूट्यूब गुरुजी को शत शत नमन किया और फिर रोज नई नई रेसिपी ट्राई करने लगे। 

अपने बेहद आश्चर्य के बीच हर पकवान पहली बार में ही बहुत ही स्वादिष्ट बनने लगा जैसे मां अन्नपूर्णा का आशीर्वाद हो और कह रही हो कि "अभी तक कहां थी बेटी।"

फिर तो हर वो चीज जो असंभव सी लगती थी वो घर पर बनाई। समोसे, कचोरी, केक, कुकीज़ यहां तक कि पानी पूरी की खस्ता पूरियां भी। फिर तो अपने तरीके से बदलाव कर करके कई नई रेसिपी भी बनाई। सामान्य दिनों में खाने वाली चीजों के फलाहारी रूप भी। जब राष्ट्रीय स्तर की एक कुकिंग प्रतियोगिता में पुरस्कार मिला तो एक बार तो मानों यकीन ही नहीं हुआ कि मैं, जिसे लगता था कि बहुत तरह तरह के पकवान घर में नहीं बना सकती उसे इस वैश्विक मंच पर सर्वश्रेष्ठ पाककला विशेषज्ञों के बीच में पुरस्कार मिल भी सकता है। इस पुरस्कार ने मेरे हौंसलों को पंख लगा दिए। 

दोस्तों बहुत बार हमें लगता है कि ये काम हमारे बस का नहीं है, वो काम नहीं है क्योंकि शायद हमें अपने ऊपर उतना विश्वास नहीं होता और एक दो बार की असफलता से ही हम निराश हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ था। पर इस कठिन समय ने मुझे अपने एक नए रूप से परिचित करवाया। हां एक कुशल पाकशास्त्री के रूप में भी। कोई भी काम तब तक ही असंभव है जब तक हम प्रयास नहीं करते, यह बात इस मुश्किल समय ने बहुत अच्छे से सिखा दी।

अब तो जब कहो तब एकदम फटाफट बढ़िया से ढेर सारे पकवान तैयार। तो कब आ रहे हैं आप हमारे यहां ?


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