बिल्ली दादी
बिल्ली दादी
"अरे ये दूध पाउडर का डिब्बा फिर खाली हो गया"- रश्मि ने खाली डब्बा देखकर आश्चर्य से कहा।
"क्या हुआ बहू इतनी परेशान क्यों हो"- डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करने बैठी सरला जी ने कहा।
"देखो ना मम्मीजी। ये दूध पाउडर का डिब्बा फिर खाली हो गया। कल ही तो देखा था अभी दो तीन दिन और चल जाता"- रश्मि ने खाली डिब्बा दिखाते हुए कहा।
"बहू कहीं बिल्ली तो नहीं खा गई" - ससुर सतीशजी ने मजाकिया लहजे में कहा।
"क्या पापाजी आप भी। बिल्ली कभी दूध पाउडर खाती है क्या?"- रश्मि ने भी उसी लहजे में उत्तर दिया।
सतीश जी और सरला जी का भरा पूरा सुखी परिवार था। बेटी पलक की शादी हो गई थी और बेटे पलाश की भी। रश्मि पलाश की पत्नी है और उनका तीन साल का एक प्यारा सा बेटा है प्रत्युष।
"हां हां! अपने घर की बिल्ली खाती है ना। क्यों सरला" - उन्होंने सरला जी की तरफ मुस्कुराते हुए अपनी बाईं आंख दबा दी।
"तुम भी ना कहां की बात लेकर बैठ गए। रश्मि बेटा आर्डर कर दे कल तक आ जाएगा"- सरला जी ने नजरें चुराते हुए कहा।
"हां वो तो कल ही कर दिया था मम्मीजी। पर अभी कोरोना के कारण डिलीवरी देर से हो रही है"
"बाप रे तब तक बिचारी बिल्ली क्या करेगी"- सतीश जी ने हंसते हुए कहा।
"दद्दू कहां है बिल्ली मुझे भी दिखाओ ना"- प्रत्युष ने उत्साह से कहा।
"अरे दिखाना क्या है यहीं तो है अपने घर में"
"कहां है मैंने तो नहीं देखी कभी"- नन्हे प्रत्युष ने आश्चर्य से कहा।
अब तो रश्मि की भी उत्सुकता बढ़ गई। उसने देख लिया था सरलाजी कनखियों से सतीश जी को ओर देखकर मुस्कुरा रही थीं।
"पापाजी बताइए ना कौन सी बिल्ली? कहां है"
"बता दूं सरला"
"अब चुप भी करो"- कहते हुए सरला जी गाल सुर्ख हो उठे।
"कुछ तो बात है मम्मीजी। बताइए ना"- रश्मि ने आग्रह किया।
"अरे ये बिल्ली जो तुम्हारे सामने बैठकर शरमा रही है"- सतीश जी ने हंसते हुए सरला जी की ओर इशारा किया।
"मम्मीजी आप!!!"
"दादी आप!!!!"
प्रत्युष और रश्मि एक साथ बोल पड़े।
"दद्दू दादी बिल्ली… कैसे?"- प्रत्युष ने आंखें बड़ी बड़ी करके मासूमियत से पूछा।
"हां बेटा। बहुत ही मीठी यादें जुड़ी हैं इस दूध पाउडर से भी और इस बिल्ली से भी"- सतीश जी ने हंसते हुए कहा।
"क्या आप भी बच्चों के सामने पुरानी बातें लेकर बैठ गए" - सरला जी शर्म से लाल हुई जा रही थी।
"तो क्या हुआ बच्चों को भी वो मजेदार किस्सा सुनने दो। दरअसल बेटा तुम्हारी दादी को बचपन से ही दूध पाउडर बहुत पसंद है। आते जाते वो ऐसे ही कटोरी में लेकर खा लेती थी। हमारा संयुक्त परिवार था। वहां तो सामान की कभी कोई गिनती होती ही नहीं थी तो तेरी दादी के बड़े मजे थे। पर तुम्हारी बड़ी दादी ने एक दो बार कहा भी कि दूध पाउडर का डब्बा बहुत जल्दी जल्दी ख़त्म हो जाता है तो तुम्हारी दादी बहाना बना दिया करती कि उसका दूध बनाया था और वो बिल्ली पी गई। एक बार दोपहर का खाना होने के बाद तेरी दादी सब खाना समेटने लगी पर किचन से बहुत देर तक बाहर नहीं निकली। हमारी मम्मी को लगा कि आज तो बड़ी देर हो गई चलो सरला की मदद करवा दूं"
"अच्छा अब बस भी करो"- सरला जी ने बीच में टोकते हुए कहा।
"दादी सुनने दो ना। फिर क्या हुआ दद्दू"
"होना क्या था सरला मैडम तो चुपके चुपके दूध पाउडर खा रही थी। जैसे ही उन्होंने मम्मी को आते देखा हड़बड़ी में कटोरी का पूरा दूध पाउडर मुंह में डाल लिया और जल्दी जल्दी खाने की कोशिश करने लगी। पर दूध पाउडर मुंह में चिपक गया। उन्होंने तुरंत ही दरवाजे की तरफ पीठ कर ली। मम्मी कुछ भी कहें या पूछें तो बस हूं हूं करें क्योंकि दूध पाउडर से मुंह चिपक गया था और आवाज ही नहीं निकल रहीं थी। अब क्या करें, ना निगला जाए और ना ही उगला जाए।
मम्मी घबरा गईं कि सरला को पता नहीं क्या हो गया ना कुछ बोल रही है और ना ही पलटकर देख रही है। उन्होंने सभी घरवालों को इकट्ठा कर लिया और जब तुम्हारी दादी पलटी तो उनकी हालत देखकर सब हंस हंसकर लोटपोट हो गए।
मम्मी बोलीं कि "आज दिखी है हमारे घर की बिल्ली, दूध पाउडर खाने वाली बिल्ली" और बेटा अभी भी तुम्हारी दादी की वो आदत गई नहीं है।
"बिल्ली बिल्ली दादी बिल्ली, दूध पाउडर खाने वाली बिल्ली दादी"- चिढ़ाते हुए प्रत्युष ताली बजाकर हंसने लगा और उसके साथ ही पूरा घर ठहाकों से गूंज उठा।
दोस्तों ऐसी कई यादें होती है जो हर बार मन को गुदगुदा जाती हैं। उम्र का कोई भी पड़ाव हो यही यादें हममें नई ऊर्जा का संचार करती हैं।