पंख
पंख
साल 2020! बड़ी बेसब्री से इंतजार था इसका। कुछ अंक ऐसे ही होते हैं लुभावने। पता नहीं क्यों अपने आप में खुशी देते हैं। बस वैसा ही इंतज़ार इस साल का भी हो रहा था। विजन 2020, विश्व गुरु भारत जैसी बातें हम बरसों से सुनते चले आ रहे थे और आखिरकार इंतजार की घड़ियां खत्म हुई बहुप्रतीक्षित 2020 आ ही गया।
पतिदेव हर बार की तरह बहुत व्यस्त। बेटी और मैंने सोच ही लिया था कि इस बार उनका कोई बहाना नहीं सुनेंगे। पहले भी कई बार दो रात तीन दिन के बढ़िया से होटल में मुफ्त में रहने के लुभावने अवसर हम खो चुके थे। जी हां सही सुना समझा आपने। हमने फ्री स्टे के अवसर कई बार गंवा दिए थे। ऐसा नहीं कि हम बाहर घूमने नहीं जाते पर हमारे पतिदेव को ऑफिस और उनके कामों से इतना प्यार कि घूमने जाने का खयाल सबसे आखिर में ही आता।
पर वो खुशी का अवसर जल्दी ही आ गया। जनवरी में उत्तरायण के अवसर पर फिर वही फ़्री स्टे का पुरस्कार मिला और हमने उसे गंवाना उचित नहीं समझा। आखिर 2020 जैसे बहुप्रतीक्षित साल की इससे बेहतर शुरुआत और क्या हो सकती थी।
"अरे अभी तो साल की शुरुआत ही हुई है। पूरा साल पड़ा है घूमने फिरने के लिए। बाद में चलेंगे अभी ऑफिस में बहुत काम है"
"पर पापा अभी फ़्री स्टे का इनाम मिला है ना और मम्मी का जन्मदिन भी आ रहा है"- बेटी ने मनुहार किया।
"तो क्या हुआ। बाद में भले ही अपने पैसों से जाएं आखिर इतना तो खर्च कर ही सकते हैं "- हमेशा की तरह उनका जवाब यही था।
पर मेरा जन्मदिन भी था और आने वाले महीने में शादी की पच्चीसवीं सालगिरह भी। बेटी इस बार कुछ भी सुनने के मूड में नहीं थी।
हमने सापुतारा जाने का कार्यक्रम बनाया। तीन रात और चार दिन के ऑफर को दो ही दिन दे पा रहे थे पर चलो कोई बात नहीं "बिल्कुल नहीं से कुछ तो सही"। यात्रा बहुत अच्छे से शुरू हुई।
सापुतारा में कई जगह घूमने के बाद हम पहुंचे पैराग्लाइडिंग वाली जगह पर।
बचपन से पक्षियों जैसे आजाद आसमान में उड़ने की इच्छा रही थी पर कभी अवसर ही नहीं मिला और जब अब अवसर सामने था तो वर्टिगो की बड़ी समस्या मुंह बाए खड़ी थी।
मुझे तो ऊंचाई से बहुत डर लगता है यहां तक कि अपनी बहुमंजिला इमारत की छत से नीचे देखने पर भी। पर अपनी चाहत को बेटी के माध्यम से पूरा करना चाह रही थी।
"बेटा बड़ा आसान सा तो है बहुत मजा आएगा। तू कर ले पैराग्लाइडिंग"- मैंने बेटी का हौसला बढ़ाया। उसका भी मन तो था पर साथ ही उसे बहुत डर भी लग रहा था।
"मम्मी देखो ना बहुत घुमा घुमाकर लेे जा रहे हैं। कभी ऊपर तो कभी नीचे। ना बाबा मुझे तो बहुत डर लगता है"- उसने सिरे से इंकार कर दिया।
"अरे उसी में तो मजा है। खुले आसमान में पक्षियों की तर
ह उड़ना और तू अकेली थोड़ी ना होगी साथ में इंस्ट्रक्टर तो हैं ही"
"नहीं मुझे तो डर लगता है मैं नहीं जाऊंगी"
मुझे लगा उसका डर अभी ही दूर करना जरूरी है। मैंने और पतिदेव ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की पर वो तो टस से मस होने को तैयार नहीं थी।
"मम्मी आप जाओ ना। आपका बहुत मन है और बचपन से इच्छा भी थी ना"- उसने मुझ पर ही तीर चलाया।
"हां बेटा मेरा बस चलता तो जरूर जाती। पर अब इस उम्र में और वो भी वर्टिगो की समस्या"
"ऐसी कौन सी उम्र हो गई है आपकी। बस पैंतालीस की तो हो और वो भी लगती नहीं हो"- उसने मक्खन मारने की कोशिश की।
"मैं तेरी बात कर रही हूं। तू जा"
"नहीं पहले आप जाओ। आप अच्छे से कर लोगी तो फिर मैं भी करूंगी"
"अरे तुम करोगी तो उसका भी हौसला बढ़ेगा। कुछ नहीं होगा। डरो मत। तुम बहुत अच्छे से कर लोगी"- पतिदेव ने उसके सुर से सुर मिलाया।
अब तो मैं फंस गई थी। उसका डर भगाना बहुत जरूरी था पर खुद को भी उतना ही डर लग रहा था और उधर वो भी मेरी तरह ही सोच रही थी कि मम्मी को किसी तरह हौंसला दूं तो वो अपना बचपन का सपना पूरा कर सकें।
आखिरकार मैंने हामी भर दी और उड़ चली खुले आसमान में एक पक्षी की तरह अपने पंख फैलाए हुए। धीरे धीरे बेटी और पतिदेव आंखों से ओझल हो गए। शुरू में तो बहुत डर लगा पर धीरे धीरे बहुत मजा आने लगा। पहाड़ों के बीच से, टेढ़े मेढे रास्तों के ऊपर। कभी ऊपर तो कभी नीचे, कभी दाएं घूमते तो कभी बाएं। पास से वही पक्षी भी उड़ते हुए गुजर रहे थे जिनके साथ बचपन से उड़ने का सपना संजोया था। ऐसा लगा जैसे मैं भी उन्हीं में से एक ही हूं। हल्का सा चक्कर आने लगा पर उस उत्साह और आनंद के सामने कुछ भी नहीं था। लगभग आधे घंटे की वो उड़ान जीवन भर का असीम सुख दे गई।
एक खेत में उतरने पर देखा कि पीछे पीछे बेटी भी पैराग्लाईडिंग करते हुए चली आ रही है।
"देखा कितना आसान था ना बेटा"- मैंने उससे कहा।
"हां मम्मी।आपके डर को भगाना था। आपने मुझे हिम्मत देने के लिए खुद ही अपने डर दूर किया। आप सब कुछ कर सकती हो" - वो हंसते हुए बोली।
बेटी और पतिदेव के उत्साह भरे शब्दों ने एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया।
दोस्तों बहुत बार हम अपने मन में अपनी ऐसी ही इच्छाओं को दबा जाते हैं फिर बाद में उम्र बढ़ने पर पछताने के अलावा कुछ और नहीं रह जाता।
जीवन बहुत मुश्किल से मिला है उसे बहुत अच्छे से जिएं। सब काम जरूरी है पर साथ में अपने शौक और इच्छाएं भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं।