"वजूद की तलाश"
"वजूद की तलाश"
रवि, एक 30 वर्षीय युवा, एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता है। घर में वही एकमात्र कमाने वाला है। माता पिता बीमार रहते हैं, और दो छोटे भाई-बहनों की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी उसी पर है। इसके अलावा उसकी शादी भी हो चुकी है और दो छोटे बच्चे भी हैं जिनकी परवरिश पढ़ाई लिखाई का भार भी उसी के कंधों पर है। उसके भीतर दो ज़िंदगियाँ चल रही हैं एक, जो रोज़ की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही है, और दूसरी, जो अपनी पहचान बनाना चाहती है। वह केवल नौकरी करके जीवन नहीं बिताना चाहता; वह कुछ बड़ा करना चाहता है, अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता है, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियाँ उसे हर बार पीछे खींच लेती हैं।
रवि एक प्राइवेट नौकरी करता है, जहाँ उसे कम वेतन मिलता है और काम का बोझ ज़्यादा होता है। वह सुबह 9 बजे ऑफिस जाता है और रात 9 बजे घर लौटता है। दिनभर बॉस की डांट, सहकर्मियों की जलन और ऑफिस की राजनीति झेलनी पड़ती है। घर आता है, तो परिवार की ज़रूरतें और कलह उसका इंतज़ार कर रही होती हैं। पत्नी चाहती है कि वह ज्यादा पैसा कमाए, माँ चाहती हैं कि वह अपने भाई-बहनों का ख्याल रखे, और खुद रवि चाहता है कि वह अपने सपने पूरे करे लेकिन यह सब एक साथ कैसे मुमकिन हो?
रवि को लिखने का शौक है। वह चाहता है कि उसकी कहानियाँ प्रकाशित हों, लेकिन इसके लिए समय नहीं मिल पाता। जब भी वह रात में कुछ लिखने बैठता है, या तो बिजली चली जाती है, या बच्चा रोने लगता है, या फिर माँ किसी ज़रूरी काम के लिए बुला लेती हैं। यह संघर्ष उसे मानसिक रूप से तोड़ने लगता है।
एक दिन, ऑफिस में रवि को एक बड़ा झटका लगता है। कोविड के कारण कंपनी कई कर्मचारियों को निकाल रही है, और रवि भी उन लोगों में शामिल हो जाता है। उसके लिए यह किसी बुरे सपने से कम नहीं था। घर पर पहले से ही पैसे की तंगी थी, अब नौकरी भी चली गई। परिवार में कलह और बढ़ गई। पत्नी उसे ताने देने लगी, माँ चुप रहने लगीं, और रवि अंदर ही अंदर टूटने लगा। लेकिन इसी संकट में उसे एक अवसर दिखा अब उसके पास समय था। उसने ठान लिया कि वह अपनी पहचान बनाने के लिए लिखेगा। रवि ने सोशल मीडिया पर छोटी-छोटी कहानियाँ लिखनी शुरू कीं। पहले तो कोई नहीं पढ़ता था, लेकिन धीरे-धीरे उसके शब्दों को पसंद करने वाले मिलने लगे। वह रातभर जागकर लिखता, और दिन में नौकरी की तलाश करता। एक दिन उसकी एक कहानी वायरल हो गई। उसे एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से लेखन का ऑफर मिला। यह ज्यादा पैसा नहीं था, लेकिन एक उम्मीद थी।
रवि के संघर्षों के बीच उसकी लिखी कहानियाँ धीरे-धीरे सोशल मीडिया पर चर्चा में आने लगीं। वह फेसबुक, ब्लॉग और कुछ ऑनलाइन साहित्यिक प्लेटफार्मों पर लगातार लिखता रहा। उसकी कहानियों में जीवन की सच्चाई झलकती थी एक आम आदमी का संघर्ष, पारिवारिक कलह, सपनों और जिम्मेदारियों के बीच की जद्दोजहद। लोगों को उसमें अपना अक्स दिखने लगा, और धीरे-धीरे उसके पाठकों की संख्या बढ़ने लगी। एक दिन, एक प्रसिद्ध डिजिटल पब्लिशिंग प्लेटफॉर्म से उसे ईमेल आया। वे उसकी कहानियों को अपने मंच पर प्रकाशित करना चाहते थे और बदले में उसे कुछ आर्थिक सहायता भी मिलेगी। यह रकम बहुत बड़ी नहीं थी, लेकिन यह उसके लिए एक उम्मीद थी। उसने तुरंत यह अवसर स्वीकार कर लिया और अब वह अपने लेखन को और गंभीरता से लेने लगा। रवि अब पहले से ज्यादा मेहनत करने लगा। वह दिनभर नौकरी की तलाश करता और रात को लिखता। उसकी कहानियाँ अब साहित्यिक पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होने लगीं। एक दिन उसे एक बड़े पब्लिशर से कॉल आया। वे उसकी कहानियों को किताब के रूप में प्रकाशित करना चाहते थे। रवि को अपनी मेहनत का फल मिलता दिखा, लेकिन इस फैसले के सामने एक नई चुनौती थी परिवार का समर्थन।
जब रवि ने अपनी पत्नी और माँ को बताया कि वह फुल-टाइम लेखन करना चाहता है, तो घर में फिर से कलह मच गई। माँ ने कहा, "बेटा, ये सब कहानियाँ लिखकर घर नहीं चलता। कोई ठोस नौकरी देखो।" पत्नी ने ताने मारे, "तुम्हारी ये कहानियाँ हमारे बच्चों का पेट नहीं भर सकतीं।" रवि के लिए यह सबसे बड़ा मनोवैज्ञानिक संघर्ष था।
परिवार की इस बेरुखी ने उसे हिलाकर रख दिया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने खुद को साबित करने की ठानी। कुछ महीनों बाद, उसकी पहली किताब "वजूद की तलाश" प्रकाशित हुई। शुरुआत में बिक्री बहुत धीमी थी, लेकिन फिर सोशल मीडिया पर उसके पाठकों ने इसे खूब सराहा। उसकी किताब वायरल हो गई। बड़ी न्यूज़ वेबसाइट्स और साहित्यिक आलोचकों ने उसकी किताब पर चर्चा शुरू कर दी। कुछ ही महीनों में उसकी किताब बेस्टसेलर बन गई। रवि का नाम स्थापित लेखकों में गिना जाने लगा। उसे साहित्यिक कार्यक्रमों में बुलाया जाने लगा, और उसके लेखन से होने वाली कमाई उसकी पुरानी नौकरी से ज्यादा हो गई। जब पहली बार उसकी किताब की मोटी रॉयल्टी आई और उसने घर का पुराना कर्ज़ चुकाया, तब उसकी माँ की आँखों में गर्व के आँसू थे। पत्नी, जो अब तक उसे ताने मारती थी, अब अपने दोस्तों को गर्व से बताती थी कि "मेरे पति लेखक हैं।"
रवि ने एक लंबी सांस ली। यह सिर्फ एक किताब की सफलता नहीं थी, यह उसकी खुद की जीत थी—अपनी पहचान बनाने की, अपने वजूद को साबित करने की।
संदेश:
"जो लोग संघर्ष से डरकर अपने सपनों को छोड़ देते हैं, वे कभी अपने वजूद की पहचान नहीं बना पाते। रवि की कहानी हर उस इंसान के लिए एक प्रेरणा है, जो जिम्मेदारियों और सपनों के बीच झूल रहा है। अगर सच्चे दिल से मेहनत की जाए, तो कामयाबी जरूर मिलती है चाहे देर से ही सही।"
