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Mukul Kumar Singh

Classics

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Mukul Kumar Singh

Classics

विश्वास

विश्वास

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माधो और राधो दो मित्र थे पर साधारण नहीं माधो राजकुमार एवं राधो मंत्री का पुत्र। दोनों की मित्रता में भेद-भाव का कोई स्थान नहीं था। माधो चुंकी राजकुमार था इसलिए उसके स्वभाव में आदेश देने एवं किसी भी कार्य को जबरन कराना शामिल था जबकि राधो ठीक उसके विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला करने में विश्वास रखता था। एक दिन माधो ने राधो से आखेट पर चलने को कहा और दोनों मित्र घोड़े पर सवार हो जंगल की ओर दौड़ लगाई। राजमहल से जंगल काफी दूर था इसलिए दोनों हीं घोड़े को दौड़ते जा रहे पर उन्हें यह याद नहीं था कि वे रास्ता भटक चुके हैं जबकि दोपहर होने को थी और एक वटवृक्ष की छाया देख रूक गए तथा देखा कि वहां एक बड़ा जलाशय है जिसका जल कांच के समान है जिसके किनारे पक्षियों का दल जल में स्नान कर रहा था और उन्होंने कुछ पल आराम करने को सोचा। घोड़े को निकट हीं हरे भरे मैदान में चरने के लिए छोड़ दिया एवं वटवृक्ष की छाया में सुस्ताने लगे और गहरी नींद में सो गए। अचानक घोड़े की हिनहिनाने की आवाज सुनकर आंख खुली तो पाया कि सूरज अस्त होने को है। आराम कर लेने के कारण दोनों हीं ताजगी से परिपूर्ण थे सो घोड़े पर सवार हो जंगल की ओर सरपट हो लिए। चलते चलते काफी दूर निकल आए पर जो घनी झाड़ियों से घिरा हुआ अंचल था। रास्ता से तो पहले हीं भटक चुके थे और हल्का अंधेरा छाने लगा था सो जंगल किस तरफ से नजदीक होगी कि चिंता सता रही थी। झाड़ियां होने के कारण घोड़े भी ठीक से दौड़ नहीं पा रहे थे। घोड़ों की चाल धीमी हो गई एवं दोनों मित्रों को केवल उन दोनों चतुष्पदों का हीं आसरा था क्योंकि विपदाओं की पहचान करने की प्राकृतिक क्षमता होती है। घोड़ों की लगाम पकड़े आगे बढ़ हीं रहे थे कि उन्हें एक पुराना महल दिखा जिससे उनके जान में जान आई। माधो बड़ा खुश हुआ कि चलो अब रात भी होने को है हमलोगों को आश्रय मिल जाएगी और साथ लाए सुखे फलों को खाकर सो जाएंगे। आखिर महल के दरवाजे के निकट पहुंचे हीं थे कि दोनों चतुष्पद हिनहिना उठे। माधो ने राधो को दरवाजे को खोलकर देखने का मित्रता पूर्ण आदेश दिया। राधो दरवाजे के पास पहुंचा तो देखा कि दरवाजा के अंदर जाने के लिए एक काठ की बल्ली रखी है और जैसे हीं राघो के पैर का स्पर्श हुआ कि खट की एक आवाज आई तुरंत हीं राघो पैर वापस खींच लिया तथा दरवाजे के दांए बांए जाकर देखा तो पाया कि दरवाजा से जुड़ा परिखा एक स्थान पर टूटा हुआ है एवं वहां से प्रवेश किया जा सकता है। उस स्थान से राघो अन्दर जा भीतर से दरवाजा को हाथ से स्पर्श किया तो पाया दरवाजा आसानी से खोला जा सकता है और चों चां करते हुए किवाड़ खुल गया। माधो किवाड़ खुला देख अपने घोड़े का लगाम पकड़ अन्दर प्रवेश करने के लिए जल्दी करता है पर घोड़ा अड़ जाता है। राधो ने देखा कि घोड़ा जब अपने स्थान पर वापस जाता है तो एक दम सहज रहता है लेकिन जैसे हीं दरवाजे की ओर बढ़ता है तो काठ के पटरे पर पैर रखना नहीं चाहता है। वह समझ गया इस काठ के पटरे में अवश्य कोई गड़बड़ी है क्यों न घोड़े पर सवार हो छलांग लगा दी जाए तो आसानी से अंदर प्रवेश किया जा सकता है। बस जैसी सोच वैसा कार्य। बंधु माधो घोड़े पर सवार हो हल्का छलांग लगा अन्दर आ जाओ। कैसे छलांग लगा दूं पहले तुम दो फिर मैं। राधो को विश्वास था कि काठ के पटरे को बिना छूए छलांग लगाना हीं होगा और वह दरवाजे से बाहर आ गया तथा अपने घोड़े पर बैठ उसकी पीठ थपथपाई जिससे घोड़ा आगे बढ़ा एवं जैसे हीं काठ के पाटातन से थोड़ी दूर से एड़ लगाई और सकुशल दरवाजे से अंदर प्रवेश कर गया। राधो की देखा-देखी माधो ने भी वैसा हीं किया। इसके पश्चात राधो ने आजू बाजू दृष्टि दौड़ाई और जहां पर परिखा टूटा हुआ था वहां से एक बड़ा सा पत्थर का टुकड़ा उठाया और काठ के पाटातन पर अन्दर से बाहर की ओर उसे फेंका। जैसे हीं पत्थर का टुकड़ा पाटातन पर गिरा की दरवाजे से किवाड़ अलग होकर धड़ाम यह देख दोनों मित्र आश्चर्यचकित। दोनों आगे बढ़े। काफी पुराना महल था जिसके चारो तरफ बड़े एवं ऊंचे पेड़ों की कतारें थी और जंगली लता उन पेड़ों की उंचाई तक उतरी की भांति फैली भयावह रूप प्रदान कर दिया था। दोनों हीं मित्र अन्दर प्रवेश किए तो पाया कि अनगिनत बड़े बड़े कमरे हैं जो मकड़ी के जाल से घिरा एवं धूल की मोटी परत बिछी हुई है। सतर्कता के साथ कई कमरे के अन्दर झांकते हुए एक कमरे को देख चौंके क्योंकि वह कमरा साफ सुथरा था और एक कोने में कई बोरियां रखी हुई थी। कौतूहलवश माधो एक बोरी को खोला तो देखा कि कुछ गहने, रुपए,कीमती सामान हैं । माधो समझ गया कि यह सब डकैती में लूटा गया है। माधो ने क्रोध भरे स्वर में कहा-मेरे राज्य में डकैती ऐसा अपराध हो रहा है! और दोनों पिताजी को सूचित कर इन डकैतों को कड़ी से कड़ी सजा दूंगा। परन्तु राधो ऐसा करने से माधो को रोक दिया क्योंकि अभी रात का समय है तथा जंगल से बाहर निकलना मुश्किल है और डकैत भोर होने से पूर्व हीं वापस लौटेंगे। उससे पूर्व उन दोनों को इस कमरे से निकल बाहर झाड़ी में जा छुपेंगे एवं उनके दरवाजे तक पहुंचने से पूर्व हीं दूर निकल जाना होगा। माधो राजी हो गया और योजनानुसार कार्य कर के डकैतों के हाथों पकड़े जाने से बच गए पर चुंकी रास्ता तो पता नहीं था और घने जंगल में घोड़े पर सवार आगे बढ़ते गए। लेकिन सामने एक बड़ी चुनौती मिली एक तिव्र धारा में बहती नदी जो ज्यादा चौड़ी तो नहीं थी फिर भी आसानी से पार नहीं हो सकती। नदी को देख माधो की सांस अटक गई। इधर लालिमा युक्त आकाश में सूर्य किरणें फैलने लगी थी तथा डकैतों का दल इन दोनों मित्रों का पिछा करते नदी की ओर हीं बढ़ते आ रहे थे। माधो ने सोच लिया कि वह नदी पार नहीं कर सकता है लेकिन राधो को विश्वास था कि दोनों मित्र हीं नदी अवश्य पार करेंगे। अतः माधो को ललकारते हुए कहा-मित्र चलो मुझे घुड़सवारी में हरा कर दिखाओ तो जानूं और उसने घोड़े को एड़ लगाई। यह देख माधो को क्रोध आ गया मुझे हराएगा असंभव है अभी दिखाता हूं, इतना कहकर घोड़े को एड़ लगा दी। इस प्रकार दोनों हीं घोड़े सहित नदी पार कर दूसरे किनारे पहुंच गए और डकैतों से बिल्कुल सुरक्षित थे। पर जाएं तो किधर? रास्ता तो पता नहीं फिर क्या होगा! जंगल में भटकते भटकते काफी समय हो गया और वे दोनों एक छोटे-से गांव में पहुंचे जहां मुश्किल से पांच-दस घर हीं थे। दोनों मित्रों ने वहां मौजूद लोगों से रास्ता पूछा तो गांव वालों ने रास्ता नहीं बताया उपर से राधो -माधो को पकड़ कर एक खंभे से बांध दिया तथा कुछ हीं क्षण लोगों में आनन्द की लहर दौड़ गई और नाचने-गाने लगे। यह देख दोनों मित्र घबड़ा गए कहीं ये लोग हमारी बली तो नहीं चढ़ाने जा रहें हैं। दोनों मित्रों ने मन हीं मन दृढ़ निश्चय कर लिया कि उन्हें बली पर नहीं जाना है और रोने का नाटक करने लगे जिसे देख एक गांव वाला उनके पास आया और डांटते हुए बोला-अब रोकर क्या करोगे, तुम्हें तो ईश्वर से मिलने जाना है। इस पर माधो ने कहा वो कैसे श्रीमान हमने तो सुना है कि बलि तो ब्राह्मणों की दी जाती है और हम दोनों तो शुद्र हैं एवं नदी के उस पार के हीं शुद्रों की बस्ती में रहते हैं और यह जो राधो है न वह एक मूर्ख पर ईमानदार दास है जिसे आप यदि कसाई के पास भी भेज दो तो यह उल्लू एक बार को भी नहीं सोचता है कि कसाई उसकी हत्या कर देगा। तभी राधो ने क्रोध करते हुए कहा तुमने मुझे ईमानदार कहा जो कि मैं हूं हीं नहीं स्साला चमड़ी उखाड़ने वाले। इतना सुन कबिले वाले राधो की बात सुनकर मुस्कुरा उठे और माधो से कहा कि देखो तुम दोनों शुद्र हो इसलिए तुम्हारी बलि नहीं चढ़ाएंगे पर तुम चमड़ी उखाड़ बेचने वाले परिवार से सम्बन्ध रखते हो इसलिए तुम्हें तो हम रोक कर रखेंगे और तुम्हारे इस मूरख मित्र को तुम्हारे परिवार वालों के पास भेजूंगा ताकि खास कर तुम्हारे बदले तुम्हारे पिताजी से रुपए लाकर देगा। इसलिए तुम अपने पिता के पास संदेश भेजो और हां जरा सा भी चालाकी दिखाई न तुम्हारे गांव पर आक्रमण कर जला कर राख कर दूंगा । राधो तो यही चाहता था कि बस एक अवसर मिल जाए तो.....। राधो अपना घोड़ा लिया और वहां से जल्द से जल्द वापस लौट गया था तथा निकट के गांव के थानेदार को राजकुमार के अपहरण की बात बताई तो थानेदार फौरन हीं सैनिकों को लेकर उस स्थान की ओर रवाना हो गया। राह में हीं थानेदार से माधो को मुक्त करने के लिए योजना बनाई एवं एक सैनिक को एक चमड़ा व्यापारी के भेष में ले उस स्थान पर ले आया जिसके हाथों में एक छोटा सा बैग था। जैसे हीं अपहरण कर्ता ने राधो और उसके साथ आए व्यक्ति को देखा एवं उस व्यक्ति के हाथ से थैली झपट ली तथा खुश होते हुए माधो के घोड़े को मंगवा लिया और माधो को मुक्त करने का आदेश दिया। राधो अपहरण कर्ता की बात सुनकर भी चुप चाप रहा। बस वह अपहरण कर्ता माधो के पिता द्वारा लाई थैली खोला हीं कि अचानक मधुमक्खियों का झुंड निकली और काटने लगी। अवसर देख राधो दौड़कर माधो की रस्सियां खोल दी। यह सब देख अपहरण कर्ता दल भौंचक रह गए और जब तक कुछ समझ पाते कि राजा के सैनिकों को लेकर थानेदार उपस्थित, वहां उपस्थित सभी अपहरणकर्ताओं को बन्दी बना लिया। इसके बाद राजकुमार माधो का अभिवादन कर लौट गया तथा दोनों मित्र भी घोड़ों पर सवार हो वापसी की राह। रास्ते में माधो ने राधो से कहा-मान गया मित्र यदि तुम्हारा बाधाओं से लड़कर सफल होने का विश्वास न होता तो शायद आज हम-दोनों जीवित न होते। 


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