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Mukul Kumar Singh

Thriller

4  

Mukul Kumar Singh

Thriller

रोमांचक

रोमांचक

16 mins
15

अभी पुरी बरसात आरम्भ नहीं हुई थी जबकि मानसुन का आगमन तीन सप्ताह पहले हीं आन्दामान निकोबार द्वीपसमूह को पार कर पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर चुकी थी परन्तु आकाश में नाटक मंचित हो रही थी कभी-कभी बारिश की बड़ी बड़ी बूंदें पिटपिटाई वह भी मात्र पलकें झपकी और बूंदों को पता नहीं किसने सोख लिया हालांकि रास्ते को नहला दिया और रास्तें चाहे कच्ची हो या पक्की भींग गई तथा रास्तों से जैसे गरम गरम भाप निकलने लगी। यह भाप तो और भी कयामत बरपा रही थी कि मत पूछो सारा शरीर चिपचिपा सा पर स्वेदन एक बूंद भी नहीं। उफ्फ एक अजीब सी यंत्रणा थी। ऐसे हीं मौसम में हम तीन जन मैं,मेरी धर्मपत्नी तथा रजत मेरा एक छात्र राउरकेला के लिए घर से रवाना हुए। नैहाटी जंक्शन से बण्डेल जंक्शन  लोकल ट्रेन से पहुंचे। बण्डेल जंक्शन में ट्रेन प्लेटफार्म पर अभी प्रवेश कर हीं रही थी कि बर्धमान हावड़ा प्लेटफॉर्म से छूट चुकी थी। चुंकी तीरसठ की उम्र होने के कारण बैण्डेल हावड़ा लोकल पकड़ना उचित लगा। रजत मोबाइल पर लोकल ट्रेन का टाइम टेबल चेक किया जिसमें प्लेटफॉर्म नंबर दो पर साढ़े सात बजे छुटेगी देखा। हमलोगों ने देखा अन्य ढेर सारे यात्री दो नम्बर की ओर भाग रहे हैं तो देखा-देखी हमलोग भी भीड़ से अपने को बचते बचाते दो नम्बर पर जा पहुंचे और देखा कि लोकल ट्रेन खड़ी थी। कुछ यात्री प्लेटफॉर्म पर खड़े रह गए एवं कुछ बोगियों में सवार हो रहें हैं। इसलिए हमलोग भी बोगी में सवार होने को सोचा फिर भी निश्चित होने के लिए एक चायवाले से पुछा-ओ दादा,ये ट्रेन हावड़ा जाएगी? हां दादा हावड़ा जाएगी। चायवाले ने उत्तर दिया। अतः उस को सुन बोगी में सवार हो सीट पर जा बैठे। अभी हमलोग बैठे हीं थे और बातें कर रहे थे तभी अचानक ट्रेन प्लेटफार्म से सरकने लगी। अब चौंकने की बारी हमारी थी क्योंकि ट्रेन हावड़ा के विपरीत रेंग रही थी। वहीं बोगी में बैठे अन्य यात्री ओलम्पिक खिलाड़ियों की भांति गोल्ड मेडल पाने के लिए रेंगती ट्रेन से फटाफट उतर रहें। उन्हीं में से किसी से सुना कि यह ट्रेन कारसेड जा रही है। ट्रेन का रेंगना शुरू होने से अब तक चार रूक सैक को दरवाजे पर रजत एवं श्रीमती जी ले आई। पर रेंगने की गति बढ़ती जा रही और हमारे लिए संभव नहीं था ट्रेन से उतरना। अतः घबड़ाना स्वाभाविक था कि आगे क्या होने वाला है, पता नहीं कारसेड कितना दूर होगा। घड़ी में सवा सात बज चुके हैं। जबकि चारो ओर अंधेरा छा गया था। कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था प्लेटफॉर्म पर वैद्युतिन प्रकाश हमारी आंखों को चौंधिया रही थी। इधर श्रीमती जी की घबड़ाहट बहुत ज्यादा थी जिसकी वजह से रेंगती हुई ट्रेन से प्लेटफॉर्म पर खड़े यात्रियों को देखकर बार बार अनुरोध कर रही थी ओ दादा गार्ड, ड्राइवर को कहिए ना ट्रेन को रोके पर ऐसी स्थिति में यात्री गण निन्यानबे प्रतिशत किंकर्तव्यविमूढ़ हो केवल दर्शक बन हमें जाते हुए देख रहे थे और यह भी कहना मुश्किल होगा कि शायद कोई रेलवे अथिरिटी को सूचित करने का प्रयास किया होगा। खैर अब जो होगा देखा जायेगा परन्तु श्रीमती जी तो बदहवासी सी हो हमारी गलतियों को कोसने लगी, साथ हीं साथ उस अंधेरी वातावरण में जो भी मानुष दिख जाता उसी से ट्रेन रुकवाने का आग्रह करती रही। मेरे और रजत के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभरने लगी थी कारण राउरकेला जाने वाली ट्रेन सम्बलेश्वरी एक्सप्रेस हावड़ा से दस बजकर दस मिनट पर छुटने वाली थी। हम तो देर सबेर हावड़ा पहुंचेंगे हीं पर क्या फायदा शायद किसी दूसरी ट्रेन से रवाना होना पड़ेगा और हम तीनों की टिकट रिजर्व थी एवं यदि हम टिकट कैंसिल भी करते हैं तो हमलोगों का यात्री भाड़ा शत् प्रतिशत वापस मिलने से रहा। आखिर हमने दृढ़ निश्चय कर लिया था जो भी हो यदि ट्रेन की गति थोड़ी सी भी थमी तो चलती ट्रेन से कुदेंगे तथा पैदल प्लेटफॉर्म वापस लौटेंगे। सच कहता हूं आज मुझे विश्वास हुआ कि यदि किसी भी कार्य को सम्पन्न करने के लिए दृढ़ संकल्प कर लें तो कथित रूप से भगवान कहे जाने वाले भी सहायक बन जाता है। अंधेरे में जहां तहां खड़े बोगियां, रेलवे पटरियां, पटरियों के दांए बांए फैली घनी झाड़ियां हम सबको चिढ़ा रही थी। श्रीमती जी की बदहवासी भरी अनुरोध एवं प्रार्थना जारी थी। जिसे भी देखती उसी से ट्रेन रुकवाने का आवेदन करती। धीरे-धीरे हमलोग कारसेड प्रवेश करने के पहले ट्रेन ने अपनी गति को कम कर दिया और एक रेल केबिन के पास हमें सुरक्षित कुदने का अवसर प्रदान कर किया। सबसे पहले रजत कुद गया और चारो रूकसैक को उसकी ओर बढ़ा दिया तब श्रीमती जी भी इस बुढ़ापे में ट्रेन से कुद पड़ी। अब बारी मेरी थी लेकिन तभी ट्रेन की गति बढ़ने लगी फिर भी मैंने अपना धैर्य नहीं खोया और कुद पड़ा वो तो रजत था जिसने कुदने में मेरा एक हाथ पकड़ लिया नहीं तो पटरी के बाहरी हिस्से में बिछी पत्थरों पर मैं गिरता तथा पता नहीं हाथ पैर तुड़वा बैठता या नाक मुंह तोड़ जवानी की उम्र में पहुंच जाता। हमलोगों के इस कृत्य को केबिन मैन देख रहा था। श्रीमती जी उससे हमलोगों के इस स्थिति की जानकारी दी एवं वापस बैण्डेल जंक्शन के प्लेटफार्म जाने का रास्ता पुछी,उस केबिन मैन ने कहा आपलोगों को पैदल हीं जाना होगा दूसरा कोई उपाय नहीं है। रजत मेरा और श्रीमती जी का सैक स्वयं लिया और उसका हल्का सैक मुझे दे दिया जबकि एक सैक श्रीमती जी के पीठ पर। मरता क्या न करता घना अंधेरा, रेल की पटरियां और पटरियों के भीतरी एवं बाहरी हिस्से में बिछी पत्थरों के टुकड़े हमें चुनौती दे रही थी कि बढ़ो आगे,हम भी देखते हैं कैसे हमसे जीतोगे। रजत तो चालिस साल की आयु का था और सामने जो बाधा मिली उससे पंजा लड़ा रहा था जबकि श्रीमती जी भी बासठ वर्ष की बुढ़िया फिर भी मैं किसी से कम नहीं वाली भाव रखती थी और वहीं पर मेरे लिए परेशानी हीं परेशानी थी। मैं ठीक से चल नहीं पा रहा था, आंखों से भी कम दिखना। अब मेरे कदम कहां पड़ रहे हैं एक डर था पता नहीं कब ठोकर लगे और गिर पड़ूं। जो कष्ट व यंत्रणा हो रही थी उसे चुप चाप सहता रहा क्योंकि यदि मेरे कष्टों का पता रजत एवं श्रीमती जी को लगता तो उन दोनों का उद्याम कम हो जाता तथा चुनौती का सामना करना कठिन हो जाता। आंखें फाड़-फाड़कर देखने का प्रयास कर रहा था। अचानक बांयी तरफ एक सायकल सवार दिखा। श्रीमती जी ने प्लेटफॉर्म जाने का रास्ता पूछा तो वह एक पल के लिए उस अंधेरे में हमलोगों को घूरा, लगा वह शायद यह तय कर रहा था कि हमलोग कारसेड तक क्यों आए और किसलिए?। तब तक श्रीमती जी सारी रामायण सुना चुकी थी और उसने हमें रेल पटरियों से बाहर निकल बांयी ओर रेलिंग के तरफ जाने को कहा। अब जाकर सांस में सांस आई। रेलिंग पार कर सिमेंट ढलाई किया रास्ता मिला और वह हमलोगों को अपने साथ कुछ दूर तक ले गया एवं साथ छोड़ने से पूर्व दिशा निर्देश दिया कि कैसे और किधर से जाना चाहिए एवं सतर्क रहने को भी कहा कारण था सांपों का भय। ये सुनकर तो झुरझुरीु सी दौड़ गई लेकिन हमारे सामने आगे बढ़ने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था। अतः फिर ट्रेकिंग शुरू। अंधेरे में कभी-कभी तो पटरियों पर भी चलना पड़ा, दूर से केवल जगह जगह पर हेलोजन लाईट आकाश में उज्जवल तारे की भांति दिख रहा था। अब सोचो तारों की रोशनी से कभी तमस को दूर किया जा सकता है! हमें तो चन्द्रमा चाहिए था जिससे कि अंधेरा हल्का हो और निर्भय होकर चल सके। हम चल रहें हैं तो चल रहे हैं दूरियां कम नहीं हो रही थी। एक तरफ सांपों का डर पता नहीं कब सामने साक्षात्कार हो जाए और सर्पदंश का शिकार हो जाएं। परन्तु रूकने से कुछ नहीं होने वाला है और हम सर्कस के कलाकारों की तरह अपना नियंत्रण बनाए रखें तथा पत्थरों एवं पटरियों से याराना रखते हुए चले जा रहे थे। चलते चलते कभी-कभी लगता कि अब गिरे-अब गिरे लेकिन अगले हीं पल सम्हल जाते। हां एक बात तो अवश्य थी कि पुरे रास्ते में हमारी ओर आते हुए मनुष्यों से भी बिच बिच में भेंट हो जाती वे हमसे इतने अंधेरे में रेलवे की पटरियों के बीच क्यों आए हैं पुछते तथा हमारे लिए दिशानिर्देश देते और अपनी मंजिल की ओर तथा हमलोग भी प्लेटफॉर्म की ओर। जहां से हमारी ट्रेक शुरू हुई थी वहां से निशाचर कीटों जैसे झिंगुरों, टिड्डों के संगीत की सप्त लहरी सुन रहे थे और बीच-बीच में सियारों के आग के गोले की भांति जलती हुई आंखें शायद हमारा शिकार करने की तैयारी में हो अर्थात डाकिनी योगिनी का दर्शन हो जा रहा था। ऐसे असमतल पृष्ठ स्थल पर चलते चलते पसिने से तर-बतर हो चुकें थे एवं सांसों की गति तेज हो गई थी और हांफने लगे। एक बार तो लगा कुछ पल बैठ कर आराम कर लें पर बैठने का अर्थ सम्बलेश्वरी एक्सप्रेस को छोड़ देना। इसलिए हमने अपना ट्रेकिंग जारी रखा। कुछ हीं समय में हमलोग रेलवे यार्ड को पार करते हुए स्टेशन से थोड़ी दूर पर थे। कुछ लोगों को यार्ड पार कर दांयी ओर मुड़ते हुए देखा तो समझ गए कि प्लेटफॉर्म जाने का रास्ता निश्चय हीं दांयी ओर है। इतना सोच दस कदम चले और सामने यार्ड में एक पिपल पेड़ के तले तीन आर पी एफ दिखाई दिया और एक क्षण के लिए थोड़ी घबड़ाहट आई क्योंकि आजकल जानबूझ कर पब्लिक को फोर्स वाले परेशान किया करते हैं ताकि उनका सुपीरियर उन्हें शाबाशी देगा जबकि इन्हीं फोर्स वालों की मिलीभगत से अपराधिक गतिविधियों में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती जा रही है। परन्तु इस समय समय हमारे साथ था उनके पुछने के पहले हीं हमलोगों ने आपबीती सुना दी और प्लेटफॉर्म पर जाने का रास्ता बताने का अनुरोध किया। वो लोग संभवतः सदय हृदय वाले निकले। उनके हाथों में चार सेल वाली टॉर्च थी जिसे अन कर हमें रास्ता दिखाया। लगभग सौ मीटर दूर प्लेटफॉर्म दिख रहा था इससे हमारे अन्दर कॉन्फिडेंस में वृद्धि हुई और कुछ पल पूर्व तक जो परेशानी उठाई थी उस कष्ट को भूल गए जैसे कोई धावक अपनी फिनिशिंग टच पर आ खड़ा हो। खैर जो भी हो हमलोगों ने विपदा को धत्ता बता सकुशअभी पुरी बरसात आरम्भ नहीं हुई थी जबकि मानसुन का आगमन तीन सप्ताह पहले हीं आन्दामान निकोबार द्वीपसमूह को पार कर पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर चुकी थी परन्तु आकाश में नाटक मंचित हो रही थी कभी-कभी बारिश की बड़ी बड़ी बूंदें पिटपिटाई वह भी मात्र पलकें झपकी और बूंदों को पता नहीं किसने सोख लिया हालांकि रास्ते को नहला दिया और रास्तें चाहे कच्ची हो या पक्की भींग गई तथा रास्तों से जैसे गरम गरम भाप निकलने लगी। यह भाप तो और भी कयामत बरपा रही थी कि मत पूछो सारा शरीर चिपचिपा सा पर स्वेदन एक बूंद भी नहीं। उफ्फ एक अजीब सी यंत्रणा थी। ऐसे हीं मौसम में हम तीन जन मैं,मेरी धर्मपत्नी तथा रजत मेरा एक छात्र राउरकेला के लिए घर से रवाना हुए। नैहाटी जंक्शन से बण्डेल जंक्शन  लोकल ट्रेन से पहुंचे। बण्डेल जंक्शन में ट्रेन प्लेटफार्म पर अभी प्रवेश कर हीं रही थी कि बर्धमान हावड़ा प्लेटफॉर्म से छूट चुकी थी। चुंकी तीरसठ की उम्र होने के कारण बैण्डेल हावड़ा लोकल पकड़ना उचित लगा। रजत मोबाइल पर लोकल ट्रेन का टाइम टेबल चेक किया जिसमें प्लेटफॉर्म नंबर दो पर साढ़े सात बजे छुटेगी देखा। हमलोगों ने देखा अन्य ढेर सारे यात्री दो नम्बर की ओर भाग रहे हैं तो देखा-देखी हमलोग भी भीड़ से अपने को बचते बचाते दो नम्बर पर जा पहुंचे और देखा कि लोकल ट्रेन खड़ी थी। कुछ यात्री प्लेटफॉर्म पर खड़े रह गए एवं कुछ बोगियों में सवार हो रहें हैं। इसलिए हमलोग भी बोगी में सवार होने को सोचा फिर भी निश्चित होने के लिए एक चायवाले से पुछा-ओ दादा,ये ट्रेन हावड़ा जाएगी? हां दादा हावड़ा जाएगी। चायवाले ने उत्तर दिया। अतः उस को सुन बोगी में सवार हो सीट पर जा बैठे। अभी हमलोग बैठे हीं थे और बातें कर रहे थे तभी अचानक ट्रेन प्लेटफार्म से सरकने लगी। अब चौंकने की बारी हमारी थी क्योंकि ट्रेन हावड़ा के विपरीत रेंग रही थी। वहीं बोगी में बैठे अन्य यात्री ओलम्पिक खिलाड़ियों की भांति गोल्ड मेडल पाने के लिए रेंगती ट्रेन से फटाफट उतर रहें। उन्हीं में से किसी से सुना कि यह ट्रेन कारसेड जा रही है। ट्रेन का रेंगना शुरू होने से अब तक चार रूक सैक को दरवाजे पर रजत एवं श्रीमती जी ले आई। पर रेंगने की गति बढ़ती जा रही और हमारे लिए संभव नहीं था ट्रेन से उतरना। अतः घबड़ाना स्वाभाविक था कि आगे क्या होने वाला है, पता नहीं कारसेड कितना दूर होगा। घड़ी में सवा सात बज चुके हैं। जबकि चारो ओर अंधेरा छा गया था। कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था प्लेटफॉर्म पर वैद्युतिन प्रकाश हमारी आंखों को चौंधिया रही थी। इधर श्रीमती जी की घबड़ाहट बहुत ज्यादा थी जिसकी वजह से रेंगती हुई ट्रेन से प्लेटफॉर्म पर खड़े यात्रियों को देखकर बार बार अनुरोध कर रही थी ओ दादा गार्ड, ड्राइवर को कहिए ना ट्रेन को रोके पर ऐसी स्थिति में यात्री गण निन्यानबे प्रतिशत किंकर्तव्यविमूढ़ हो केवल दर्शक बन हमें जाते हुए देख रहे थे और यह भी कहना मुश्किल होगा कि शायद कोई रेलवे अथिरिटी को सूचित करने का प्रयास किया होगा। खैर अब जो होगा देखा जायेगा परन्तु श्रीमती जी तो बदहवासी सी हो हमारी गलतियों को कोसने लगी, साथ हीं साथ उस अंधेरी वातावरण में जो भी मानुष दिख जाता उसी से ट्रेन रुकवाने का आग्रह करती रही। मेरे और रजत के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभरने लगी थी कारण राउरकेला जाने वाली ट्रेन सम्बलेश्वरी एक्सप्रेस हावड़ा से दस बजकर दस मिनट पर छुटने वाली थी। हम तो देर सबेर हावड़ा पहुंचेंगे हीं पर क्या फायदा शायद किसी दूसरी ट्रेन से रवाना होना पड़ेगा और हम तीनों की टिकट रिजर्व थी एवं यदि हम टिकट कैंसिल भी करते हैं तो हमलोगों का यात्री भाड़ा शत् प्रतिशत वापस मिलने से रहा। आखिर हमने दृढ़ निश्चय कर लिया था जो भी हो यदि ट्रेन की गति थोड़ी सी भी थमी तो चलती ट्रेन से कुदेंगे तथा पैदल प्लेटफॉर्म वापस लौटेंगे। सच कहता हूं आज मुझे विश्वास हुआ कि यदि किसी भी कार्य को सम्पन्न करने के लिए दृढ़ संकल्प कर लें तो कथित रूप से भगवान कहे जाने वाले भी सहायक बन जाता है। अंधेरे में जहां तहां खड़े बोगियां, रेलवे पटरियां, पटरियों के दांए बांए फैली घनी झाड़ियां हम सबको चिढ़ा रही थी। श्रीमती जी की बदहवासी भरी अनुरोध एवं प्रार्थना जारी थी। जिसे भी देखती उसी से ट्रेन रुकवाने का आवेदन करती। धीरे-धीरे हमलोग कारसेड प्रवेश करने के पहले ट्रेन ने अपनी गति को कम कर दिया और एक रेल केबिन के पास हमें सुरक्षित कुदने का अवसर प्रदान कर किया। सबसे पहले रजत कुद गया और चारो रूकसैक को उसकी ओर बढ़ा दिया तब श्रीमती जी भी इस बुढ़ापे में ट्रेन से कुद पड़ी। अब बारी मेरी थी लेकिन तभी ट्रेन की गति बढ़ने लगी फिर भी मैंने अपना धैर्य नहीं खोया और कुद पड़ा वो तो रजत था जिसने कुदने में मेरा एक हाथ पकड़ लिया नहीं तो पटरी के बाहरी हिस्से में बिछी पत्थरों पर मैं गिरता तथा पता नहीं हाथ पैर तुड़वा बैठता या नाक मुंह तोड़ जवानी की उम्र में पहुंच जाता। हमलोगों के इस कृत्य को केबिन मैन देख रहा था। श्रीमती जी उससे हमलोगों के इस स्थिति की जानकारी दी एवं वापस बैण्डेल जंक्शन के प्लेटफार्म जाने का रास्ता पुछी,उस केबिन मैन ने कहा आपलोगों को पैदल हीं जाना होगा दूसरा कोई उपाय नहीं है। रजत मेरा और श्रीमती जी का सैक स्वयं लिया और उसका हल्का सैक मुझे दे दिया जबकि एक सैक श्रीमती जी के पीठ पर। मरता क्या न करता घना अंधेरा, रेल की पटरियां और पटरियों के भीतरी एवं बाहरी हिस्से में बिछी पत्थरों के टुकड़े हमें चुनौती दे रही थी कि बढ़ो आगे,हम भी देखते हैं कैसे हमसे जीतोगे। रजत तो चालिस साल की आयु का था और सामने जो बाधा मिली उससे पंजा लड़ा रहा था जबकि श्रीमती जी भी बासठ वर्ष की बुढ़िया फिर भी मैं किसी से कम नहीं वाली भाव रखती थी और वहीं पर मेरे लिए परेशानी हीं परेशानी थी। मैं ठीक से चल नहीं पा रहा था, आंखों से भी कम दिखना। अब मेरे कदम कहां पड़ रहे हैं एक डर था पता नहीं कब ठोकर लगे और गिर पड़ूं। जो कष्ट व यंत्रणा हो रही थी उसे चुप चाप सहता रहा क्योंकि यदि मेरे कष्टों का पता रजत एवं श्रीमती जी को लगता तो उन दोनों का उद्याम कम हो जाता तथा चुनौती का सामना करना कठिन हो जाता। आंखें फाड़-फाड़कर देखने का प्रयास कर रहा था। अचानक बांयी तरफ एक सायकल सवार दिखा। श्रीमती जी ने प्लेटफॉर्म जाने का रास्ता पूछा तो वह एक पल के लिए उस अंधेरे में हमलोगों को घूरा, लगा वह शायद यह तय कर रहा था कि हमलोग कारसेड तक क्यों आए और किसलिए?। तब तक श्रीमती जी सारी रामायण सुना चुकी थी और उसने हमें रेल पटरियों से बाहर निकल बांयी ओर रेलिंग के तरफ जाने को कहा। अब जाकर सांस में सांस आई। रेलिंग पार कर सिमेंट ढलाई किया रास्ता मिला और वह हमलोगों को अपने साथ कुछ दूर तक ले गया एवं साथ छोड़ने से पूर्व दिशा निर्देश दिया कि कैसे और किधर से जाना चाहिए एवं सतर्क रहने को भी कहा कारण था सांपों का भय। ये सुनकर तो झुरझुरीु सी दौड़ गई लेकिन हमारे सामने आगे बढ़ने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था। अतः फिर ट्रेकिंग शुरू। अंधेरे में कभी-कभी तो पटरियों पर भी चलना पड़ा, दूर से केवल जगह जगह पर हेलोजन लाईट आकाश में उज्जवल तारे की भांति दिख रहा था। अब सोचो तारों की रोशनी से कभी तमस को दूर किया जा सकता है! हमें तो चन्द्रमा चाहिए था जिससे कि अंधेरा हल्का हो और निर्भय होकर चल सके। हम चल रहें हैं तो चल रहे हैं दूरियां कम नहीं हो रही थी। एक तरफ सांपों का डर पता नहीं कब सामने साक्षात्कार हो जाए और सर्पदंश का शिकार हो जाएं। परन्तु रूकने से कुछ नहीं होने वाला है और हम सर्कस के कलाकारों की तरह अपना नियंत्रण बनाए रखें तथा पत्थरों एवं पटरियों से याराना रखते हुए चले जा रहे थे। चलते चलते कभी-कभी लगता कि अब गिरे-अब गिरे लेकिन अगले हीं पल सम्हल जाते। हां एक बात तो अवश्य थी कि पुरे रास्ते में हमारी ओर आते हुए मनुष्यों से भी बिच बिच में भेंट हो जाती वे हमसे इतने अंधेरे में रेलवे की पटरियों के बीच क्यों आए हैं पुछते तथा हमारे लिए दिशानिर्देश देते और अपनी मंजिल की ओर तथा हमलोग भी प्लेटफॉर्म की ओर। जहां से हमारी ट्रेक शुरू हुई थी वहां से निशाचर कीटों जैसे झिंगुरों, टिड्डों के संगीत की सप्त लहरी सुन रहे थे और बीच-बीच में सियारों के आग के गोले की भांति जलती हुई आंखें शायद हमारा शिकार करने की तैयारी में हो अर्थात डाकिनी योगिनी का दर्शन हो जा रहा था। ऐसे असमतल पृष्ठ स्थल पर चलते चलते पसिने से तर-बतर हो चुकें थे एवं सांसों की गति तेज हो गई थी और हांफने लगे। एक बार तो लगा कुछ पल बैठ कर आराम कर लें पर बैठने का अर्थ सम्बलेश्वरी एक्सप्रेस को छोड़ देना। इसलिए हमने अपना ट्रेकिंग जारी रखा। कुछ हीं समय में हमलोग रेलवे यार्ड को पार करते हुए स्टेशन से थोड़ी दूर पर थे। कुछ लोगों को यार्ड पार कर दांयी ओर मुड़ते हुए देखा तो समझ गए कि प्लेटफॉर्म जाने का रास्ता निश्चय हीं दांयी ओर है। इतना सोच दस कदम चले और सामने यार्ड में एक पिपल पेड़ के तले तीन आर पी एफ दिखाई दिया और एक क्षण के लिए थोड़ी घबड़ाहट आई क्योंकि आजकल जानबूझ कर पब्लिक को फोर्स वाले परेशान किया करते हैं ताकि उनका सुपीरियर उन्हें शाबाशी देगा जबकि इन्हीं फोर्स वालों की मिलीभगत से अपराधिक गतिविधियों में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती जा रही है। परन्तु इस समय समय हमारे साथ था उनके पुछने के पहले हीं हमलोगों ने आपबीती सुना दी और प्लेटफॉर्म पर जाने का रास्ता बताने का अनुरोध किया। वो लोग संभवतः सदय हृदय वाले निकले। उनके हाथों में चार सेल वाली टॉर्च थी जिसे अन कर हमें रास्ता दिखाया। लगभग सौ मीटर दूर प्लेटफॉर्म दिख रहा था इससे हमारे अन्दर कॉन्फिडेंस में वृद्धि हुई और कुछ पल पूर्व तक जो परेशानी उठाई थी उस कष्ट को भूल गए जैसे कोई धावक अपनी फिनिशिंग टच पर आ खड़ा हो। खैर जो भी हो हमलोगों ने विपदा को धत्ता बता सकुशल प्लेटफॉर्म पर वापस आ हीं गए।
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