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Mukul Kumar Singh

Others

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Mukul Kumar Singh

Others

रडोडेन्ड्रन सैंक्चुअरी हिले भार्से ट्रेकिंग

रडोडेन्ड्रन सैंक्चुअरी हिले भार्से ट्रेकिंग

16 mins
356

नैहाटी से सिलिगुड़ी--सिलिगुड़ी से जोरथांग(1056 फीट)--जोरथांग से ओखरे (7550फीट)--ओखरे से ट्रेकिंग आरम्भ-- हिले(9000फीट) 11 कि मी तथा हिले से भार्से (9977फीट) 5 कि मी । भार्से रडोडेन्ड्रन सैंक्चुअरी अर्थात रडोडेन्ड्रन एक हिमालय का पर्वतीय फूल जिसे सिक्किम राज्य की भाषा में गुरास कहा जाता है। 2017 के आठ वर्ष बाद मैं ट्रेकिंग के लिए रवाना हुआ। रवाना होने से पूर्व मेरा शरीर ट्रेकिंग करने के विपक्ष में पहुंच चुका था। एक तो मेरी उम्र बासठ वर्ष हो चुकी है तथा कई बिमारियों ने आक्रमण कर दिया जिसकी मैंने कभी कल्पना नहीं थी। मैं चलने फिरने के अयोग्य होता जा रहा था। वह तो डॉक्टर के डायग्नोसिस एवं मेडिसिन ने मुझे इस ट्रेकिंग के योग्य कर दिया। 9 अप्रैल को राधिकापुर एक्सप्रेस में हमारे टीम के सभी सदस्यों की सीट आरक्षित कर दी गई थी। टीम में हम पांच थे-पायेल सिंह, राना विश्वास,रजत साहा, श्रीमती रिना सिंह और मैं। निर्धारित तिथि को घर से रात्रि साढ़े सात बजे नैहाटी जंक्शन पहुंच गया और ट्रेन रवाना होने की समय 8 बजकर 42 मिनट थी। एक एक कर बाकी सभी सदस्य रवानगी के पूर्व पहुंच गए। खैर निश्चित समय पर ट्रेन प्लेटफार्म को दुलकती कदम से छोड़ आगे बढ़ गई। हम सभी अपने बर्थ पर लेट गए। नींद ने हम सभी को अपने आगोश में सुला दिया। जिस बोगी में सवार हुए थे प्रायः सभी यात्री सो गए थे परन्तु नाममात्र के कारण सबके हाथ में मोबाइल में डूबे हुए थे और सभी लाइट बुझा दिए गए थे। कुछ यात्री मोबाइल देखने के साथ वार्तालाप कर रहे थे इससे मुझे नींद नहीं आ रही थी। पलकों को जबरदस्ती बन्द किए था एवं इसी तरह से धीरे-धीरे दस तारीख की प्रातः तीन बजे दौड़ती ट्रेन में बादल गरजने की आवाज सुनाई दी और बड़ी बड़ी बूंदों की बरसात होने लगी। बरसात देखकर मेरा हृदय कांप उठा ऐसे मौसम में गंतव्य तक कैसे पहुंचेंगे। राधिकापुर एक्सप्रेस को बारसोई स्टेशन पहुंचने का समय था सुबह चार बजकर बीस मिनट लेकिन ट्रेन एक घंटे लेट थी। पांच बजकर बीस मिनट पर बारसोई स्टेशन पहुंची। इस ट्रेन के पीछे हीं कांचनकन्या सुपर फास्ट एक्सप्रेस थी। जो साढ़े पांच बजे आई एवं हम सभी एक जनरल बोगी में सवार हुए। तथा जिस हिस्से में हम थे वहां पहले से बैठे यात्रीगण इतने सदासय थे बैठने की जगह रहते हुए भी बैठने नहीं देंगे तय कर लिए थे। हमारी जो स्थिति थी वह बिल्कुल बकरियों की भांति ठूंसे हुए। उपर से बोगी में पंचानबे प्रतिशत यात्री मुस्लिम जो वर्तमान राजनैतिक हालात के जीते जागते प्रमाण। बैठने को लेकर उनके साथ हमारी तू तू मैं मैं भी हुई परन्तु सारा बोगी वो बहुसंख्यक थे। अतः आपसी सहमति कौन कौन देखता है। उन्होंने यहां तक धमकी तक दे डाली जाओ जो करना है कर लो हम लोग तुम लोगों का आइना नहीं मानते हैं।हालांकि मैं किसी धार्मिक भेद-भाव में विश्वास नहीं रखता लेकिन उन लोगों के व्यवहार से काफी मर्माहत हुआ। क्योंकि कोई भी ऐसा यात्री नहीं मिला जो कम से कम हमारे साथ सहयोगिता करें। बारिश लगातार बरस रही थी,हम सभी सोच रहे थे कि बारिश थम जाएगी पर बारिश को शायद हमलोगों के उपर क्रोध था इसलिए बारिश की तिव्रता कम हो गई पर थमी नहीं। लगभग आठ बजकर पच्चिस मिनट पर सिलिगुड़ी स्टेशन पहुंचे। हमलोग सभी थोड़ा फ्रेश हुए एवं बारिश के कारण ठंड लग रही थी सो स्टेशन से बाहर निकलने के पूर्व रेन कोट पहन लिया ताकि बारिश से भींगे नहीं तथा ठंढ भी न लगे। स्टेशन से बाहर निकल कर सोचा था कि ब्रेक फास्ट कर लेंगे लेकिन बारिश की धमकियों ने हमलोगों को ब्रेकफास्ट करने हीं नहीं दिया। तथा बारिश से बचने हेतु हमनें जोरथांग जाने के लिए शेयर गाड़ी ठीक किया प्रति हेड 350 रूपये पर। सिलिगुड़ी स्टैंड से जोरथांग साढ़े नौ बजे गाड़ी रवाना हुई। बारिश तो जैसे हमलोगों का पिछा करना छोड़ा नहीं। पैनी दृष्टि हम सब पर रखे हुई थी। धीरे-धीरे चाय बागानों के बीच से गाड़ी आगे बढ़ रही थी। सच कहता हूं गाड़ी से चाय बागानों के बीच से जाते समय प्रकृति के सौन्दर्य को निहारता हीं रह गया। चाय बागानों में चाय की छोटी छोटी झाड़ियां भूमि पर हरे रंग की कार्पेट बिछा दिया था और उन झाड़ियों के बीच शाल-सेगुन एवं अन्य बड़े बड़े पेड़ों के तने आकाश को अपने सर पर उठा लिया था और हमलोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे कि हमलोग उनके हरियाली के साम्राज्य में थोड़ा आराम कर लें पर शायद भाग्य भी हमसे नाराज थी। बारिश पुनः तिव्र हो गई। वैसे बारिश के बूंदों का पत्तों पर पटापट पड़ने से पत्तों के रंग में निखार आ गई एवं बूंदों की आवाज हम सबको संगीत की सप्तलहरी तरंगों पर झूमने का अवसर प्रदान किया इससे अन्य सदस्यों की बात मैं नहीं कह सकता परन्तु मैंने इस अवसर का पुरा का पुरा आनन्द उठाया। अब हमलोग तिस्ता नदी के उपर बनी सेवक सेतु को पार किया। इस नदी के जिस रूप को मैंने आज से कई वर्ष पूर्व देखा था वो नहीं मिला। जलधारा के स्थान पर नदी के तलहटी में मात्र मोरेन बिछा हुआ था अर्थात तिस्ता अपनी विशेषता खो चुकी है। सेवक सेतु को पार कर गाड़ी हु हु करती हुई काली चादर पर दौड़ रही थी जो और एकदम सर्पिल आकृति में तथा कभी एक दम साठ डिग्री उंची ढाल तो कभी अचानक साठ डिग्री नीचे और उसी स्थिति में विपरीत ओर से आने वाली गाड़ियों को आने के लिए रास्ता देना काफी जोखिम भरा काम था। गाड़ी के बांयी ओर सिक्किम हिमालय के आकाश चुंबी रिज गाड़ी के बांयी ओर एवं दाहिने लगभग सात-आठ सौ मीटर ढालु गर्ज और उसी गर्ज के तलहटी में तिव्र स्रोतस्विनी तिस्ता प्रवाहित हो रही थी। गाड़ी का चालक अनुभवी एवं मिलनसार व्यक्ति था। उस काली चादर पर दौड़ाते हुए गाड़ी को बड़ी सतर्कता के साथ अपनी नियंत्रण में रखा था कारण थोड़ी सी असावधानी यात्री सहित गाड़ी सात आठ सौ मीटर गहराई में अपना अस्तित्व को हमेशा के लिए खो देती। प्रकृति के आनंद लोक में सैर करते हुए दोपहर तीन बजे जोरथांग गाड़ी स्टैंड पहुंच गए। हम सभी भूखे थे इसलिए सबसे पहले भोजन की तलाश में स्टैंड से बाहर मेन रोड पर निकल आए। पूछताछ कर एक होटल में पहुंचे तथा मुर्गी बन कर बाहर आए क्योंकि होटल का कर्मचारी हमारी मेनुकार्ड को ठीक ढंग से समझा नहीं और उसने हमारे मांगी गई भोज्यपदार्थ न देकर दूसरा खाद्य पदार्थ परोस दिया। परिणति आप समझ ही सकते हैं। रुपए भी गए और इच्छानुसार भोजन नहीं मिला। पेट पूजा के बाद हम वापस स्टैंड आए तथा तीन अपरिचित ट्रेकरों के साथ ओखरे जाने के लिए गाड़ी बूक कर जोरथांग शहर को धन्यवाद देते हुए गाड़ी पर सवार। जोरथांग शहर को देख कर आश्चर्यचकित हुआ क्योंकि सिक्किम ऐसे पहाड़ी राज्य में आधुनिक व्यवसायिक सुविधाओं से परिपूर्ण बाजार बड़े बड़े होटल, रेस्तरां, शापिंग मॉल तथा बड़ी बड़ी बिल्डिंगें इत्यादि से सुसज्जित थी। रास्ता एक दम साफ सुथरा जो प्रशासनिक व्यवस्था की मुस्तैदी को दर्शाता है। हमारी गाड़ी सड़क पर दौड़ रही थी और यहां भी सिलिगुड़ी से जोरथांग के रास्ते की भांति प्राकृतिक रूप देखने को मिला। यदि तुलना करें तो थोड़ा बीस मिला। एक बात और थी वो तापमान में कमी जिसने गर्मी की परेशानियां दूर हो चुकी थी। लेकिन बारिश साथ नहीं छोड़ी। हां बारिश की गति मन्द हो चुकी थी और पहाड़ी रास्ता पहाड़ी ढलानों से बह कर आने वाली वृष्टि जलधारा से पंकिल थी तथा जहां तहां धस गिरने के चलते काफी विपद संकुल थी और धस को साफ करने एवं आवागमन योग्य करने में लोग व्यस्त थे। इस कारण प्रायः गाड़ी को बार-बार कुछ देर तक रुकना पड़ता था। इसके साथ हीं साथ हमारे दल के दो सदस्य रजत और रिना मैडम दोनों हीं मोशन सिकनेस के शिकार हो गए अर्थात उल्टियां करना। इसमें रजत की हालत गंभीर थी। उल्टियां प्रायः हाई एल्टिच्यूड में प्रायः होता है। इससे बचने के लिए उल्टियां रोकने वाली टैबलेट्स मिलते हैं परन्तु रजत की शारीरिक कष्ट देख सभी सदस्यों के खुशियों में बाधा आई। खैर रास्ते में हीं रडोडेन्ड्रन फूल की कई रंगों की मुस्कान देखने को मिला जिसकी वर्णना शब्दों में व्यक्त करना असंभव सा लगता है। लाल, गुलाबी, सफेद, पीला तथा सूर्य किरणों के रंगों ऐसा रडोडेन्ड्रन फूल ने मुझे सबसे अधिक आकर्षित किया। मुझे लग रहा था शायद मैं पृथ्वी से दूर किसी अन्य जगत में आ चुका हूं जहां की अनुपम सौंदर्य मानसिक शांति के साथ साथ एक आध्यात्मिक सुख विकिरित कर रहा है। गाड़ी धीरे धीरे अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही और ओखरे गांव की सिमा में प्रवेश कर लिया। लगभग पन्द्रह से बीस मिनट लगे यहां एक महीने पूर्व हीं होमस्टे बूक कर लिया गया था। होमस्टे का नाम सलाका।प्रतिमाथा एक हजार रुपए प्रति दिन जिसमें फूडिंग शामिल था। गाड़ी एक दम सलाका होमस्टे के सामने ठहरी और संग हीं संग होमस्टे का केयरटेकर ज्ञानु दौड़ कर आया एवं हम सबका लगेज हमारे रूम में पहुंचा दिया। उसने हम सबको रूम में प्रवेश करने से पहले लंच का आग्रह किया पर हमलोगों ने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। हमलोगों को दो रूम मिला। एक दम साफ सुथरा,गिजर,लाइट सब यानी कि होमस्टे में ठहरने वालों को शिकायत का कोई मौका नहीं है। यहां जोरथांग की अपेक्षा तापमान काफी कम थी सो ठंड लग रही थी और समतली स्थान से उंचे पहाड़ पर जो कपड़े हम पहने हुए थे उसे बदल कर गरम कपड़े पहनना आवश्यक था। बाथरुम में गिजर थी इसलिए गरम जल से हाथ मुंह धोकर गरम कपड़े पहने। तत्पश्चात गरम पेय पिने के लिए डायनिंग रूम में आ गए केवल रजत अपनी शारीरिक कष्टों के चलते डायनिंग रूम में नहीं आया। हमारा टीम लीडर राना विश्वास उसे इस समय ट्रेकर को अपना शरीर हाईएल्टिच्यूड के अनुरूप एक्लामेटाइज्ड करने के महत्व को समझाया पर उसने आराम करने के जीद्द पकड़ ली। राना मुझसे अनुरोध किया उसे समझाने के लिए। मेरे समझाने पर वह गरम पेय भी लिया और मेरे साथ संध्याकालिन प्राकृतिक रूप को निहारने बाहर निकल पड़ा। ठंड से परेशान तो अवश्य थे पर गगनचुंबी पहाड़ की एक के बाद एक सजी सजाई रिजों बड़े बड़े सदाबहार जंगल के हरे भरे वृक्षों की कतारों के आकर्षण में खोया जिसे गांव समझ रहा था तो समतली शहरों को भी मात दे रही थी। काठ एवं सिमेंटेक उपादानों से बने दो मंजिला - तीन मंजिला आठ होमस्टे एवं लगभग पन्द्रह बीस मकान, निर्मित, पक्की सड़क , वैद्युतिन परिसेवा से लैस स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, बड़ी-बड़ी दुकानें, रेस्तरां आदि से लैस क्या इसे गांव कहा जा सकता है! प्रत्येक होमस्टे एवं मकानों के चारो तरफ विभिन्न रंग बिरंगी फूलों के पौधे अपनी उपस्थिति से ओखरे गांव की सुन्दरता में चार चांद लगा रखा था। करीब डेढ़ घंटे बाद हमलोग वापस होमस्टे में लौट आए तथा हमलोगों से पूर्व एक और टीम आई थी उसके सदस्यों ने पुरा डायनिंग हॉल को दखल कर रखा था। हमलोग भी उसी होमस्टे में ठहरे हैं और हम भी कुछ पल वहां बैठकर आराम करेंगे यह उनके विचारों में था हीं नहीं। हमलोगों को देखकर आपस में ऐसे किस्से गढ़ रहे थे एवं व्यवहार दिखा रहे थे जैसे वो लोग शायद विश्व के श्रेष्ठ ट्रेकर हैं। हमलोग बाध्य होकर अपने रूम में चले आए एवं पर्वतारोहण से संबंधित घटनाओं पर चर्चा करते हुए समय कटाया। गत 9 ट्रेन यात्रा और आज की ट्रेन एवं चार चक्के वाली गाड़ी यात्रा से हम सबका शरीर थक कर चूर चूर हो गया था, भूख भी सता रही थी पर डायनिंग हॉल में दखल करने वालों को पता नहीं क्यों हमलोगों के लिए हाल दखल मुक्त करना नहीं चाहते थे। हममें से एक डायनिंग हॉल में आकर केयरटेकर ज्ञानु से संपर्क कर डिनर के बारे में बात किया एवं कहा गया रात दस बजने को है और हमलोगों के लिए अभी तक डिनर व्यवस्था नहीं हुई है। ठीक है मैं व्यवस्था अभी कर देता हूं। आधा घंटा बाद हम सभी लोग डायनिंग हॉल में आ गए, देखा कि श्रेष्ठ ट्रेकरों के सदस्य गण अभी भी उंगलियां चाट रहे हैं। आखिर उनमें से एक ने अपने सदस्यों को धीमी स्वर में डांटने का उपक्रम किया और पांच मिनट भी नहीं हुआ वो लोग डायनिंग टेबल को एकदम गंदा करके चले गए। ज्ञानु का सहायक लाकपा जल्द हीं टेबल साफ कर दिया और हमारी उंगलियां भी डाल भात सब्जी आलू भुजिया तथा चिकेन पीसों के साथ कुश्ती कर रहे थे। भोजन का हर उपादान इतना स्वादिष्ट बनाया था कि कूक की प्रशंसा करने को बाध्य हुए। आज 11अप्रैल हमारी टीम 21कि मी की ट्रेकिंग करने को प्रस्तुत है। सुबह साढ़े सात बजे ब्रेकफास्ट एवं गरम गरम चाय लिया तथा आठ बजे के करीब हमारी ट्रेकिंग आरम्भ हो गई। ट्रेकिंग आरम्भ होने से पूर्व टीम लीडर राना विश्वास ने सभी सदस्यों से अनुरोध किया कि वह टीम लीडर है उसकी बातों को स्वीकार करना होगा। सभी सदस्यों ने सहर्ष स्वीकार किया।इस बार हिमालय की श्रेणी या रीज जो अपने वक्षस्थल पर काफी उंचे एवं मोटे-मोटे तने तथा लगभग तीस से चालीस मीटर की लम्बाई वाले पेड़ों की कतारें हमारा स्वागत कर रही थी। हमलोगों के दाएं और बाएं गहरी ढलान वह भी हरे भरे वृक्षों, बांस की झाड़ियों से सुसज्जित नीचे उतरती ढाल सतर्कता के साथ आगे बढ़ने के लिए उत्साहित कर रही थी। मैं तो अपने इस पार्थिव जगत के हिमालय सा सृजन देख अभिभूत एवं उसकी अपरूप छवि की झांकियां मेरे अन्दर रोमांच का संचार कर रही थी। उस उंची ढाल की चढ़ाई करने के लिए थोड़ी दूरी पर पांच मिनट का विश्राम वाली नीति का अनुसरण किया। मुझे एवं राना को छोड़ कर बाकी सदस्य पर्वत राज के अद्वितीय, अतुलनीय विशेषताओं और सौंदर्य को मोबाइल कैमरे में बन्दी बनाने में व्यस्त थे। वैसे एक विशेष बिन्दु को सबके सामने प्रकट करना चाहूंगा, यह कोई आवश्यक नहीं है कि आप जिस दृष्टि एवं विचार से हिमालय को देख रहे हैं दूसरा भी देखेगा। कारण एक मनुष्य के विचार दूसरे से कभी नहीं मिलता है। मैं हिमालय की विशेषता जैसे उद्भिज्ज,भू-गठन, रहने वाले जीव जंतु तथा ऊंची ढलानों से बहती हुई जलधारा को आत्मसात कर रहा था। पक्षियों की विविधता खास कर पक्षियों की ध्वनि जो समतल में सुनाई हीं नहीं देती है और बहती हुई नीचे उतरती जलधारा को देख आश्चर्य में डूबा हुआ सोच रहा था कि प्रकृति का खेल बड़ा निराला है। यदि ऐसा नहीं होता तो असंख्य पतली पतली जलधाराएं आपस में मिलकर नदी का निर्माण नहीं कर सकती है। हम सभी आंखों में हिमालय को बसाये अवश्य थे पर कदमों में शिथिलता नहीं थी। अधिक उंचाई वाले क्षेत्रों में आवोहवा कब कौन सा रूप ले लेगी कहना बड़ा मुश्किल है। पता नहीं कितनी बार सूर्य के दर्शन हुए। साधारणतया सदाबहार जंगल के वृक्षों की सघनता सूर्य किरणों को भूमि पर प्रवेश करने हीं नहीं देती है और वृष्टिपात के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं किया जा सकता है। कुछ मिनट पूर्व सूर्य प्रकाश से दैदीप्यमान सुन्दरता देखेंगे और अगले हीं पल बारिश की घनघोर बौछारें आपको ऐसा दौड़ाएगी की छिपने की जगह नहीं मिलेगी। चलते चलते हमलोग भार्से रडोडेन्ड्रन सैंक्चुअरी के गेट एवं चेक पोस्ट पहुंचे जहां अन्दर प्रवेश करने के लिए टिकट लेने पड़े। टिकट प्रति व्यक्ति 55 रू। अब हम सैंक्चुअरी के क्षेत्र में प्रवेश कर गए। हमारे दोनों ओर विभिन्न रंग के रडोडेन्ड्रन फूल हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही थी। अब तक तो हम खुशी-खुशी भार्से की फूलबाड़ी में पहूंचुंगा के आकर्षण में चल रहे थे पर अचानक आवोहवा ने अपना रूप बदला। पहले तो हल्की-हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई। हम समझ गए कि बिना बाधा पार किए कांक्षित उपलब्धि हासिल नहीं होने वाली है। इस परिस्थिति में हम सबके लिए आगे बढ़ने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था सो जल्दी जल्दी रेन कोट सैक से बाहर निकाल पहन लिया ताकि भिंगने से बचे रहेंगे तथा पुनः तिव्रता के साथ चलने लगे। सबसे निष्ठुर होता है समय जो किसी की परवाह नहीं करता है भले हीं हंसो या रोते रहो। वह सबको चुनौतियां देकर मानवीय पुरुषार्थ को जगाता है जिससे मानव हर प्रकार के बाधाओं पर विजय पताका फहराए। ट्रेक रूट कठिन से कठिन होता जा रहा था और उसके साथ हीं साथ बारिश का प्रहार विराम लेने से जी चुरा लिया। बड़ी सावधानी से आगे बढ़ रहे थे। हमारी थोड़ी सी असावधानी फिसल कर गिरने से नहीं बचाएगी। फिर भी अदम्य उत्साह के साथ आगे बढ़ रहे थे। भूख भी सता रही थी लेकिन बिच राह में भोजन कहां मिलेगी और उसके लिए हमें हिले गांव पहुंचना हीं होगा जो ओखरे गांव से सोलह कि मी की दूरी पर स्थित है हालांकि हमलोग लगभग हिले गांव के निकट पहुंच चुके थे। बस कुछ हीं देर में हिले गांव आया। सबसे पहले ठंढ से बचने के लिए चाय पीने पड़ेंगे। उसके बाद कुछ खाना होगा। इससे पहले हिले गांव की सुन्दरता का परिचय दे रहा हूं। अनगिनत होमस्टे से सजा गांव तथा तीन चार छोटे छोटे दुकान जिसमें प्रायः सभी वस्तुएं मिलती है एवं एक बड़ा सा कम्युनिटी हॉल जिससे यह टुरिस्टों का अपनी ओर खींचती है। इस गांव की नैसर्गिक सौंदर्य ओखरे गांव को पिछे छोड़ देती है तथा यहां पहुंचने के लिए पक्की सड़क एवं छोटी गाड़ियों की सुविधा भी उपलब्ध है। कम्युनिटी हॉल के बांए सीढियां बनी है पर लगभग तीस मीटर की दूरी तक। उसके बाद पहाड़ी रास्ता छोटे छोटे बोल्डरों को बिछाकर बनी है। कम्युनिटी हॉल के बाजू में एक रिफ्रेशमेंट दुकान में गरम चाय पी और भेज मोमो खाया तब जाकर ठंडी आवोहवा एवं बारिश के क्रोध से आराम मिली। थोड़ी देर तक आपस में बातें करते हुए नयी उर्जा से परिपूर्ण हो पुनः ट्रेकिंग आरम्भ। सीढ़ीयां चढ़ते समय सांस फुल रही है क्योंकि एकदम पचहत्तर डीग्री दीवाल की तरह चढ़ाई । हिले गांव पहुंचते समय बारिश नरम हो गई थी और हमने सोचा चलो अच्छा हुआ जो बारिश थम गई ताकि हमें भार्से रडोडेन्ड्रन सैंक्चुअरी को जी भर कर देखने को मिलेगा और आगामी काल प्रातः भारतवर्ष की द्वितीय एवं विश्व की तीसरी सर्वोच्च शिखर उज्जवल स्वर्णिम आभा को देख अपने को धन्य समझेंगे। लेकिन प्रारब्ध की इच्छा कुछ और हीं थी सो अभी मात्र तीस मीटर की दूरी तय कर पाए कि पुनः बारिश ने हमें हराने के लिए कमर कस ली। हमलोग भी तो मानव की संतान हीं है तो हारेंगे क्यों। मानव अपनी पुरूषार्थ की सहायता से सभी बाधाओं पर विजय प्राप्त कर श्रेष्ठ बना है। हमने दृढ़ निश्चय कर लिया था अब जो भी हो जाए भार्से की ट्रेकिंग पूर्ण होकर रहेगी। हिले से भार्से की दूरी पांच किलोमीटर है अतः इस दूरी को पूरा करके हीं दम लेंगे जबकि वर्षा रानी ने मार्ग को पंकिल व फिसलनदार बना दी। बड़े धैर्य के साथ आगे बढ़ रहे थे। इसमें बड़ा आनन्द आ रहा था। इस आनन्द का एक और कारण आस पास के गांवों से स्थानीय लोगों के लिए भार्से रडोडेन्ड्रन सैंक्चुअरी एक तीर्थ यात्रा के समतुल्य है तभी तो सभी उम्र के स्त्री पुरुषों की भीड़,बच्चे, वृद्ध हंसते गाते आ जा रहे थे। वे लोग पश्चिमी संस्कृति के अनुरूप पोशाक पहने हुए थे जिन्हें भारतीय कम पश्चिमी देश के नागरिक का जीता जागता उदाहरण माना जा सकता है। खैर उनके पोशाक पर क्यूं कोई मन्तव्य करेंगे। भारतीय संविधान ने हर किसी को अपनी इच्छानुसार खाने-पीने, पहनने,घुमने फिरने की बोलने की स्वाधीनता प्रदान किया है। हालांकि इस बारिश में वे लोग भी एक दम से भींग चुके थे पर उनके चेहरे पर कष्ट के स्थान पर आनन्द एवं खुशियों से भरा चेहरा हमारा उत्साहवर्धन कर रहा था। उन्हें देख हमलोगों को लगा कि यदि वे लोग इस ठंड एवं बारिश में कष्टों के स्थान पर खुश हैं तो हम क्यूं घबड़ाए। हम तो भार्से रडोडेन्ड्रन सैंक्चुअरी पहुंच कर हीं रहेंगे। बिच रास्ते में कई बार मैं फिसलकर गिरने से बचा। आखिर भार्से भिउ प्वाइंट पर पहुंचे तो रडोडेन्ड्रन फूल की विविधता देख हमारे सारे कष्ट छू-मंतर। हमलोगों से पूर्व यहां पहुंचे ट्रेकर, टूरिस्ट सभी सेल्फी लेने में व्यस्त थे। इनमें ज्यादातर टूरिस्ट हमारे राज्य के हीं थे। यहां इनका व्यवहार देखकर लग रहा था कि ये लोग केवल आनंद उपभोग करने के लिए आए हैं और शायद अपने को किसी फिल्म के अभिनेता समझ रहे हैं जिन्हें देखने के लिए संभवतः दर्शक उन्हें पर्दे पर देख रहे हो। यहां से हमारा गन्तव्य भार्से गुरास कुंज होमस्टे थोड़ी हीं दूर है। आगे बढ़ते हुए गन्तव्य स्थल पर पहुंच गए। लेकिन हमारी कल्पनाओं पर पानी पड़ गया। यहां इतनी भीड़ थी कि यहां का वातावरण अपनी शांति खो चुका था एवं घुमन्तुओं ने दूषण फैला रखा था। कहीं पर खड़े होने का स्थान नहीं मिला। चुंकी हमलोग बीस दिन पूर्व हीं रूम बूकिंग के लिए अग्रिम राशि का भुगतान किया था ताकि नाइट स्टे एवं डिनर की व्यवस्था हो जाएगी पर संभव नहीं हुआ। केयरटेकर ने हमलोगों के लिए अरेंजमेंट करने का आश्वासन दिया पर हम तैयार नहीं हुए तो उसने हमारी भुगतान की गई राशि वापस लौटा दिया। बारिश तो हमें हराना चाह रही थी पर हमने विजय पताका फहराई। इससे क्रोधित होकर पुनः पूरी शक्ति के साथ एक बार फिर आक्रमण की। आधा घंटा ठहर कर हमलोग भार्से रडोडेन्ड्रन सैंक्चुअरी को विदा कह वापस भिले गांव डाउन वार्ड्स ट्रेकिंग करते हुए लौट आए जहां ओखरे सलाका होमस्टे के लिए हमारी गाड़ी खड़ी थी। इस प्रकार हमारी ट्रेकिंग में केवल भार्से रडोडेन्ड्रन सैंक्चुअरी की सुन्दरता को देख नहीं पाया एवं कंचनजंगा की चोटी के दर्शन नहीं कर पाए। अतः हमारी ट्रेकिंग रोमांचक एवं आनंदमय रही।


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