एक चोर -----------------
एक चोर -----------------
कदमा गांव का रमादिन एक तेरह साल का लड़का था। वह एक अनपढ़ था कारण जब वह प्राथमिक स्कूल में दाखिला लेने लायक हुआ तब उसे सारे काम अच्छे लगते थे पर स्कूल का नाम सुनकर हीं एक सौ पांच डिग्री का बुखार आ जाता उपर से दुष्ट बच्चों के साथ दोस्ती थी जो रमादिन को स्कूल जाना बुड़बक बनना कहा करते थे। उसके माता-पिता ने बहुतेरे कोशिश किए ताकि रमादिन पढ़ना-लिखना सिखे परन्तु सब बेकार। रमादिन स्कूल के लिए घर से निकलता पर स्कूल न जाकर गांव से दूर खेतिहर इलाके में एक बागीचा था चला जाता और अन्य सभी साथियों के साथ मन भर कर खुब खेलता एवं भूख लगने पर फल वाले पेड़ों पर चढ़ पके फलों को तोड़ खा लिया करता था। यह बात जब उसके पिता को मालुम हुआ तो बहुत क्रोधित हुआ और रमादिन को इतना मिठाई खिलाया कि दस दिनों तक बिस्तर से उठ नहीं पाया। मां ने उसे समझाया कि बेटा पढ़-लिख ले दुनिया तुम्हारी सुनेंगे और तेरे पास ढेर सारे पैसे होंगे। पर कौन सुनता है! वह स्कूल जाता हीं नहीं था। तंग आ माता-पिता उसे उसके हाल पर छोड़ दिया। धीरे-धीरे उसकी आयु बढ़ने लगी और दुष्टों के साथ ज्यादा रहने लगा भले ही व्यक्ति उसका दादा का उम्र का क्यों न हो। इस प्रकार से उसके अंदर बुराईयों ने अपना डेरा बना लिया। अब तक वह हाथ सफाई करने में स्पेशलिस्ट बना चुका था यानी चोरी करने में सिद्धहस्त हो गया और इसी समय उसकी दोस्ती हारु जो पड़ोसी गांव फलता का रहनेवाला था से हुई। अब पहले दो हाथ चोरियां करता था वहां चार हाथ से चोरियां होने लगी। गांव वालों की परेशानी बढ़ने लगी और चिंतित हो उठे आखिर चोरियां कौन कर रहा है। वैसे रमादिन को देख कोई नहीं समझ सकता था कि वह चोर है। गांव वालों के सामने एकदम भोलेबाबा तथा सरल स्वभाव के साथ सामने आया करता। गांव में कुछ धूर्त भी थे जो रमादिन की हंसी उड़ाया करते थे और काम करवा कर रमादिन को मजदूरी नहीं देते थे। रमादिन सब समझता था पर दब्बूपन दिखा समय पर अपना मजदूरी अत्यधिक लाभ के साथ वसूला करता था। जबसे हारु का साथी बना चोरियां एक गांव में नहीं बल्कि आस-पास के सभी गांवों में भी होने लगी और गांव वालों को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर चोर है कौन। तब सभी गांवों के ग्रामीणों ने चोर को पकड़ने के लिए पहरादारी करने की योजना बनाई परन्तु चोर इतना चालक था कि पहरेदारों को धत्ता बता चोरी करता था। चोर को पकड़ने में असफल ग्रामीणों ने थानेदारों को सूचित किया। इस प्रकार रमादिन और हारु के सामने पुलिस बाधा बन गई एवं दोनों को सतर्क रहना पड़ा। इसी बीच गांव वालों ने हारु को देख लिया था पर अपनी चालाकी से मुस्कुराते हुए बाहर निकल आया। रमादिन पर भी ग्रामीणों ने शक करना शुरू कर दिया था क्योंकि उसे सदैव हारु के साथ हीं देखा जाता था। दोनों चोर सावधान रहने लगे। पुलिस दोनों के पिछे हाथ देकर पड़ गई। एक दिन जमिंदार दिनदयाल दास के घर सबके सामने चोरी हो गई वह भी दिन में। जमिंदार दिनदयाल दास को ताज्जुब हुआ कि चोरों का इतना साहस उसके घर चोरी किया जबकि उसके जमिंदारी के अधिन किसी की हिम्मत नहीं थी कोई उससे आंखें मिलाए। लेकिन चोरी तो हो चुकी थी। अतः थानेदार को सूचित किया कि चोर को जल्द से पकड़े और धमकी दी कि यदि चोर नहीं पकड़ाया तो उसका बदली और अवनति करवा देगा। एक तरफ ग्रामीणों से पकड़े जाने एवं दूसरी तरफ पुलिस का भय। इधर रमादिन के माता-पिता को उस पर संदेह हो गया था कि रात में उनका बेटा कहां गायब हो जाता है! कहीं रमादिन हीं तो चोरियां न कर रहा हो। यदि किसी दिन पकड़ा गया तो वह गरीब अवश्य है पर ईमानदार व्यक्ति के रूप में लोग उन्हें मानते हैं। इसलिए रमादिन को समझाया कि तूने पढ़ाई लिखाई तो किया नहीं अब हमारी ईमानदारी पर दाग लगाना चाहता है। यदि तूझे हमारी बातें अच्छी नहीं लगती तो हम तूझे खुद पुलिस को सौंप देंगे। यह सुनकर रमादिन घबड़ा गया और हारु को बताया। दोनों दोस्तों ने आपस में राय-मशविरा किया कि कुछ दिनों के लिए अपना काम बन्द कर दिया। लगभग दो माह को हो गये, चोरियां भी नहीं हो रही थी। गांव वालों ने चैन की सांस ली। फिर भी रमादिन एवं हारु पर शक करते थे। उधर पुलिस गिरगिट की भांति उन्हें ढुंढ रही थी ताकि चोरों को पकड़ जमिंदार दिनदयाल से प्रशंसा पाएं एवं बदली तथा अवनति से बचें। बस एक ग्रामीण ने पुलिस को रामदिन और हारु के बारे में बताया। रमादिन के भोलापन और दब्बूपन की बात जान चुका था। इसलिए पहले रमादिन को पकड़ने की योजना बनाई। बचपन के साथियों में एक विशेषता होती है दोस्त जैसा भी हो उसका नुकसान पसन्द नहीं करते हैं। अतः रमादिन को भी सूचना मिली कि पुलिस उसे पकड़ने की योजना बनाई है। उसके कान खड़े हो गए। दो तीन दिन तक काफी परेशान था कि पुलिस से कैसे बचें। चौथे दिन हारु कहता है पाली गांव में हरिकीर्तन का आयोजन हुआ है और हमें चलना चाहिए ताकि कीर्तन में आए लोगों के सामानों को चुराया जाएगा और हम पर किसी को शक नहीं होगा। सो रमादिन माता-पिता से कहा कि वह कीर्तन-भजन सुनने जा रहा है। माता-पिता ने भी सोचा चलो अच्छा हीं है शायद संगत में जा थोड़ा उसमें परिवर्तन हो जाए तो शांति मिलेगी। इस प्रकार दोनों दोस्त कीर्तन में जा बैठे। वहां देव दानव भूत प्रेत दिखने में कैसे होते हैं पर बातें हो रही थी। रमादिन उन बातों को सुनने लगा जबकि हारु किसका शिकार किया जा सकता है जांच कर रहा था। शिकार की पहचान कर उसने रामदिन को अपनी योजना बताई। हरीकिर्तन समाप्त होने पर बैठे हुए श्रोतागण उठकर अपने घरों की ओर जाने लगे। अंधेरा फैला हुआ था सामने से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था परन्तु किसानों को तो रात में भी पैदल चलने का अभ्यास रहता है। इसलिए सभी बड़े आराम से चले जा रहे थे। तभी इनरा नामक व्यक्ति से आ टकराया और वह गिर पड़ा जिससे उसके हाथ की पोटली गिर पड़ी। पास चल रहे ग्रामीणों ने उसे उठाया तभी इनरा इधर उधर कुछ ढुंढने लगा। अन्य ग्रामीणों ने उससे पुछा कि वह क्या ढुंढ रहा है तो उसने कहा आज गेंहू बाजार में बेचा था रुपए वाली पोटली गिर पड़ी है। यह सुन सबने पोटली को ढुंढ़ा पर जब पोटली वहां रहती तभी तो, वह तो हारु के हाथ से रामदिन के पास पहुंच चुकी थी जो रास्ते में हीं एक थान पर गायों भैंसों के बीच बैठा था। इधर पुलिस वाले तो रामदिन को पकड़ने हेतु भूतों का पोशाक पहन छुपते छुपाते उसका पिछा करते हुए आ रहे थे और उस थान में किसी को देखा जो एक गाय कि पीठ सहला रहा था। अचानक सामने किसी भूत को देख उसकी धोती ढिलि हो गई। डर के मारे उसकी घिग्घी बंध गई। तभी वह भूत उसकी ओर बढ़ने लगा और एकदम निकट आ चुका था कि तभी रमादिन की दृष्टि भूत के पैरों पर पड़ी। उसने देखा भूत के पैरों के पंजे तो उल्टे नहीं है, इसका मतलब सामने आया कोई भूत नहीं है बल्कि मानव हीं है। बस आव न देखा ताव न देखा थान में रखी एक बांस उठाया और भूत को मारने दौड़ा एवं चोर चोर कहकर चिल्लाने लगा। उसकी चिल्लाने की आवाज सुनकर पास पड़ोस के खलिहानों में पहरा दे रहे लोग लाठी लेकर दौड़ पड़े। अब भूत का वेश धारण किया हुआ पुलिस वाले अपनी जान बचाने सर पर पैर रखकर भागा। आज तो रमादिन पुलिस से पकड़े जाने पर बच गया और ईश्वर को धन्यवाद दिया। अन्य पहरेदारों के जाने के बाद उसके हिस्से की सामानों को देख सोचने लगा कि इसे यदि मैं बेचने गया तो अवश्य पकड़ा जाउंगा, क्यों न इसे कीर्तन वाले स्थान पर रख दूं तो मेरे उपर कोई भी सन्देह नहीं करेगा।बस जैसी सोच वैसा कार्य। कीर्तन के आयोजकों ने उसे पहचान लिया कि यह तो रमादिन है। उसे आशीर्वाद दिया तथा कहा हमलोग तुम पर व्यर्थ हीं सन्देह कर रहे थे। और भगवान से प्रार्थना किया हे भगवान! अच्छे एवं भोले रमादिन पर कृपा करना। इसके बाद रमादिन का मन कुछ सोचकर भाराक्रांत हो गया और घर वापस जाते समय पुरा रास्ता सोचता रहा कि छोटी सी ज्ञान की बातें सुनकर मैं पुलिस के हाथों पकड़े जाने से बच गया और यदि मैं भी पढ़ाई लिखाई कर ज्ञान प्राप्त करता तो मुझे बहुत ज्यादा लाभ होता। उसके माता-पिता ने अगली सुबह जब रमादिन को खटिया पर सोया देखा तो आश्चर्य चकित हो गये। पिता ने कहा लगता है आज चोरी करने नहीं गया पर उसकी मां बीच में बात काटते हुए बोली-ऐसा क्यों कहते हो, मेरा बेटा चोर नहीं है। माता-पिता की बात सुनकर उसकी नींद खुल गई और संग हीं संग रात की घटना मस्तिष्क में उभर आई। पर किसी से कुछ नहीं कहा तथा नहा धोकर तरो ताजा हुआ और घर से निकट एक मिडिल स्कूल थी उसमें उसके पिता का एक परिचित उसी स्कूल में शिक्षक था। रमादिन उनसे जाकर मिला और कहा कि क्या मैं पढ़ाई लिखाई सिख सकता हूं। उस शिक्षक ने एक बार को उसका चेहरा देखा और कहा-हां तुम अब भी पढ़ लिख सकते हो। अब रमादिन की दिनचर्या बदल गई एवं एक दिन वह पढ़-लिखकर उसी मिडिल स्कूल में शिक्षक के पद पर नियुक्त हो गया। ****************
