विनती का प्रसाद

विनती का प्रसाद

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तुम हमें प्यार तो करते हो न ! यह प्रश्न है या संदेह, प्रेयसी की कुटिल मुस्कान के साथ अधरों से निकले ये शब्द मिश्री से घुले हुए प्रतीत होते हैं पर आज यह प्रश्न बड़े ही सहज ढंग से पूछा गया था, जिसे पूछते समय न कोई मुस्कान थी न ही कोई मिठास। 'बात क्या है हृदयास्वरी' आज तुम इतनी रुखाई से यह प्रश्न क्यूँ कर रही हो ? 'आपसे जितना पूछा गया है उतना जवाब दो' यह कहकर विनती जोर से फूट-फूटकर रोने लगी। प्रसाद के हाथ आज आज विनती के आँसू पोंछने के लिए न जाने क्यों नहीं बढ़ रहे हैं ?

विनती के अचानक व्यवहार परिवर्तन से प्रसाद भी सकते में आ गया है। वैसे तो यह प्रश्न विनती ने प्रसाद से अनगिनत बार पूछ चुकी थी और प्रसाद हर बार एक ही उत्तर देता आ रहा था कि यह भी कोई पूछने की बात है ? पर आज विनती का इस तरह से आते ही अचानक प्रश्न दाग देना बहुत कुछ कह रहा था। प्रसाद को थोड़ा बहुत समझ तो आ रहा था कि विनती के घरवाले उसके रिश्ते की बात चला रहे हैं, पर वे दोनों सदैव से आश्वस्त थे कि अपने अपने घर वालों को इस रिश्ते के लिए मना लेंगे। प्रसाद की विनती से पहली मुलाक़ात स्कूल के दिनों से है।

प्रसाद ने दसवीं करने के पश्चात जब नए स्कूल में दाखिला लिया था तो पहले ही दिन उसकी आँखें एक भूरी आँखों वाली लड़की से टकरा गई थीं पर वह तो लड़कपन था, जो न कुछ जानता था और न ही समझता। उस उम्र में हर एक लड़की की मुस्कान में सारे जहां की खुशियाँ समाई होती हैं। प्रसाद की आँखों में विनती की मादक मुस्कान घर कर गयी थी पर स्कूल के दिनों में न तो प्रसाद में इतनी हिम्मत थी और न ही विनती में साहस। आपस में दोनों बात तो कर लेते थे पर प्रसाद ने कभी विनती को प्रपोज़ नहीं कर पाया। मन की चाहत मन में ही धरी की धरी रह गईं थीं।

ये चाहतें ग़ुबार बन कर लावा की तरह फूटने को लालायित रहती थीं पर बारहवीं का रिजल्ट आ गया और दोनों जुदा हो गए। विनती के दिल के अरमान दिल में ही धरे रह गए। उसे प्रसाद का उसको चिढ़ाना बहुत प्यारा लगता था। ऊपरी मन से से भले ही वह प्रसाद को कड़वे बोल बोलती रही हो पर दिल से सदैव चाहती रही कि प्रसाद उसे छिपकली ही बुलाए। यही हाल प्रसाद का भी था, दिन रात सदैव विनती ही विनती दिखती थी। किताबों में विनती, नदियों की धार में विनती। भगवन भजन में होने वाली विनती तो विनती ही थी, उसे साक्षात अपनी विनती दिखती।

इस तरह यादों के सैलाब को समेटे प्रसाद ने स्नातक में दाखिला लिया और विश्वविद्यालय की चहल पहल में विनती आई गई हो गई पर दैव को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन प्रसाद ट्रैन पकड़ने की जल्दी में इलाहाबाद स्टेशन के फ्लैटफॉर्म नंबर एक पर भागते हुए एक लड़की को ट्रेन में चढ़ाने के लिए मदद की पेशकश कर दी। उस लड़की ने प्रसाद का हाथ झिटक दिया और झिड़कते हुए बोली, 'तुम जैसे बहुत लफंगे देखे हैं जो मदद के बहाने लड़कियों को फसाते हैं फिर उनका शोषण करते हैं, तुम अपनी हद में रहो।'

प्रसाद बुरी तरह से झेंप गया था और पैसेंजर गाड़ी की खिड़की वाली सीट में गर्दन झुकाये चुपचाप बैठा था तो अचानक से उसके कन्धे पर स्पर्शानुभूति हुई। उसने ऊपर की ओर गर्दन उठाई तो मानो सारा जहां ही उसे मिल गया !

अरे तुम ! बुद्धू ! क्यों शर्म से गड़े जा रहे हो ? मुझे पता है तुम्हारे साथ क्या हुआ ? और विनती जोर से हँसने लगी।

प्रसाद अब और भी झेंप गया, 'अरे वो वो.....' वह कुछ कहना चाहता था पर मुँह से शब्द फूट ही नहीं रहे थे और ऊपर से विनती का इस तरह से व्यवहार और प्रश्न दर प्रश्न और अट्हास। प्रसाद ने जोर से झिड़का, चुप्प ! उस समय से चुहलबाज़ी करती जा रही हो। फिर शर्माते हुए बोला:- सॉरी विनती ! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था और में चिल्ला पड़ा। आई एम रियली सॉरी ! इट्स ओके प्रसाद। दरअसल गलती मेरी है। मैंने आपको फ्लैटफॉर्म में आते हुए देख लिया था। यह मेरी फ़्रेंड स्नेहा। 'हेल्लो' स्नेहा ने हाथ बढ़ाते हुए बोला। फिर बातचीत का दौर शुरू हुआ और गाड़ी में ही मोबाइल नंबर एक्सचेंज कर लिए गए।

फिर जो बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो स्कूल के दिनों का प्यार और प्रगाढ़ होता गया। बातचीत के बीच ही कब किसने प्रपोज़ किया या बिना प्रोपोज़ के ही प्यार परवान चढ़ा। दोनों को कुछ भी याद नहीं। फिर मुलाकातों का सिलसिला अनवरत जारी रहा। वैसे तो दोनों की शादी में कोई विघ्न नहीं दिखता क्योंकि प्रसाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर है जिसका लाखों का पैकेज है और विनती स्वतंत्र विचारों वाली लड़की पर दोनों के बीच मे रोड़ा था तो जाति !

जाति हाँ भाई जाति ! जाति मनुष्य द्वारा बनाई गई वह शाक्तिशाली व्यवस्था है जिसे ऋषि, मुनियों की कठोर तपस्या भी पिघला नहीं पाई। जाति अलिखित व्यवस्था है जिसे संवैधानिक प्रावधान भी हिला नहीं सके। जाति की नींव इतनी गहरी रोपी गयीं हैं कि अंग्रेजों की सत्ता भी डुला न सकी। जाति समाज का वह अभिन्न अंग है जिसके बिना मनुष्य नंगा प्रतीत होता है। जाति मनुष्य को रोटी भले न प्रदान कर पाए पर ऊँचा मान सम्मान जरूर दिल देता है। जिस जाति की नींव को बड़े बड़े सूरमा हिला-डुला न पाएं हों उसे क्या प्रसाद और विनती का प्यार डिगा सकता था ? इसी उधेड़ बुन में आज प्रसाद में विनती के आँसू तक पोंछने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी। जबकि सैकड़ों बार सरस्वती घाट, कंपनी बाग और ना जाने कहाँ कहाँ में दोनों ने आलिंगनबद्ध साँसों के ऊफान को झेला था। तब न जाने प्रसाद का जाति मलीन और विनती का जाति गौरव कहाँ धुल गया था ? फिर क्यों आज प्रसाद के हाथ बंध से गये हैं। 

प्रसाद ने साहस बटोर कर विनती के न केवल आँसू पोछें बल्कि अपना कन्धा भी बढ़ा दिया जिस पर विनती टिककर अपने आँसू ख़त्म कर लेना चाहती है। प्रसाद ने गालों पर थपकी देते हुए प्यार से बोला क्या हुआ मेरी गंगोत्री ? अक्सर प्यार से प्रसाद विनती को कभी हृदयास्वरी तो कभी गंगोत्री के संबोधन से सम्बोधित करता है। जब विनती के आँसुओं का सैलाब रुका तो उन दोनों को एहसास हुआ कि वे चौराहे में सभी के लिए कौतूहल का विषय हैं। विनती ने शरमाते हुए प्रसाद का हाथ खींचती हुई सिविल लाइन्स की ओर पग बढ़ा दिए। प्रसाद ने उसे सांत्वना देते हुए कहा- आओ हमारी अपाचे हमारी सवारी कराने के लिए तैयार है।

'यह तुमने कब ले लिया।' अपाचे देखते ही जैसे विनती सब कुछ भूल सी गई।

अपाचे की जिद्द तो विनती ने ही कि थी और प्रसाद ने उसकी खुशी के लिए ही अपाचे खरीदा था जबकि उसकी दिलचस्पी बाइक में बिल्कुल भी नहीं है। प्रसाद ने अपाचे का हैंडल पकड़ा और विनती ने प्रसाद के कंधे और छाती के बीच कोण बनाते हुए सीटबेल्ट बना लिया और अपाचे भारद्वाज चौराहे से सिविल लाइन्स की ओर उड़ चली।

थॉर्नहिल रोड में कुछ लोग एक बाइक सवार को घेर कर खड़े हैं। चारों ओर से बस एक ही सवाल दागा जा रहा है, यह तुम्हारी कौन है ? तुम इसे कहाँ ले जा रहे थे ? और तुमने ! तो जैसे लाज शरम सब बेच खायी है। खुल्लम खुल्ला आशिक़ी चल रही है। इन प्रश्नों के बौछार से प्रसाद और विनती बौखलाए जा रहे हैं। नेहरू रोड़ से जैसे ही बाइक थॉर्नहिल रॉड की ओर मुड़ी थी, कुछ चार छः लोगों का गैंग जिसके हाथ में लाठी डंडा हॉकी स्टिक इत्यादि शोभायमान थे प्रसाद को रोक लिया था और उससे उसका आईकार्ड छीन लिया था जिसमे उसकी जाति मोटे अक्षरों में टाँकी गई थी और गैंग में से कुछ लोग विनती को पहले से ही जानते थे।

बाइक रूकते ही प्रसाद को अच्छा खासा प्रसाद दे दिया गया था। विनती कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। गैंग के सरग़ना ने पुलिस को कॉल कर दिया और पुलिस के दो मुस्तैद जवान भी मौका-ए-वारदात पर तशरीफ़ ले आये थे, जो प्रसाद को बचाने के बजाय गैंग के साथ थे। उनको भी जैसे कोई मनोरंजन मिल गया था। प्रसाद ने हिम्मत करके पुलिस वालों से कहा था कि आप गुंडों का साथ दे रहे हो !

पुलिस1:- बेटा खुल्लम खुल्ला आवारागर्दी करते हो और पुलिस को आंखे तरेरते हो, तू तो लंबा जाएगा।

पुलिस2:- पुलिस की पॉवर तूने अभी देखी कहाँ है और पुलिसिया अलंकारों से विभूषित किया।

प्रसाद और विनती को कुछ समझ नहीं आ रहा था। विनती जिस बात से डरती थी कि घरवालों को उपयुक्त समय पर प्रसाद से मिलवायेगी, उसका खुलासा यूँ होने वाला था। और प्रसाद के मंसूबे धरे के धरे रहने वाले थे कहाँ उसने सोचा था कि विनती का इशारा मिलते ही वह उसके माँ-बाप से उसका हाथ मांगेगा पर पुलिस वाले तो जिद पर अड़े थे कि जब तक घरवालों को नहीं बुलाओगे, वे उन्हें नहीं छोड़ेंगे।

जॉर्ज टाउन का आलीशान बँगला लाइट से जगमगा रहा है। लाइट की कलात्मकता देखते बनती है, ब्लिंक करती लाइट बँगले की खूबसूरती में चार चाँद लगा रहीं हैं। बँगले में काफी चहल-पहल है। सभी मेहमान से लेकर मेजबान तक के चेहरों पर खुशी के ग़ुबार देखे जा सकता है। अगर कोई खुश नहीं है तो वह है विनती। विनती अपनी मेहँदी से लेकर संगीत तक मे आँसू बहाए हैं। उसे खूब समझाया बुझाया गया है कि बेटी जो कुछ भी हो रहा है तेरी भलाई के लिए किया जा रहा है। तू आशीष के साथ बहुत खुश रहेगी। आशीष का बंगलौर में अपना खुद का थ्री बीएचके फ्लैट है एक बहुत बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर है जिसका प्रसाद से चार गुना का पैकेज है और सबसे बड़ी बात अपनी जाति बिरादरी का है। अभी तक उन लोगों को तेरे और प्रसाद के रिश्ते के बारे में कुछ भी पता नहीं है और यह पता लगना भी नहीं चाहिए। 'पता लगना भी नहीं चाहिए' यह धमकी विनती के भाई गुस्सैल सिंह की है। दरअसल भाई इतना गुस्सैल है कि सभी उसे गुस्सैल सिंह ही बुलाते हैं असली नाम तो उसका कब का गायब हो चुका था। 'अगर जरा सी भी गलती हुई तो प्रसाद अपनी जान से हाथ धो बैठेगा।' विनती अपने प्रसाद के लिए तो कुछ भी कर सकती है शादी क्या चीज है ? प्रसाद की जान की धमकी कारगर हो गयी थी। इस धमकी ने ही विनती को आशीष से शादी के लिए हाँ करवा दिया। भारी मन से अधरों पर जबरदस्ती चिपकाई गई मुस्कान के साथ अंगेजमेंट हो गयी।

पुलिस थाने से विनती को उसके भाई और बाप ने लाकर सीधे उसके कमरे में पटक दिया था। विनती के लिए सख्त हिदायत दे दी गई थी कि यह घर से बिल्कुल भी बाहर नहीं निकलेगी और उसका मोबाइल फ़ोन भी छीन लिया गया था। थाने से आने के बाद एक भी बार विनती की प्रसाद से बात नहीं हो पाई थी और अब ये शादी की तैयारी के बीच प्रसाद की याद तो बहुत आती थी पर पता था कि मैंने जिद की तो प्रसाद जान से हाथ धो बैठेगा। इन तीन महीनों में तो विनती के आँसू भी सूख गए थे। अब न वह हँसती थी न ही रोती, वह सिर्फ चलती फिरती लाश थी।

आज शादी का दिन था। लाल जोड़ा पहने विनती खूबसूरत लग रही थी। उसकी चाहत थी कि लाल जोड़े में सबसे पहले उसे प्रसाद देखे, पर प्रसाद क्या देखेगा उसे ? उस बेचारे का तो थाने से लौटने के बाद कुछ पता ही नहीं लग पा रहा था। अपनी सहेलियों के मार्फत कितना प्रयास किया था कि प्रसाद से एक बार बात हो जाती ! उसे सब कुछ बता दिया जाता पर उसका तो पूरे शहर में कुछ पता ही नहीं लग पा रहा था। आज लाल जोड़े वाली लड़की को एक सहेली के मार्फ़त प्रसाद के बारे सूचना प्राप्त हुई। वह सर पर पैर लेकर लाल जोड़े में ही घर से तेजी के साथ भागी। लाल जोड़े में अपाचे पर सवार दुल्हन को देखने के लिए हर गली चौराहे में आँखे फाड़ी जा रही हैं। आगे आगे अपाचे में लाल जोड़े में लड़की पीछे पीछे कार और बाइक से नाते रिश्तेदार, अपाचे जॉर्ज टाउन से सिविल लाइन्स से होते हुए नए यमुना ब्रिज की ओर सरपट भागी जा रही है।

यमुना ब्रिज में कुछ लोग एक नव युवक को पकड़कर मारपीट रहे हैं। वे उसे जान से मार देना चाहते हैं। तभी हनहनाती अपाचे आ जाती है जिसमे लाल जोड़े पर हाथ में लहराती हुई पिस्तौल के साथ साक्षात चंडी सवार है। नवयुवक को पकड़े हुए गुंडे के हाथ में गोली लगती है और लाल जोड़े वाली लड़की उस युवक को खींचकर अपाचे में बिठाते हुए चिल्लाती है यह विनती का प्रसाद है, इसका कोई बालबांका भी नहीं कर सकता है।


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