चौथा खंभा

चौथा खंभा

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चारों भाई आज बहुत ही चिंतित प्रतीत हो रहे थे। दीवानी से मुक़द्दमा जीतने के बाद वे सीधे उसी घर पहुँचे थे जहाँ का यह परिवाद था। घर कुछ जर्जर स्थिति में पहुँच गया था। इसका जीर्णोद्धार कराना पड़ेगा। सोच सोचकर उनकी हालत पतली हुई जा रही थी। सांप छछूंदर सी गति हो गयी थी न तो निगलते बन रहा था न ही उगलते। जिस घर में कब्ज़े के लिए इतने पापड़ बेले, उसकी यह दशा। तभी सबसे बड़े भाई नियम सिंह के दिमाग का कीड़ा कुलबुलाया और वह अपने से छोटे भाई करम सिंह से मुख़ातिब होकर हौले हौले मुस्कुराते हुए कहा कि हम इस घर का जीर्णोद्धार ही नहीं बल्कि शहर का सबसे आलीशान महल बनाएँगे। उन दोनों ने तीसरे भाई दृष्टि सिंह से कहा कि आप शहर के सभी घर देखकर आओ, हम मिलकर शहर का सबसे आलीशान महल बनायेंगे। एक लंबे अंतराल के बाद एक आलीशान महल का डिज़ाइन बनकर तैयार था। चार खम्बे इस महल को मज़बूती प्रदान कर रहे थे। चारों खम्बों को उपयुक्त दूरी पर रखा गया था जो महल को न केवल सन्तुलन प्रदान कर रहे थे बल्कि जरूरत के मुताबिक एक दूसरे का भार भी सहन कर सकने की पोजीशन देने लायक रखा गया था। डिज़ाइन बनाने वाले ने इस बात का बख़ूबी ध्यान रखा था कि किसी एक के कमज़ोर होने पर महल की सेहत पर ज्यादा असर न पड़े। अब डिज़ाइन को अमलीजामा पहनाया जाना था और साथ ही सबसे छोटे और दुलारे भाई बड़बोले सिंह की पढ़ाई लिखाई और तंदुरुस्ती का भी ख्याल रखा जाना था। अतः तीनों ने छोटे भाई को एकदम फ्री कर दिया कि भाई तुम सिर्फ अपनी तंदुरुस्ती का ख्याल रखो और खूब पढ़ो और खेलो। तुम्हें महल की चिंता बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए। उसके लिए हम तीनों काफी हैं।

इधर डिज़ाइन को लगभग अमली जामा पहनाया जा चुका था। उधर बड़बोले सिंह ने अब तक अपनी पढ़ाई पूर्ण कर ली थी और उसकी तंदुरुस्ती देखने लायक थी। क्या डोले शोले बनाये थे। छः नहीं बल्कि आठ पैक बना लिए थे। एक ही घूंसे में जहां को धराशायी कर देने की कुव्वत पा ली थी। सीधे सादे शब्दों में कहा जाए तो आधुनिक भीम थे बड़बोले सिंह। क्या मदमस्त चाल थी कि मतवाला हाथी शर्म से निढ़ाल हो जाये। क्या फुर्ती थी कि चीता पानी मांगे। चतुराई क्या कहना कि लोमड़ी को शिक्षा प्रदान कर दें। इस प्रकार से सज्ज थे हमारे बड़बोले सिंह जी। बात बात में शक्ति प्रदर्शन को लालायित रहने वाले बड़बोले जी को अपनी शक्ति प्रदर्शित करने के अवसर की तलाश रहती।

इधर हमारे बड़बोले जी का समाचार पूरे शहर को ज्ञात हो चुका था। उधर शहर के जाने माने जलन सिंह और ईर्ष्यारानी भी पूरे शहर में अपना काम पूरे ईमानदारी से करने में लगे हुए थे। विशेषकर ईर्ष्यारानी सदैव ही अपना काम करती ही है। सूर्य अपना रास्ता भूल जाये। मौसम अपनी नियत। पर कभी ईर्ष्यारानी अपना काम करना भूल सकती! जबसे जलन सिंह और ईर्ष्या रानी ने शहर में एक आलीशान महल के निर्माण का समाचार सुना है तभी से वे अपना कार्य करने में लग गए थे पर इतनी ईमानदारी के बावजूद भी उनसे सफ़लता जाने क्यों दूर भागती थी। हालाँकि बाह्यरूप से तो महल को कई बार गंदा करने का प्रयत्न किया जा चुका था पर आंतरिक भित्तियों को गंदा करने की लालसा उन्हें चिंतातुर बनाये रखती थी। सफलता न मिलने पर भी दोनों की सेहत पर असर नहीं पड़ रहा था। वे सदैव वैसे ही अपना कार्य करने में व्यस्त पाए जाते थे।

नियम सिंह और करम सिंह को अपने छोटे भाई बड़बोले सिंह की शक्तियों पर न केवल पूर्ण विश्वास था बल्कि गुमान भी था। दृष्टि सिंह बड़बोले की हरकत को नज़रअंदाज़ करते रहते हैं। हालाँकि बड़बोले बात बात पर भड़कते रहते। फिर भी उसकी हरकतों पर किसी का ध्यान नहीं गया। इसी बीच जलन सिंह से बड़बोले का सापका पड़ गया। जलन सिंह अपना कार्य करने में कामयाब हो गए। अब बड़बोले को लगने लगा कि इस आलीशान महल में किसी एक का ही अधिकार होता तो कितना अच्छा होता। जब से उसे यह जानकारी मिली है कि शहर की कुछ अन्य शक्तियां उनके महल को तहस नहस करना चाहती हैं या उनके महल को क्षति पहुंचाने का प्रयास कर रहीं हैं। उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और इस गुस्से में वह अपना भरपूर मुक्का तथाकथित चौथे खम्बे पर दे मारा। इस मुक्के का प्रहार इतना भयानक था कि चौथा खंभा चरमरा गया। इसका परिणाम अन्य तीन खम्भों पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जिसके कुछ लक्षण तो स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे हैं कि अन्य तीन खम्भे भी लड़खड़ा रहे हैं।


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