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Birendra Nishad शिवम विद्रोही

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Birendra Nishad शिवम विद्रोही

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जथातंत्र का तंत्र

जथातंत्र का तंत्र

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"सुनीता तुम्हे नहीं लगता कि आजकल बापू जी थोड़ा आलसी होते जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि वे कुछ न कुछ सोचते रहते हैं। मेरे ऑफिस जाने के बाद तुम ठीक से उन्हें खाना खिलाकर दवाई वग़ैरह देकर तो घर से निकलती हो न?"

सुनीता, जथातंत्र के राहुल के घर की काम वाली बाई है। वह काम वाली बाई कम राहुल की धाय माँ है। फिर भी राहुल सुनीता को सुनीता ही बुलाता है। बचपन से ही बापू जी के मुँह से सुनीता को सुनीता बुलाते सुना है। जब तोतली भाषा में पहली बार राहुल ने सुनीता को थुनीता बुलाया था तो सुनीता और बापू जथातंत्र की हँसी नहीं थमी थी, फिर तो जान बूझकर बापू जी या सुनीता राहुल के मुँह से थुनीता सुनना चाहते थे और उसी का परिणाम है कि माँ की उम्र की नौकरानी को राहुल पूरे हक से सुनीता बुलाता है और सुनीता उसे राहुल बाबा। 


"जी बाबा, बापू जी आलसी बिल्कुल नहीं है, वो तो"...... कहते कहते सुनीता रुक गई।

क्या हुआ क्या बता रही थी तुम? 

कुछ नहीं बाबा! मैं कह रही थी कि आप शादी करलो, बहुरानी आएंगी तो घर, घर लगने लगेगा और बाबू जी का अकेलापन दूर हो जायेगा।

तुम भी न, कुछ भी बकती रहती हो। तुम सिर्फ बापू जी की सेहत का ख्याल रखो और उनको किसी भी प्रकार की तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए। वैसे सुनीता तुम क्यों नहीं हमारे साथ ही रह लेती हो! बापू जी से बात करने वाला भी कोई मिल जाएगा और तुम्हें शाम सुबह आने जाने की तकलीफ से छुटकारा। राहुल से जब भी शादी की बातचीत की जाती वह इसी प्रकार से बात को घुमा देता। उसने कभी भी किसी लड़की की बात में रुचि ही नहीं दिखाया। बाबू जथातंत्र की चिंता का एक कारण यह भी था। वे सोचते कि क्या लड़के में किसी प्रकार की कमी है या इस लड़के ने मुझे ही अपनी जिंदगी मान ली है। वैसे सच भी तो यही है कि बाबू जथातंत्र की दुनिया राहुल से शुरू होकर राहुल में ख़त्म हो जाती है और राहुल की दुनिया जथातंत्र में।


जब राहुल की माँ ने राहुल और जथातंत्र को छोड़ा था तो जथातंत्र की उम्र ही क्या थी? पुरूष की पैंतीस छत्तीस की उम्र क्या ज़्यादा होती है और दो माह के दुधमुंहे बच्चे को छोड़कर चले जाने वाली माँ की कमी को पूरा करने के लिए क्या नई माँ नहीं लाई जा सकती? ऐसे तर्क सुनते सुनते जथातंत्र नाते रिश्तेदारी से कटने लग गए थे। हद तो यह थी कि राहुल के अपने नाना नानी जथातंत्र के ऊपर दूसरी शादी कर लेने का इतना दबाव बनाया कि बेचारे जथातंत्र ने उनसे धीरे-धीरे बातचीत बन्द कर दी। वे सोचने लग गए कि राहुल की नानी तो राहुल की माँ की माँ हैं, उन्हें तो राहुल के प्रति दुगुना ममत्व होना चाहिए। वे क्यों राहुल के लिए सौतेली माँ चाहती हैं, जबकि यह जग-जाहिर है कि एक आध अपवाद छोड़कर सौतेली माँ आदर्श नहीं बन पाईं हैं। क्या मैं अकेला राहुल के माँ बाप दोनों नहीं बन सकता? राहुल के माँ बाप बनते बनते एक एक कर सारे दोस्त-यार, नाते-रिश्तेदार यहाँ तक कि खुद के भाई बहन माँ बाप सबसे दूरी बनती चली गई। एक समय तो ऐसा आ गया कि राहुल ही जथातंत्र कि दुनिया बन गया। राहुल के पालन पोषण हेतु सुनीता जैसी नौकरानी मिल गई जो ममत्व की साक्षात देवी है। सुनीता की दुनिया भी राहुल और जथातंत्र के इर्द-गिर्द सिमटने लग गई। शुरू में तो वह इसी आलीशान बंगले में रह कर राहुल का पालन पोषण करती थी, पर अब वह बंगले से तकरीबन एक कोस की दूरी पर बने फॉर्म हाउस में रहती है।


सुबह का नाश्ता करने के पश्चात राहुल आफिस चला जाता है ,और सुनीता बाबू जथातंत्र की नाश्ता दवा इत्यादि रखकर फॉर्महाउस के काम में लग जाती है। ऐसे में बेचारे जथातंत्र अकेले पड़ जाते हैं। राहुल के माँ-बाप दोनों की जिम्मेदारी उठाते उठाते वे समाज, दीन-दुनिया सबसे कटते चले गए। रिटायरमेंट के पश्चात, जब उन्हें यह अहसास हुआ तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी। अब राहुल की शादी की चिंता होने लगी है, उसमें भी सबसे बड़ी बात रिश्ते का दूर दूर तक कोई निशान नहीं दिखाई देते और राहुल का किसी लड़की से कोई सम्बंध भी नहीं है। जथातंत्र ने जब भी राहुल से शादी या लड़की की बात करने का प्रयत्न करते हैं, वह बात को घुमा देता है। जथातंत्र कि निगाह में दूर दूर तक कोई लड़की नज़र नहीं आती, क्योंकि उनकी दूर की नज़र नज़दीक जाकर ही रुक जाती है। समाज की जरूरत इसीलिए होती है, नाते-रिश्तेदार भी इन्ही अवसरों पर काम आते हैं। हमारी नज़रें भी उन्ही तक पहुंच पाती हैं जहां बातचीत हो रही हो। जथातंत्र की तो सारी रिश्तेदारी, सारे नाते, सारा समाज राहुल तक खत्म हो जाता है। बेचारे बहुत परेशान रहने लगे हैं। सिर्फ सुनीता से ही कभी कभार वे राहुल के सम्बंध में बातचीत करते हैं। सुनीता ने जथातंत्र को बात ही बात में एक उपाय सुझाया की क्यों न शादी के संबंध में एक इश्तेहार दे दिया जाए? उपाय तो पसंद आया पर जथातंत्र को राहुल का डर सताने लगा कि कहीं राहुल को पसंद न आये तो! उन्होंने ने मन ही मन ठान लिया कि कुछ तो करना पड़ेगा।


अगले दिन शहर के सभी नामी समाचार पत्रों में एक विज्ञापन इस प्रकार से छपा।

चाहिए! चाहिए! चाहिए!

एक होनहार, गृह कौशल दक्ष, सुशील कन्या।

शहर के रईस, बाबू जथातंत्र के बंगले में उचित पगार पर सेक्रेटरी पद हेतु!


बाबू जथातंत्र की निगाह थी कि राहुल को पता भी नहीं चलेगा और एक लड़की घर आ जायेगी। लड़की का सानिध्य पाते ही राहुल की पुरुष ग्रंथि जागृति हो जाएगी। फिर क्या? पुरुष की यह ग्रंथि जागृति होने की देर है, फिर तो वह सारी हदें लांघ जाता है, बाप की जिम्मेदारी क्या चीज है? जथातंत्र मन ही मन अपने इस अचूक तरकस के निशाने के इंतजार का आंनद उठा रहे थे। तभी द्वार की घंटी बजी। सामने इंद्र दरबार से सीधे उतरी हुई अप्सरा खड़ी थी। जथातंत्र ने आपाद-मस्तक कन्या को निहारा। सघन बालों से बनी चोटी नितम्ब तक स्पर्श कर रही है। चमकते ललाट पर माथबेंदी के सजावट की आहट दिखाई पड़ रही है, सुरमाई आँखे व लंबी नुकीली नाक और पतले गुलाब की पंखुड़ी नुमा ओंठ गोलाकार चेहरे पर खूब फब रहे हैं। कुल मिलाकर बला की खूबसूरत बाला है। जब मेनका ने विश्वामित्र जैसे तपस्वी की तपस्या भंग कर दी तो मेरा राहुल किस खेत की मूली है। ये सोच ही रहे थे कि कन्या ने पूंछ लिया: क्या ये बाबू जथातंत्र जी का बँगला है? ज्ज्जी.. मैं ही जथातंत्र हूँ। 

नमस्ते! मेरा नाम असिता है, मैं आपका विज्ञापन देखकर आई हूँ।

आओ! आओ! अंदर आ जाओ। देखो मेरे यहाँ नेरे अतिरिक्त मेरा बेटा राहुल है और एक नौकरानी सुनीता है जो शाम सुबह आती है तथा दिन के समय फॉर्महाउस में रहती है। 

क्या नाम बताया था? हाँ हाँ, असिता! देखो असिता मुझे सेक्रेटरी नहीं घर के देखभाल हेतु एक लड़की की जरूरत है। क्या तुम यह कार्य कर सकती हो? क्या पगार लोगी?

असिता: सर जो आप तय करें। घर की देखभाल में क्या करना होगा? मुझे खाना बनाना बिल्कुल नहीं आता।


अरे उसकी चिंता मत करो, उसके लिए सुनीता है। तुम्हे मेरे बेटे राहुल का ख्याल रखना होगा, थोड़ा लापरवाह है, न। शाम को आएगा, आज ही मिलकर जाना। और तुम्हारे घर में कौन कौन हैं?


मम्मी, मैं और एक छोटा भाई।


और पापा?


वे नहीं हैं। 


माफ़ करना, बेटा। मुझे मालूम नहीं था।


अरे नहीं, वे दुनिया छोड़कर नहीं गए। उन्होंने हमें छोड़ दिया है। जब मेरी उम्र दस साल की थी, वे एक दूसरी औरत के साथ हमें छोड़कर दूसरे शहर चले गए हैं। तब से उनसे हमारा कोई वास्ता नहीं है। न ही उन्होंने कभी मुड़कर देखा और न ही हम लोगों ने उनके बारे में पता करने की कोशिश की है।


"ग्रेट! यू आर वेरी स्ट्रांग पर्सन! स्पेशियली, योर मॉम। सॉरी, मैं कुछ ज्यादा भावुक हो गया।"


"कोई बात नहीं सर। मैं रात्रि में आठ बजे के बाद नहीं रुक पाऊँगी, सर मेरे ऊपर माँ और भाई की भी जिम्मेदारी है। हालाँकि मेरी मम्मा आत्मनिर्भर हैं, फिरभी मेरा फर्ज है कि मैं उनकी फिक्र करूँ।"


"ग्रेट, तुमसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। बेटा तुम्हे कितनी पगार चाहिए।"


"जो आप तय करें।"


"बीस हज़ार। ठीक है।" 


ओके, फिर मैं कल से आती हूँ।


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