सूचनाओं का भ्रमजाल

सूचनाओं का भ्रमजाल

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प्रश्न बहुत जटिल होते हैं या उनका उत्तर खोजना? समझने का प्रयत्न करना कि वास्तव में प्रश्न के माध्यम से पूछने वाला क्या जानना चाहता है या उत्तरकर्ता क्या उत्तर देना चाहता है? मंगई के लिए यह समझना वाकई बहुत कठिन है। मंगई सीधा साधा गँवई आदमी है जिसे दुनियादारी की उतनी ही समझ बची है जितना भोंपो बाँधकर बाऊ शाब लोगों ने उसे समझने दिया है। उसकी अपनी समझ न जाने कब की इन भोंपू वाली शोरशराबा ने हरण कर लिया है। अब तो उसे वही सही लगता है जो इन लोगों ने बता दिया। मंगई को बताया गया है कि सब कुछ अच्छा होने वाला है, उस अच्छा होने की उम्मीद ने मंगई को जीने का एक नया आसरा दिया है। जब से मंगई की पत्नी दिलजोई उसके जीवन मे आई है, उसे सबकुछ अच्छा होने ही उम्मीद ज्यादा बढ़ गई है। दिलजोई हमेशा ही चमत्कारी कहानियाँ सुनाती रहती। उसकी कहानियों में कभी कोई नायिका चमत्कार करती तो कभी पौराणिक गाथाओं को तोड़ मरोड़कर ऐसा पेश करती कि मंगई की उम्मीदें और बढ़ जातीं। या फिर दिलजोई ऐतिहासिक घटनाओं को इस ढंग से परोसती की वह आत्ममुग्ध हो जाता।

मंगई के दोस्त भी ऐसे बने जो छोटी छोटी बातों को भी बढ़ा चढ़ा कर पेश करते रहते। मंगई इन दोस्तों को सूचक कहता, हालाँकि वे उस तक सूचनाएं कम पहुंचाते बल्कि सूचनाओं में ऐसे नमक मिर्ची लगाकर पेश करते कि सूचनाओं का भ्रमजाल खड़ा हो जाता। उस बेचारे के जीवन में अच्छा होने की उम्मीद ने जाने क्या क्या करा दिया। जब भी दोस्तों से मिलता सकारात्मक प्रशंसा सुनने को मिलती। सूचक उसे कहते तुम दिनोंदिन स्मार्ट होते जा रहे हो। तुम्हारे चेहरे पर निखार आता जा रहा है। तुम्हारे बाल रेशमी होते जा रहे हैं। अब तो तुम बिन कपड़ों के सलमान खान लगते हो। तुम्हारी चाल चीते जैसी हो रही है। तुम पर तो सारा जहां मरने को होने लगा है। ऐसी प्रशंसा सुनकर कौन प्रशन्न नहीं होगा? देवताओं को भी ये प्रशंसा मंत्रमुग्ध कर लेती हैं, मंगई बेचारा तो एक भोलाभाला इंसान है। जबकि उसे पता है कि वह कपड़े नहीं पहनता क्योंकि कपड़े खरीदे हुए जाने कितना समय हो गया है न कि सलमान दिखने के लिए! यहाँ तक कि जब वह अकेले में आईने के सामने अपने आप को देखता तो पाता कि चेहरे पर झुर्रियां छाई रहती हैं। बाल दिनोंदिन खिचड़ी होते जा रहे हैं। रीढ़ की हड्डी भी झुक गयी है। कमर कमान बनती जा रही है। पर ऐसे सूचक सच्चाई को जाने क्यों बाहर नहीं आने देना चाहते! आज मंगई दुविधा की उस ऊँचाई में पहुँच गया है जहाँ से उतरना नामुमकिन तो नहीं मुश्किल जरूर होता जा रहा है। इसलिए आज वह फैसला कर लेना चाहता है कि या तो वह सूचकों से मिलना बंद कर देगा या घर से आईना निकाल फेंकेगा। क्या आप उसकी इस दुविधा को दूर करने में मदद कर सकते हैं?


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