विधवा सास

विधवा सास

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“कमला, आज बड़े दिनों बाद स्वाद से खाना खायी हूँ ...माँ की याद आ गई।” शांति, वाशबेसिन में हाथ धोते हुए बोली।

“ऐसी बात है, तो, तू हर सन्डे मेरे घर आ जाया कर। दोनों मिलकर अच्छी-अच्छी बातें किया करेंगे और साथ में खाने का मज़ा भी लेंगे।”

“बात तो पते की है, पर क्या करूँ! सप्ताह में एक ही दिन तो बचता है, ऑफ़िस जाने-आने में कैसे छः दिन बीत जाता है, पता ही नहीं चलता !"

खैर..छोड़, एक बात बता.. जो तुम्हारे यहाँ खाना बनाती है, वो कितने पैसे लेती है। सच, बहुत टेस्टी खाना बनाती है। उसे मेरे घर भी भेज दिया कर। तू जितना बोलेगी, उतना पगार उसे दे दिया करूंगी।”


“हाँ....पर...वो...। कमला की आवाज़, किचन से आती बूढ़ी पर, अचानक से नजर पड़ते ही अटक गई।”

“बेटी..अब मुझसे ज्यादा जगह काम नहीं हो पाता..बस, इतना ही कर लेती हूँ..वही ठीक है। बेटी, एक बूढ़ी, विधवा को जीने के लिए, पेट से अधिक और क्या चाहिए !!” पानी भरा जग मेज पर रखते हुए बूढ़ी बोली।

“कोई बात नहीं.. आप मेरी दोस्त के घर को ही अच्छे से संभाल कर रखिए।” शांति झट से बात को वहीं खत्म करना बेहतर समझी।

“कमला, देर हो रही है। मैं जाना चाहती हूँ...घर पहुँचते-पहुँचते शाम हो जायेगी।”

“शांति, आज संडे है। यहीं रुक जा..। मजा आएगा।”

“नहीं कमला, जाना बहुत जरूरी है, मेरी सास की तबियत खराब चल रही है। वो, दवा मेरे ही हाथ से खाती है। बोलती है, “बहू.. मैं तेरे ही हाथ से दवा खाऊँगी...तू दवा आराम से और प्यार से खिलाती हो।”


“अरे...? कमला ! उसे देखो। लगता है.. वो रो रही है ?!”

“क्या हुआ... आपको, मैंने तो कुछ नहीं कहा!? ” शांति, बूढ़ी औरत के समीप जाकर बोली।

“नहीं बेटी, आँसू का क्या भरोसा कब टपक पड़े ! ऐसे ही कुछ याद आ गया।”

“अरे.. खड़ी होकर, यहाँ क्यूँ नौटंकी करती हो?..जा.. किचन, जल्दी से काम निपट।” कमला, बूढ़ी औरत पर बरस पड़ी।

“हाँ..ब..ह...उ...।” शब्द, कान में पड़ते ही...शांति भौचक रह गयी।

“ये क्या... सुन रही हूँ ? कमला ? तुम्हारी सास है.!? और तुम मुझे ...? ओह! तुझे,अब दोस्त कहने में शर्म आ रही है !”

कमला का चेहरा नीचे झुक गया। मानो उसके ज़ुबान में ताला लग गया।


फौरन...जबरदस्ती, कमला की सास को अपनी कार में बैठा कर, इतना कहते हुए .. ”चलो, माँ जी मेरे साथ... वहाँ आपको बहु के अलावा एक बहन भी बात करने को मिल जायेगी।" शांति ने कार स्टार्ट किया।

कमला की सास का चेहरा और तलहटी, खिड़की के शीशा से चिपका हुआ था। कार के बाहर कमला अवाक सब देख रही थी...!” बुढ़ापे के कैक्टस पर एक सुनहरा फूल मुसकुरा उठा।


टिप्पणी-- हमारे समाज की यह एक विडंबना है, कि जब सास बूढ़ी और विधवा हो जाती है तो घर में बहू द्वारा उसे प्रताड़ित किया जाता है। इसी विषय को केन्द्र में रखकर, मैंने कथा को सकारात्मक रूप से रखने का प्रयास किया है।

ऐसा होना गलत ही नहीं अपराध भी है। बूढ़ी सास के साथ नौकरानी जैसा बर्ताव करना, क्योंकि अब वह विधवा हो गई, गलत ही नहीं अपराध भी है।जिसका विरोध उसी के घर आयी उसकी सहेली ने किया है। जो सच में क़ाबिले तारीफ है।

घर में बूढे ,असहाय लोगो का सम्मान होना चाहिए। इस कथा का यही संदेश है।


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