Priyanka Gupta

Romance

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Priyanka Gupta

Romance

वह प्यार नहीं था ;बस आकर्षण था day-23

वह प्यार नहीं था ;बस आकर्षण था day-23

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यह उस दौर की कहानी है ,जब यह माना जाता था कि ," खेलोगे -कूदोगे बनोगे खराब और पढ़ोगे -लिखोगे तो बनोगे नवाब। " हमारे पापा खुद गांव के स्कूल में टीचर थे तो ,घर पर भी उनका बड़ा सख्त अनुशासन था। मजाल हम पढाई -लिखाई के अलावा किसी और बात में ध्यान दे दे। गांव में पापा की छत्रछाया में रहते हुए हमने दसवीं बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर ली थी ,अगर हम कहें कि हम अपनी क्लास में टॉप करते थे ,तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ।हमने अपनी किशोरावस्था के तीन -चार वर्ष ,अगर आज की भाषा में कहूँ तो बिना कुछ हैप्पनिंग किये ही बिता दिए थे । घर से स्कूल और स्कूल से घर ,इतनी सी ही थी हमारी दुनिया। 

दसवीं के बाद गांव में स्कूल न होने के कारण मम्मी -पापा ने हमें शहर में पढ़ने भेज दिया था। बड़े भैया भी वहीँ पढ़ते थे ,तो हम भैया के साथ ही रहने लग गए । 

हम पहली बार गांव से दूर शहर के खुले वातावरण में आये थे ।हमारे लिए सब कुछ बड़ा ही नया था। पापा के सख्त अनुशासन के बाद मिली स्वतंत्रता का महत्व हमारे लिए बहुत अधिक था और सच कहूँ तो इतनी स्वतंत्रता हम पचा नहीं पा रहे था और स्वतंत्रता के दुरूपयोग की बहुत सम्भावना बन गयी थी। 

भारतीय सिनेमा में भी वह स्टूडेंट रोमांस का दौर था। गांव में रहते हुए कभी किसी लड़की से बात न करने और रोमांटिक फिल्मों के असर के कारण हमारे भी जीवन में एक अदद प्रेमिका होने की बड़ी ख़्वाहिश थी। कुछ नुस्खे फिल्मों से मिले और कुछ नए बने दोस्तों से । प्रेमिका की तलाश बड़ी जोर शोर से होने लगी थी ,जो कि हमारे घर के पास जाकर ही समाप्त हुई .वह हमारे घर के पास ही रहती थी।हमें हमारे ख़ुफ़िया सूत्रों से यह जानकारी मिल गयी थी कि लड़की अभी तक सिंगल ही थी.

हमने अपनी पड़ौसी लड़की को ही अपना पहला प्यार बनाने के लिए फील्डिंग शुरू की। शाम को वह लड़की साइकिल से टाइपिंग सीखने जाती थी ,वह वक़्त हमारी मैथ्स की ट्यूशन क्लास का था। लेकिन हमें तो एक प्रेम कहानी चाहिए थी तो हमने क्लास बंक करके उसके पीछे -पीछे जाना शुरू कर दिया। उसके टाइपिंग इंस्टिट्यूट के बाहर जाकर हम खड़े हो जाते थे। वहां खड़े -खड़े ही उसकी क्लास ख़त्म होने का इंतज़ार करते। जब वह घर की और जाती तो हम भी उसके पीछे -पीछे वापस लौट आते। घर से टाइपिंग इंस्टिट्यूट और टाइपिंग इंस्टिट्यूट से घर के हमारे चक्कर जारी थे। 

उसे इस बात की भनक थी कि हम उसका पीछे करते हैं ,लेकिन उसने कभी कोई शिकायत नहीं की। हमारे दोस्तों ने इसका मतलब यह बताया कि लड़की भी हम में इंटरेस्टेड है ,लेकिन हम ही आगे बढ़कर उससे बात नहीं कर पा रहे थे। ऐसे ही २ महीने बीत गए ,इसी बीच हमारी अर्धवार्षिक परीक्षा हुई। हमेशा कक्षा में अव्वल आने वाले हम २ विषयों में अनुत्तीर्ण हो गए थे। लेकिन हम पर तो अपने पहले प्यार का भूत सवार था तो हमने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। 

एक दिन जब वह घर लौट रही थी तो उसकी साइकिल की चैन निकल गयी। वह लगाने की कोशिश करने लगी ,लेकिन चैन लग ही नहीं रही थी। हम दूर खड़े होकर उसे देख रहे थे ,पास जाकर मदद करने की हिम्मत नहीं हो रही थी। तब ही उसने बड़ी कातर नज़रों से हमारी तरफ देखा। हम उन नज़रों का सामना नहीं कर सके और सीधा उसकी मदद को आ गए। हमने बिना कुछ बोले उसकी साइकिल की चैन लगा दी और मुड़कर वापस जाने लगे। 

हमें वापस जाता देखकर उसके होंठ हिले और वह बोली ," रोज़ तो हमें घर तक छोड़कर आते हो ,आज बीच रास्ते से ही वापस क्यों जा रहे हो ?"

उसका इतना कहना था और हम अपनी साइकिल घुमाकर उसके साथ ही चलने लगे। "हम तुम्हारा पीछा करते हैं ,यह जानकार तुम्हे गुस्सा नहीं आया। " हमने हीरोगिरी दिखाते हुए पूछ लिया। 

"नहीं ,हमें बुरा नहीं लगता। ", उसने मुस्कुराकर कहा। 

"हमारा नाम श्याम है और तुम्हारा। ", हमने उससे पूछा। 

"जैसे तुम्हें मेरा नाम ही नहीं पता ,ज्यादा बनो मत। हमारी क्लास का टाइम तक तो तुम्हें पता होता है। ", उसने शरारत से कहा। 

"पता है ,लेकिन तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं। बता भी दो न। ", हमने इसरार करते हुए कहा। 

"मीरा ", उसने बड़े प्यार से बताया।

हमारे घर की गली आते ही उसने बोला ," श्याम अब हम अकेले ही जाएंगे। कहीं किसी ने देख लिया और घर पर बता दिया तो मुश्किल हो जायेगी। "

ऐसा कहकर मीरा चली गयी थी और उधर पता नहीं कैसे हमारे अर्धवार्षिक के नंबर पापा को पता चल गए थे। पापा हमें समझाने के लिए शहर आये और हमने पापा से आगे अपना परिणाम सुधारने का वादा भी किया। लेकिन हम वह वादा जल्द ही भूल गए ,क्यूंकि अब हमारी प्राथमिकता कुछ और जो हो गयी थी। 

 मीरा से बातचीत शुरू हो गयी थी। शहर में दशहरे का १० दिन का मेला भरता था। हमने मीरा से मेले में चलने के लिए कहा और मीरा मान गयी। हम सज -धजकर मीरा को लेकर मेले में पहुँच गए। हम दोनों ने पहले गोलगप्पे खाये ,फिर बर्फ का गोला। उसके बाद हम दोनों ने चकरी झूला खाने के लिए गए। टिकट लेकर हम झूले पर चढ़ गए। जैसे ही झूला ऊपर गया ,वैसे ही मीरा डरकर हमसे चिपक गयी। मीरा के चिपकने से हमें मानो हज़ारों वोल्ट का झटका लगा। मीरा ने डर से अपनी आँखें बंद कर ली थी और उसका चेहरा ,बिलकुल हमारे चेहरे के सामने था। हम मीरा के लबों पर अपने लब रखने ही वाले थे कि हमें नीचे अपने पापा और भैया दिखाई दिए। 

हमारी सिटी -पिट्टी गुम हो गयी थी। हमें काटो तो खून नहीं। हम कब नीचे उतरे ?कब पापा ने हमारे कान पर एक झापट रसीद किया ?हमें कुछ ध्यान नहीं था। मीरा तो झूले से उतरते ही बिना हमारी तरफ देखे चली गयी थी ,वह हमारे भैया को पहचान जो गयी थी। इसके साथ ही हम पर से पहले प्यार का भूत उतर गया था। उसके बाद हमने मुड़कर नहीं देखा ,आज जब ज़िन्दगी में एक अच्छे मुकाम पर हैं तो समझ गए हैं कि वह प्यार नहीं था ;बस आकर्षण था। 


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