वह कोई नही था (एक प्रेम कथा)
वह कोई नही था (एक प्रेम कथा)
आराध्या दर्द से कराह रही थी कुछ होश में भी आ चुकी थी उसने महसूस किया वो किसी भरी चीज़ के नीचे दबी हुई है , उसने अपने आस पास देखा घोर अंधेरा जंगल जैसी जगह थी आस पास बहुत सारे लोग रोते बिलखते इधर उधर घूम रहे थे कुछ अपने परिजनों को ढूंढ रहे थे कुछ अचेत पड़े थे ,, उसे याद आया कि वो तो ट्रेन में थी ,, ओह तो ट्रेन का एक्सिडेंट हुआ था। उसने कोशिश करके खुद को उस भारी सामान के नीचे से मुक्त किया ।
वो आगे बढ़ी कभी किसी की मृत देह पर पैर पड़ता तो कभी किसी घायल की चीख सुनाई देती , इस सबसे वो बहुत घबरा गई थी । सबकुछ ट्रेन त्रासदी में खो चुका था उसके पास न पैसे थे न उसका मोबाइल , आराध्या का गला भर आया । बारिश का मौसम था ठंडी हवा चल रही थी।
वो बदहवास सी चलती चली जा रही थी रोती बिलखती तभी उसे अपने कंधे पर एक हाथ महसूस हुआ ।
उधर कहां जा रही हैं वीरान जंगल है वो ,, एक लड़के की आवाज़ उसके कानों में पड़ी उसने पलट कर देखा फिर हैरानी से पूछा , आप कौन हैं ,,?
मैं मुकुंद,,,, मैं भी ट्रेन हादसे का शिकार हूं,,। उस लड़के ने जवाब दिया उसके चेहरे पर मुस्कान थी।
अच्छा,,, आराध्या अब भी हैरान थी ।
मुकुंद - चलिए उस तरफ वहां देखिए कुछ रौशनी दिख रही है । वहां चलते हैं शायद हमे मदद मिल जाये ।
आराध्या ने हां में सर हिलाया और उसके साथ बढ़ गई ।
वो लोग एक ढाबे पर पहुंचे वहां ,, ढाबे पर सभी ट्रेन के घायल लोग जख्मी हालत में थे ढाबे वाले उन सभी घायल लोगों की मदद कर रहे थे कुछ लोग उन घायल लोगों को उठाकर लेकर आ रहे थे। और ज़ख्मों को साफ कर प्राथमिक चिकित्सा दे रहे थे।
तभी मुकुंद ने ढाबे पर एक लड़के को आवाज़ दी ,, छोटू एक चाय लेकर आ इनके ,, ।
ठीक है भैया अभी लाया ,,, कहकर छोटू चाय लेने चला गया ।
आप उसे कैसे जानते हैं आपने तो कहा था आप ट्रेन हादसे का शिकार हैं ,,। आराध्या ने हैरानी से पूछा।
हां ,, वो मैं यहां कई बार पहले आ चुका हूं । मुकुंद ने मुस्कुरा कर जवाब दिया । आराध्या हैरान थी कि हादसे में लगभग सभी को चोट आई थी सिवाय मुकुंद के ।
मुकुंद ने फर्स्ट एड बॉक्स छोटू से मंगा कर आराध्या के सर पर पट्टी कर दी । फिर उसे चाय बिस्कुट देकर दवा दे दी और उसे वही बेंच पर सोने के लिए कहकर जैसे ही वो उठने लगा । आराध्या ने मुकुंद का हाथ पकड़ लिया ।
मुकुंद ने उसे हैरानी से देखा फिर इशारे से पूछा क्या हुआ ,,?
ट्रेन में सभी को चोट आई है,, तुम्हे एक खरोच भी नही ऐसा कैसे,,? आराध्या अपनी बड़ी बड़ी पलके झपका कर उसे हैरानी से देख रही थी।
क्योंकि मैं आपातकालीन खिड़की पर बैठा था तो जैसे हादसा हुआ मैं उससे निकल लिया। मुकुंद्र हर बात का जवाब बहुत ही शांति और धैर्य से दे रहा था।
कुछ देर में वहां मौजूद सभी घायल यात्री सो गए ,, सुबह उन सबकी आंख खुली तो ढाबे पर कोई मौजूद न था । सभी हैरान थे कि ढाबे के सारे लोग कहां गए।
आराध्या भी इधर उधर मुकुंद को ढूंढने लगी तभी उसकी नज़र दीवार पर खरोच कर लिखे शब्दों पर पड़ी , जिसे उसके साथ बाकी यात्रियों ने भी उसे पढ़ा। बड़े बड़े अक्षरों में जिस पर लिखा था।
सालों पहले यहां एक ट्रेन त्रासदी हुई थी , उस दौर में न मोबाइल थे न संपर्क करने का कोई तरीका । उस त्रासदी में हम सब मारे गए कोई भी नही बचा था , हमारी मदद करने वाला कोई नहीं यहां ये ढाबा भी नही था सुनसान जंगल में हम सबकी जाने चली गई ,, आज इस ट्रेन त्रासदी से आप सबको बचाकर हम सबकी आत्मा मुक्त हुई आप सबके कारण हमे मुक्ति मिली इसलिए आप सबका बहुत धन्यवाद।
ये शब्द पढ़कर वहां मौजूद सभी की आंखे नम हो गई , अब तक वहां पुलिस , मीडिया , और उस ढाबे के लोग भी पहुंच चुके थे , दीवार पर लिखे उन शब्दों को पढ़कर सभी भाव विभोर हो उठे थे ।
मतलब वो सब भटकती पुण्यात्मा थी ,,,, जो मुक्ति के लिए हम सबकी मदद कर रही थी , मतलब मुकुंद एक आत्मा ,,,, आराध्या का सर चकरा गया । वो खुद से ही बड़बड़ा रही थी , मतलब वह कोई इंसान नही था । वह कोई नही था आराध्या के मन में मुकुंद के लिए हैरानी और सम्मान दोनो थे ।

