दोस्ती (एक अनूठा संबंध)
दोस्ती (एक अनूठा संबंध)
दस साल बाद मैं अपने बचपन के दोस्त से मिलने वाली थी , उस दिन मैं इतनी खुश थी कि पहले कभी इतनी खुशी महसूस नहीं की थी मैं सोच में थी कि तभी... मेरे मोबाइल पर कॉल आती है ।
"हैलो! हां आयूष कहां है तू कितनी देर में आएगा 10 बजे बोला था अभी नहीं आया "
" आ रहा हूं श्रद्धा यही बताने के लिए फोन किया कि दोपहर में 2 बजे तक आऊंगा"
"ओके " इतना कहकर मैंने मोबाइल रख दिया
मैंने नाश्ते की सारी तैयारी कर ली थी फिर पापा को फोन किया -
"हैलो पापा कितनी देर में आएंगे आप आयूष आने वाला है मैंने बताया था ना मेरे बचपन का दोस्त "
"बेटा बहुत काम है हम नहीं आ सकते कोई बात नहीं बुला लो हम उसका व्यवहार जानते है अच्छा समझदार लड़का है और तुम पर भी भरोसा है हमें "
"अच्छा ठीक है पापा"
दोपहर में 2 बजते ही दरवाज़े पर दस्तक हुई मैंने दरवाज़ा खोला आयूष मेरे सामने था, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था।
मन उसके गले से लग जाने को हुआ पर मेरे माथे के सिन्दूर ,
गले के मंगलसूत्र और जवानी की उम्र इन सबने मिलकर एक मर्यादा की रेखा खींच दी थी हमारे बीच , शायद वो भी यही सोच कर थोड़ा पीछे हट गया कि अब हम बच्चे नहीं है।
पहले की बात और थी तब हम बच्चे थे गले से लग सकते थे एक दूसरे को मार सकते थे पर अब जवानी ने मर्यादा की एक सीमा में बांध दिया था हमें
हमने बहुत बाते की उस दिन सारी पुरानी बातें
मेरी शादी में मैंने उसे नहीं बुलाया क्योंकि मुझे लगा की वो मुझे भूल गया होगा और वो आया भी नहीं।
हमारी दोस्ती तब शुरू हुई जब हम दोस्ती का मतलब भी नहीं जानते थे, जब हम छोटे बच्चे थे 1st क्लास में साथ पढ़ते थे।
1st क्लास से 10th क्लास तक हम साथ में पढ़े फिर मैंने कोचिंग क्लास बदल दी थी और उसने भी मिलना कम हो गया हमारा 2 साल बाद आयूष बाहर चला गया अपनी पढ़ाई के लिए
मैं भी बाहर चली गई तो मिलना हुआ ही नहीं दोबारा ।
एक बार मिले भी संयोग से तो अनजानों की तरह चले गए मुझे लगा कि 2 साल हो गए पहचानेगा या नहीं उसने भी यही सोचा हम लोगो को मोबाइल भी 12th क्लास पास होने के बाद दिया जाता था कॉन्टैक्ट नंबर लेना तो दूर बात करने की भी हिम्मत नहीं हुई हम दोनों की ।
अब मेरी शादी को 2 साल हो चुके थे मैं अपने मायके में थी एक दिन मेरी बहन ने मुझसे पूछा
दी आप आयूष भैया को जानती हो ?
"हां आयूष मेरा दोस्त है बचपन से मैं अपनी उसे परेशानी भी बताती थी क्यों क्या हुआ? "
"हुआ कुछ नहीं उनकी बहन मेरी फ्रेंड है मैं उनके घर गई थी तब उन्होंने मुझसे आपका नाम लेकर पूछा की मैं आपकी बहन हूं "!
आयूष मुझे भूला नहीं था मैं खुश थी अब बस एक बार उससे मिलना चाहती थी बात करना चाहती थी ।
किसी तरह उसकी बहन से मैंने आयूष का कॉन्टैक्ट नंबर लिया पर फोन करने हिम्मत नहीं थी अब भी डर था अगर नहीं पहचाना तो आखिर मैंने उससे बात की वो मेरे बुलाने पर घर आया। आज भी मैं अपनी परेशानी से निकलने के लिए उसका सहारा लेती हूं और वो मेरी बात सुनता भी है और समझता भी है ।
सच में कुछ रिश्ते भगवान के बनाए होते है जो हर रिश्ते से ऊपर और हर रिश्ते से पवित्र होते हैं , ऐसे रिश्ते जो आत्मा से जुड़े होते है , अगर समझा जाए तो दोस्ती का रिश्ता सबसे पवित्र होता है जिसमें मर्यादा और पवित्रता की साधना की जाती है ।
जय माता की