बढ़ती दूरियां
बढ़ती दूरियां
आज सुबह सुबह एक गाना ये दूरियां....इन राहों की ये दूरियां। सुन रही थी, बेहतरीन है, म्यूजिक दिया है प्रियम सर ने और गायक हैं मोहित चौहान जी।
सच ही तो है कितनी दूरियां है इन राहों में....जो एक संतान को उसके पिता से दूर कर देती है ।
पिता का संघर्ष लिख सकूं इतनी क्षमता नहीं मेरी...
8 फरवरी... सन 1994 मेरा जन्म पापा के लिए खुशी का अवसर लग रहा था....ऐसा कहते हैं वो । उनकी पहली संतान ज्यादा दिन उनके साथ न रह सकी....इसलिए मुझे देखकर खुशी से रो पड़े थे वो। अक्सर बीमार हो जाया करती थी मैं....मां के साथ पापा की आंखों से भी नींद उड़ जाया करती थी। 22 साल की उम्र, नौकरी के लिए संघर्ष मेरी और मां की जिम्मेदारी....पापा ने कभी अपनी जिम्मेदारियों को नहीं छोड़ा,, आख़िर कार पापा को सरकारी नौकरी मिल ही गई मेहनत सफल हुई, लेखपाल बन चुके थे पापा। हम गांव से शहर में आ चुके थे। पापा क्या कहूं उनके बारे में....शब्द कम पड़ जाएंगे।
संसार में मेरे पापा सबसे अच्छे हैं। याद है मुझे मेरे पापा कभी मुझे घोड़ा बनकर खेल खिलाते थे,तो कभी मुझे कंधे पर बिठा कर घुमाते थे। हां कभी कभी सजा देते थे मारते भी थे....वो क्या है कि पापा ठहरे मैथ्स और साइंस के अनुभवी शिक्षक, जॉब से पहले वो एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थे....और मैं बेचारी....मैथ्स और साइंस तो मेरी समझ से बाहर था आज भी बाहर है। तो कभी कभी थप्पड़ लग जाते थे दो चार । समय बीतता गया, मेरे छोटे भाई बहनों का जन्म हुआ....पापा के पास समय की कमी हो गई पर एक बात कहना चाहूंगी पापा हमेशा मेरे दोस्त बनकर रहे, मुझे कभी अपने माता पिता से कुछ छुपाना नही पड़ा। उन्होंने मुझे खुले मिजाज़ के साथ जीना सिखाया। बचपन बीता जवानी आई और आ गया सियापा। अपनी दुनिया में मैं रहने लगी....परिवार से दूरियाँ बढ़ने लगी,। पर इस सब में एक बात अच्छी थी मैं अपनी मां के और भी ज्यादा करीब होती गई । लिखना मेरा शौक था मां समझती थी पापा समझते हुए भी नासमझ रहते थे क्योंकि जब एक्जाम होते थे तब कविताएं आती थी क्या करूं स्ट्रैस होता था माइंड पर....एग्जाम का प्रैशर होता था....मेरी कहानी कविताएं....जोर शोर से लिखी जाती थी, और पापा की डांट वो तो और भी शिखर पर पहुंच जाती थी....।
अरे माउंट एवरेस्ट से ऊंची भाई,
दीवानी सी रहती है हर वक्त....एग्जाम में पढ़ाई की जाती है....ना कि कविताएं लिखी जाती है, सुधर जाओ वरना जिंदगी भर असफलता मिलेगी ।
बेरोजगार लेखक को कोई नहीं पूछता, तब लगता था एक लेखक होकर भी पापा मुझे क्यों नहीं समझते....पर सच तो ये है वो उस भयानक संघर्ष की तपिश से मुझे बचाना चाहते थे,, जो संघर्ष कभी उन्होंने किया था पर कहते हैं ना जीवन का निर्धारण नियति करती है हम नहीं।
कालचक्र ने घटना क्रम में ऐसा चक्र चलाया....फिर हम सबके जीवन में भी घोर अंधेरा छाया।
जब बरबादी आती है तो किसी न किसी रूप में सामने आ जाती है, जवानी में एक बार हर किसी का दिल धड़कता है....मेरा भी धड़का, पर अफसोस एहसास तब हुआ जब सब बिखर गया।
एक ही कॉलेज में पढ़ते थे हम....बस डिपार्टमेंट अलग थे कभी कभी हाय, हैलो हो जाती थी। कहना तो बहुत कुछ चाहती थी पर कभी कह नहीं पाई डरती थी....कही दोस्ती न टूट जाए....मैं उन्हें दूर से देख कर ही खुश हो लेती, पर अब अफसोस होता है....एक बार दिल की बात कह ही देती शायद एक्सेप्ट कर लेते और न भी करते तो एक रिजैक्शन ही तो मिलता....उसका मान रखना मेरा फर्ज होता।
मां को बोला उनके बारे में, कि एक दोस्त है कॉलेज में अच्छे परिवार से हमारे जैसा ही संपन्न परिवार है, जातिवाद का कोई चक्कर नहीं है....वो भी ब्राह्मण परिवार से हैं बस अभी पढ़ाई कर रहे हैं, मां ने पूछा तुम्हारी क्या बात हुई है, मैंने कहा कुछ भी नहीं....बस मित्रता है, बाकी लड़कों से अलग हैं वो मुझे अच्छे लगते हैं, कभी कभी मदद मिल जाती है उनसे पढ़ाई में, मैंने उनसे कुछ नहीं कहा और कहूंगी भी नहीं, उनसे बात आप करेंगी, मां ने हैरानी से मुझे देखा तो मैंने मासूमियत से अपनी पलकें दो तीन बार झपका दी....मां एक पल को मुस्कुराई फिर थोड़ा सख्त लहजे में बोली, और वो लड़का क्या चाहता है,? मैंने कहा मुझे नहीं पता उनके मन में क्या है ये भी आप ही को पता लगाना होगा ।
मां ने कहा, ठीक है....पढ़ाई करो सोचेंगे इस बारे में, ।
मैं खुश थी....मैं मां के सीने से लग गई, मैंने कहा, मां मैं उन्हें कभी अपने मन की बात नहीं बताऊंगी, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का चरित्र पढ़ कर बड़ी हुई हूं मर्यादा का खण्डन नहीं करूंगी ।
ये पहली और आखिर बात थी जो हम दोनों ने आपस में बैठ कर की,,,
एक भयानक रोड ऐक्सिडेंट में मां गुज़र गई, घर की जिम्मेदारियां बढ़ गई....सब बिखर गया था मेरी बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई पूरी होने वाली इस बीच मेरे पास उनके भाई का फोन आया, सीधा मुझसे कह दिया गया कि अगर वो अपनी ज़िंदगी में आगे नहीं बढ़ पाए तो जिम्मेदार मैं कहलाऊंगी, दोस्ती की सीमा होती है उस सीमा में रहो, समझ नहीं पा रही थी कि वो मेरी केयर हद से ज्यादा क्यों करते हैं, मन की बात मन में दबी थी, न वो कुछ कह पाए न मैं समझ पाई, न मैं कुछ के पाई न वो समझ पाए, उस दिन बहुत रोई थी मैं, मैने कह दिया कि मुझे आपसे दोस्ती नहीं रखनी, मतलब था आपसे पढ़ाई में मदद चाहिए थी अब पढ़ाई पूरी हुई, दोस्ती खत्म हुई।
वो उसी वक्त शहर छोड़ कर चले फोन नंबर बदल दिया कहा गए, पता नहीं।
चाहत तो उन्हें भी थी मेरे लिए ऐसा उनके दोस्तों से पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी । पापा ने मेरी शादी जबरदस्ती कर दी....मैंने कुछ नहीं कहा, क्या कहती मैं पापा से मैं उसका जिसके मन की बात मैं जानती तक नहीं।
पापा का फैसला सर झुका कर मान लिया जो सही था, उस वक्त लग रहा था की उन्होंने बहुत गलत किया है मेरे साथ पर अब लगता है सही था सब....जिनसे मेरी शादी हुई वो एक काबिल इंसान हैं अच्छे हैं मेरी हर बात समझते हैं उन्होंने मुझे एमबीए ( मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन ) की पढ़ाई कराई हमेशा सपोर्ट करते हैं पर मन की किसी कोने में अब भी वो नाम धड़क उठता है शिव। क्योंकि बुरे इंसान को भूलने में एक सेकंड लगता है, पर अच्छे इंसान को भूलना बस में नहीं।
पापा ने मुझे संघर्ष की तपिश दी जिसके लिए मैं उनकी आभारी हूं, जानती हूं आज असफल हूं मैं....जिस काम को आजमाती हूं फेल हो जाती हूं, पापा को मुझ पर यकीन है और मुझे उनके यकीन पर यकीन एक दिन मेरी कामयाबी शोर मचा देगी, हालात न आपको तोड़ पाए न मुझे तोड़ पाएंगे,,।
कुछ लाइनें पापा के लिए,,।
तुम्ही से सीखा था ,कविता को रचना।
तुम्ही ने सिखाया था, कवियों का ज्ञान।।
अब मेरी कविताएं, अधूरी हैं पापा ।
उनको भी पूरा, करा दो न आज ।।
तुम्हारे गुणों के, साथ मैं जन्मी ।
मीरा सुता है मेरा नाम।।
तुम्हारे ही पदचिन्हों पर चली हूं,
सुबोध तनया मेरी पहचान।।
राधे राधे दोस्तों
