गुमनाम इश्क़
गुमनाम इश्क़
सालों बीत गए आपको देखे, लोग कहते है प्यार की मंज़िल हासिल करना है पर आप कहते थे प्यार एक एहसास एक ऐसा जज़्बात है जिसे महसूस किया जाता है, जिसे जिया जाता है, प्यार की चरम सीमा जरूरी नहीं शरीर का मिलन हो कभी कभी शरीर के मिलन से परे आत्मा का मिलन तय करती है प्यार की चरम सीमा ।
सच कहूं तो प्यार निभाना कोई आपसे सीखे, मैंने जो कहा आपने उसे सर आंखों पर रख लिया, मैंने कहा शराब छोड़ दो आपने तुरंत अपनी उस आदत को स्वाहा कर दिया जानती हूं शराब से निकलना आसान नहीं फिर भी आप बाहर आये सिर्फ मेरी खातिर, मैंने कहा सिगरेट को हाथ मत लगाना आपने एक पल की देरी किए बिना हमेशा के लिए उससे निजात ले ली, बिना कहे अपना इश्क निभाते चले गए, हां याद है मुझे वो दिन भी जब कह दिया था मैंने चले जाओ मेरी लाइफ से, आप चले गए, हां जान चुकी हूं मैं वापस लौटे थे आप मुझे अपना बनाने एक सफल इंसान बनकर पर तब तक मैं किसी और की हो चुकी थी,
याद है मुझे जब आपने आखिरी बार मुझे मिलने बुलाया था, हमेशा ही देवी मां का मंदिर हमारी आत्माओं के मिलन का साक्षी रहा था उस दिन भी आपने मुझे वही बुलाया था, मां के उसी मंदिर में जहां पहली बार मैंने आपको देखा था या यूं कहे की जमीन पर गिरी माचिस उठाने के बहाने मैंने आपके पैरो को छू लिया था नहीं जानती कि ऐसा क्यों किया था मैंने, वो पहली मुलाकात थी हमारी फिर अगले दिन कॉलेज में आपको अपने सामने पाकर बेमतलब ही खुश थी मैं और आखिरी बार फिर उसी मंदिर में खड़े थे हम दोनों पर किसी और के हमसफ़र बनकर, मुझे तो एहसास ही नहीं था की कही न कही दिल के किसी कोने में आपको मैने बरसों से कैद कर रखा था।
आपने अपनी शादी के बारे में बताया कि आप किसी और लड़की का सिंदूर बनने जा रहे हैं, जिसे सुनकर मुझे अच्छा नहीं लगा था बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था ।
मैं रोना चाहती थी पर मेरी मांग का सिंदूर मेरे गले का मंगलसूत्र मुझे इसकी इजाज़त नहीं दे रहे थे, मेरा मन फट रहा था पर इसकी भनक भी आपको लगे नहीं चाहती थी मैं, अनजाने में ही सही पर एक मासूम के साथ अन्याय हो गया था मुझसे, कही न कही उस बेचारी के पति के मन को बरसों पहले बांट लिया था मैंने। मैंने शिकायतों का लिफाफा खोलना शुरू किया, क्यों आखिर क्यों नहीं बताए अपने दिल के जज़्बात आपने मुझे। हां जानती हूं आपका धर्म आपकी मर्यादा आपके लिए सबसे पहले है पर फिर भी एक बार भी आपने सवाल नहीं किया मुझसे कि मैंने शादी क्यों की ? क्यों इंतजार नहीं किया आपका, ? मेरी आंखें नम हो चली थी जिससे गुस्सा आंसू बनकर बह रहा था। वो शांत थे और उसी लहजे में आगे उन्होंने कहा, जानता हूं मैं मैंने ही कभी अपने दिल के जज्बातों को तुम्हारे सामने जाहिर नहीं किया, क्या कहती तुम अपने पापा से की ऐसे लड़के का इंतजार कर रही हो जिसके मन की बात तुम्हें पता तक नहीं या कि ये कहती कि जिसका इंतजार कर रही हो वो इस वक्त नौकरी के लिए धक्के खा रहा है बेरोजगार है, वो अब भी शांत थे और एक फीकी मुस्कान उनके चेहरे पर थी शायद अपना दर्द मुझसे छुपाना चाहते थे वो। और फिर मैंने ही तो तुमसे कहा था कि 2 साल की मोहब्बत के लिए 20 साल तक पालने पोसने वाले पिता को दुख मत देना। वो कहते जा रहे थे होंठों मुस्कान के साथ उनकी आंखों में हल्की नमी उतर आई थी।
मैंने गुस्से में अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया, और बेरुखी से कहा तो अब क्यों आए हैं आप ? इन बातों का अब कोई मतलब नहीं,
वो मुझसे कुछ दूरी पर खड़े थे और उसी जगह घुटनों पर बैठ गए अपने दोनों हाथ उन्होंने आगे कर दिए थे, उनके आंसू, उनके चेहरे पर गिर चले थे, अपने होंठों पर मुस्कान लिए रूंधे गले के साथ कहा उन्होंने।
हिम्मत मांगने आया हूं तुमसे कल शादी है मेरी, जो मंगलसूत्र मैंने तुम्हारे लिए खरीदा था सालो पहले उसे किसी और के गले में डाल सकूं बस इतनी हिम्मत दे दो मेरे हाथों को । मैं ठिठक गई फिर एक लंबी सांस लेकर मैं आगे बढ़ी मेरे पैर मेरा साथ नहीं दे रहे थे फिर भी मैंने आगे बढ़ कर भारी मन से उनके हाथों पर अपने हाथों को रख दिया वो उसी जगह पर खड़े हो गए फिर उनके आंसू पोंछते हुए मैंने कहा,
जिसके साथ सात फेरों के बंधन से बंधने जा रहे हो मेरी कसम है तुम्हें कभी उसे दुख मत देना उसके साथ बेरुखी से पेश मत आना और उसे अपने मन में जगह देना वादा करो । उन्होंने मेरे हाथ पर हाथ कर वादा किया कि कभी बेवजह उस मासूम को दुख नहीं देंगे। मन किया की उनके सीने से लग जाऊं पर धर्म इसकी इजाजत नहीं देता था मैं एक झटके से उठी और तेज कदमों से मंदिर से बाहर निकल गई मैंने एक बार भी पलट कर नहीं देखा था उन्हें, क्योंकि न मैं खुद कमज़ोर पड़ना चाहती थी न ही उन्हें कमज़ोर होते देख सकती।
समय बीतने लगा एक ऐसा भी दिन आया कि फिर से हमारा सामना हुआ किसी फंक्शन में गई थी मैं, टाइम कम होने की वजह से वो वहां अपनी वर्दी के साथ ही चले आए थे, आज वो पुलिस की वर्दी के साथ मेरे सामने खड़े थे, इंस्पेक्टर बन चुके हैं वो मतलब मेरा सपना पूरा कर दिया उन्होंने, एक बार कहा था मैंने कि मुझे पुलिस वाले बहुत पसंद है पर नहीं जानती थी कि मुझसे दूर होने के बाद भी उनके दिल में मेरी जगह थी मेरे एक एक शब्द को उन्होंने अपने दिल से लगाकर रखा था वो मेरे लिए बैंक मैनेजर की आराम तलब जॉब छोड़ कर आज पुलिस इंस्पेक्टर बन चुके थे ।
अब मेरी बेचैनी काफी हद तक बढ़ चुकी थी, मैंने उनसे पूछ ही लिया क्यों दर्द दे रहे हैं आप खुद को भूल जाइए मुझे, उन्होंने शांत लहज़े में जवाब दिया, नहीं भूल सकता मेरा इश्क इबादत है कोई खेल नहीं, और मैं किसी दर्द में नहीं हूं बल्कि खुश हूं।
सुनो जब तक प्यार में सामने वाले को पाने की चाहत होती है तब तक वो दर्द देता है तुम्हारी कमजोरी बन जाता है, लेकिन जब प्यार में तुम जिससे प्यार करते हो उसे भगवान की तरह पूजने लगते हो तभी वही प्यार ताक़त बन जाता है, और तुम मेरी ताकत हो जानता हूं मेरी बीवी से मेरा शरीर का रिश्ता है पर तुमसे मेरा दिल का रिश्ता है। तुम दोनों ही मेरी दो आंखें हो और मैं तुम दोनों को चाहता हूं, ये शब्द कहते हुए उनकी आंखों में बेहद सच्चाई और बेतहाशा प्यार था सही तो कह रहे थे ।
मैं सोचती हूं कितने महान है वो आखिर कैसे इस समय भी ऐसे इंसान होते हैं दुनिया में, कैसे किसी का दिल इतना पाक साफ हो सकता है। हमारा इश्क इबादत है क्या नाम दूं इस पवित्र प्यार को जो "गुमनाम इश्क "बन गया।
राधे राधे दोस्तों