ये माना मेरी जां,मोहब्बत सज़ा
ये माना मेरी जां,मोहब्बत सज़ा
सृष्टि सुबह- सुबह नहाकर कपड़े सुखाने के लिए छत पर आयी ! अचानक स्वयं की नजर पड़ती है उस पर उसके खुले भीगे बालों से बूंद बूंद टपक कर जैसे उसके गालों और बदन को हलका गीला बना रही थी। उसका गोरा रंग, तीखी आंखें, और गुलाबी होंठ अंगार बन कर स्वयं के दिल की धड़कनों को बढ़ा रहे थे , कल ही तो वो सामने वाले घर में रहने आया था सब कुछ पराया सा लग रहा था अपनों की कमी महसूस हो रही थी और आज , ये क्या हो रहा था उसे।
क्यों बार बार उसे ही देखना चाहता था उसे सृष्टि अपनी सी लग रही थी। जैसे वो उसी के लिए बनी हो। रह रह कर बस उसी का खयाल आता था। कल तक जो किताबी कीड़ा था आज किताबों से कोसों दूर बैठा था। बस यही सोचता रहता कौन है वो लड़की ? क्या नाम है उसका ? क्या मुझे उससे बात करनी चाहिए ? अब तो रोज़ यही सिलसिला शुरू हो गया सुबह होते ही स्वयं चला जाता छत पर बस सृष्टि को देखने। एक बार उसे किसी ने सृष्टि कहकर पुकारा -
ओह तो सृष्टि नाम है इनका। सुनकर स्वयं मन ही मन सोचकर मुस्कुरा दिया।
एक दिन स्वयं ने देखा मंदिर के पास सृष्टि एक बूढ़ी बीमार औरत को अपने हाथ से खाना खिला रही थी।
अब तक वो सृष्टि को पसंद करता था आज उसे सृष्टि से बेतहाशा प्यार हो गया था। क्योंकि वो मन से भी उतनी ही खूबसूरत थी जितनी तन से थी। अब तो उससे बात किए बिना एक पल रह पाना मुश्किल था।
अब उसने सोच लिया था कि वो सृष्टि से बात करके ही रहेगा।
एक दिन आस पास छत पर कोई नहीं था , रोज़ की तरह सृष्टि आज भी सुबह जब आयी तब स्वयं ने कहा
"सुनिए सृष्टि मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं।"
मैं जानती हूं कि आप क्या कहना चाहते हैं जो आपके दिल में है वही मेरे दिल में भी है पर ये नहीं हो सकता।
(सृष्टि ने कहा )
"आखिर क्यों ? क्यों नहीं हो सकता जब आप भी..! स्वयं थोड़ा दुखी और विस्मित होकर कहता है।"
"क्योंकि आज से 10 दिन बाद मेरी शादी है हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिए अब ये संभव नहीं आपने अपनी बात कहने में देर कर दी।"
बहुत दुखी थी सृष्टि क्योंकि वो उसकी पहली मोहब्बत बन चुका जब वो प्यार भरी नजरों से देखा करता था तब दिल में उसने दस्तक दे दी थी।
इस तरह उनका प्यार मुकम्मल ना हो सका।
अब तो दोनों के दिल में एक ही गाना गूंजता है।
"ये माना मेरी जां , मोहब्बत सज़ा है !
मज़ा इसमें इतना मगर किस लिए है।"