वैलेंटाइन डे
वैलेंटाइन डे
नई नई शादी हुई थी उसकी। सुबह और दिनों से कुछ ज्यादा ही जल्दी उठ गयी थी। रोज के बटर टोस्ट और कॉर्नफ्लेक्स की जगह आज आलू के परांठे और हलवा बनाने की सोची थी। उनका मनपसंद नाश्ता। बड़ी आतुरता थी उसे कि कैसा होगा आज का दिन? क्या करेंगे ये?
FM पर भी आज सब गाने मानो उसकी पसंद के ही आ रहे थे। वो मुस्कुराई। अपनी कल्पना की उड़ान को कुछ विराम दिया। आज गुलाबी रंग का सूट पहनूंगी और ढेर सारी चूड़ियां भी। नहाते हुए पानी की बौछारें भी उसे उस झरने की याद दिला रही थी जहाँ सहेलियों के साथ पिकनिक पर गयी थी। कितने सारे नव-विवाहित जोड़े भी थे वहाँ। उनकी तरफ अनायास ही उसकी नजर चली जाती थी और रोमांचित हो जाती थी ये सोच के कि वो भी शायद शादी के बाद ऐसे ही किसी झरने के नीचे अपने पति के साथ उन सब की तरह.... याद कर के शर्मा सी गयी। खैर अभी कहाँ जा पाये थे वह हनीमून पर, शादी के तुरंत बाद पति को वापस ड्यूटी पर जाना पड़ा था।
अपने लम्बे बाल सुखाते हुए उसे सहेलियों की बातें याद आने लगी। शरारती थी सब। कहती थी कि पति तो उसकी घनी जुल्फों में ही गिरफ्तार हो जाएगा। "नहीं नहीं, जुल्फों में नहीं जी। कजरारी आँखों में जीवन भर के लिए कैद होगा," उसकी पक्की सहेली नीमा ने उन सब की बात काट कर कहा था। आँखों में काजल डालते हुए उसे पहला दिन याद आया जब वह उन से मिली थी। भाभी की छोटी बहन की शादी में। पूरा समय उन की आँखें उसी पर टिकी रही थी और वो भी तो बीच बीच में चुपके से उन्हें निहारती रही थी।
माथे पर बिंदी लगाते हुए याद आया कि कैसे उन्होंने शादी के अगले दिन उसके माथे पर खुद बिंदी लगाने की जिद की थी। और लगाई थी बिलकुल टेढ़ी। उसने उलाहना दिया था तो झट से बोले थे, "बीवी मेरी हो न, तो पसंद भी मेरी ही चलेगी। ये टेढ़ी बिंदी तुम पर ज्यादा अच्छी लग रही है।" कितने जिद्दी!
डाइनिंग टेबल पर सब नाश्ता सजा दिया था उसने। तभी उसे क़दमों की आहट सुनाई दी। बस अभी पीछे से आकर उसे अपनी बाँहों में जकड लेंगे और उसके कान में कहेंगे "हैप्पी वैलेंटाइन डे"| शायद उसके बालों में एक गुलाब लगा कर धीमे से उसकी गर्दन को ... सोच कर ही उसके गाल गुलाबी हो उठे।
पर अचानक क़दमों की आहट थम गयी। कुछ सिसकियाँ सी सुनाई दी। पलटी तो माँ खड़ी थी। पर वो यहाँ क्या कर रही थी? कुछ समझ नहीं आ रहा था। और ये अभी तक उठे क्यों नहीं थे ? माँ पास आ गयी थी और उसे सीने से लगा कर रो रहीं थीं।
पहले उसे कुछ समझ नहीं आया फिर नजरें थम गयी। सामने दीवार पर उनकी फोटो लगी थी और फोटो पर था "वीर चक्र" का मैडल।
फिर सब कुछ याद आ गया उसे!
अब उसकी आँखों का काजल बहने लगा था अपने शहीद पति की यादों में। माथे की बिंदी शर्मिंदा हो उठी थी और चूड़ियां छनकने की जगह चीखना चाहती थी!
डाइनिंग टेबल पर सजे गुलाब के फूल भी उसके साथ-साथ रो रहे थे...उसके अधूरे सपनों और टूटे-बिखरे अरमानों के ग़म में!
