सबसे बड़ा दान
सबसे बड़ा दान
'उफ ! आज फिर देर हो गई !' मीता बड़बड़ाते हुए घर से बाहर निकली, लेकिन भगवान का शुक्र है कि उसे समय पर वो काम याद आ गया।
दान देने के लिए आटे की एक एक किलो की पाँच पोटलियाँ भी तो रखनी थीं।
उन्हे उठा कर कार तक पहुंची ही थी कि बॉस का फोन आ गया। वही रोज की झिक झिक। प्रोजेक्ट रिपोर्ट आज ही चाहिए। ये फ़ाइल, वो फ़ाइल।
मीता को कार चलाना पसंद था। उसका अपना निजी छोटा सा कमरा ही तो थी,ये कार। उसने गियर बदलने शुरू किए और एफ एम चैनल भी। पर हर चैनल पर सिर्फ विज्ञापन ही आ रहे थे। मूड और ऑफ हो गया।
सिग्नल पर पहुँचने तक भी कहीं कोई ढंग का गाना शुरू ही नही हुआ।
वहाँ भीख मांग रहे बच्चे उसकी कार से दूर ही रहे। वैसे तो रोज कोई न कोई हाथ मे गंदा कपड़ा लेकर साफ शीशे को गंदा करने आ जाता था और आज जब वो कुछ ले कर आई है तो हर बच्चा दूर नजर आ रहा था।
मीता ने गा
ड़ी का हॉर्न बजाया। फिर शीशा खोल कर हाथ से इशारा किया।
लेकिन किसी बच्चे ने कोई ध्यान ही नही दिया।
मीता अब खीझ रही थी। फिर कुछ सोच कर उसने अपने हाथ मे आटे की एक पोटली ली और उसे गाड़ी के बाहर झुलाया।
अब सब बच्चे तेजी से उसी की कार की तरफ आ रहे थे।
उसने जल्दी से सबको एक -एक पोटली थमा दी। बच्चे अब अपनी- अपनी पोटली को दबा कर भांप रहे थे कि पोटली मे क्या होगा।
इतने मे सिग्नल भी हरा हो गया। मीता ने कार आगे बढ़ा दी।
तभी अचानक गैप की लाल टी शर्ट पहने पोटली लिए एक बच्चा भाग के गाड़ी के पास आया।
वह हँस रहा था और हाथ हिला -हिला कर उसे बाय बाय कर रहा था।
बिजली की तरह एक खुशी की लहर अब मीता के दिल दिमाग पर छा गई, जिसने कुछ देर पहले की खीझ और उदासी को क्षण मे धो डाला।
उस बच्चे की हँसी ही थी उस सिग्नल पर दिया गया, सबसे बड़ा दान।