Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Others

4.4  

Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Others

सदियों की फांस

सदियों की फांस

3 mins
617



बड़े भैया की मर्जी के विरुद्ध स्वाति से विवाह कर लेने के बाद से, वीरेन जब भी मिलने आता है, उनका रवैया तल्ख़ ही रहता है।

कटाक्ष को नजरअंदाज करते हुए, वीरेन ने उनके और भाभी के चरण स्पर्श किये।

"सही समय पर आये हो देवर जी। अभी आपका मनपसंद खाना तैयार करती हूँ। "

हमेशा की तरह भाभी ने प्यार से कहा। भाभी का प्यार और स्नेह ही रिश्तों की डोर को टूटने से बचाये हुए है ।

" भाभी खाना मैंने बाहर से ही मंगवा लिया है। थोड़ी देर में आता होगा। "

वीरेन ने भाभी को रसोई जाने से रोका।

फिर क्या था, एक बार फिर बड़े भैया को अच्छा बहाना मिल गया स्वाति की नौकरी को बीच में लाने का।

"हाँ -हाँ बाहर से क्यों न मंगवाओगे ? दस रुपए की एक रोटी और सौ -डेढ़ सौ की छटांक भर सब्जी। पैसे उड़ाओगे ही। दस-पचास रुपए के अनाज, दाल और सब्जी पर सैकड़ों खर्च करो। पत्नी की मेहनत का जो खाते हो। सदियों से जो सभ्यता और परंपरा चली आयी है, उसका तिरस्कार करते रहो। "

"भैया आप कैसी बातें करते हो। मैं और स्वाति दोनों ही नौकरी कर धन अर्जित कर रहे हैं तो इसमें क्या गलत है ? आज तो कितनी ही महिलाएं नौकरी करती हैं। घर-गृहस्थी की हर जिम्मेदारी बाँटने में मुझे तो कुछ भी गलत नहीं लगता। "

बड़े भैया और वीरेन के विवाद की मूक साक्षी बनी भाभी का चेहरा उतर गया ।

अपने पति की पुरातन मानसिकता, सबसे ज्यादा उन्हें ही तो झेलनी पड़ती थी। हर समय रोक -टोक। हर बात पर टीका -टिपण्णी।

वीरेन भी बचपन से उन्हें भैया की पुरुषवादी मानसिकता झेलते देखते आया था। शायद इसीलिये स्वाति का नौकरी पेशा, सक्षम, समर्थ, सबल और अपने अधिकारों के लिए जागरूक होना - उसे भा गया था और बड़े भैया की मर्जी के विरुद्ध उसने स्वाति को जीवन साथी बना लिया था।

"आज स्वाति नहीं आयी ?" भाभी ने बात बदलते हुए कहा।

"वो ऑफिस के काम से सिंगापुर गयी हुयी है पंद्रह दिन के लिए। "

वीरेन का जवाब बड़े भैया को कुछ और कहने का सुकून देता, इससे पहले ही दरवाजे की घंटी बज गयी। खाना आ गया था।

बड़े भैया ने मुंह बिचका कर कहा :

"हमें न खाना, औरत की मेहनत की कमाई खाने वाले का मंगाया खाना। हम तो अपनी मेहनत की कमाई का ही खाएंगे। "

भाभी और वीरेन एक दूसरे का मुंह देखने लगे।

पता नहीं क्यों पर इतने सालों बाद आखिर भाभी के सब्र का बाँध टूटता लगता दिखा। उनका चेहरा लाल भट्टी सरीखा तमतमा उठा।

पर वो कुछ नहीं बोली। तेजी से रसोई की तरफ गयीं। जिस तेजी से वो गयीं थी उतनी ही तेजी से उन्होंने रसोई से बाहर निकल बड़े भैया के सामने भोजन की थाली परोस दी।

एक-एक कटोरी आटा और कच्ची अरहर की दाल; साथ में कच्चा आलू , बैगन और प्याज।

थाली में सिर्फ और सिर्फ, बड़े भैया की कमाई का खाना था।



Rate this content
Log in