संवेदनशील आदमी
संवेदनशील आदमी


पिछले पंद्रह दिन से वो हमारे घर में रह रहे थे। हम दोनों पति-पत्नी पूरी कोशिश कर रहे थे कि उनकी खातिरदारी यथा संभव अच्छे से अच्छी करें। लेकिन उनकी अपेक्षाएं कुछ ज्यादा हीं थीं। बातों बातों में वो सुना ही देते थे कि उनके आने के बाद भी हम दोनों पति पत्नी रोज ऑफ़िस जा रहे हैं। अपने जिस काम के लिए वो आये हैं, उसके लिए उन्हें अकेले ही धक्के खाने पड़ रहे हैं।
उनके अनुसार यदि हम उनके यहाँ जाते तो वो तो छुट्टी लेकर घर ही बैठ जाते। हमारे साथ काम के लिए पूरी भागदौड़ करते। हम दोनों पति पत्नी चुपचाप उनकी बातें सुन लेते हैं। अपने जो हैं वो। ये बात अलग है कि वो और उनकी तरह और भी कई अपने अक्सर हमारे घर आते हैं। दिल्ली में सब को कभी न कभी कोई न कोई काम पड़ता ही है। हम कभी अपने इन अपनों के यहाँ न गए हैं, न ठहरे हैं। वो जहाँ रहते हैं, वहाँ कभी हमें कोई काम पड़ेगा ये अभी तो नामुमकिन ही जान पड़ता है।
आज घर लौटे तो वे सोफे पर उदास हो बैठे दिखे।
'क्या हुआ ?' हमने पूछा तो वो ताबड़तोड़ शुरू हो गए।
'कैसे शहर में रहते हो। किसी में संवेदना है ही नहीं। अरे तुम्हारे से तीन घर छोड़ कर जो घर है, आज वहाँ एक मौत हो गयी है। देखो तुम्हें पता तक नहीं है।'
'ओह। दुखद समाचार। मदन जी की माताजी का निधन हो गया होगा। वो काफी समय से बीमार थीं। '
मैंने कहा और हाथ मुंह धोने बाथरूम की तरफ बढ़ गया।
'यही तो ! लेकिन ये क्या तुम्हारी आँखों में एक आँसू भी नहीं है। जैसे तुम मे संवेदना तो है ही नहीं। अरे तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे कोई सामान्य सी बात हो। एक इंसान की मौत हुयी है। हमारे यहाँ होती तो...... '
उनकी बात सुन मेरे सब्र का बाँध टूट ही गया। पत्नी को तुरंत आवाज़ लगाई :
'सुनो। वो पड़ोस में मौत हुई है न सो अब उनकी तेरहवीं तक खाना बिना तड़के का ही बनाना, रोटियों में घी नहीं चुपड़ना। दाल -सब्जी में हल्दी नहीं डालना, हाँ सर पर तेल भी नहीं लगाना और साबुन से नहाना भी नहीं !'
मेरी बात सुन वो अचकचा से गए। कुछ देर चुपचाप रहे फिर थोड़ी दबी सी आवाज़ में बोले-
'अरे नहीं। इतना कुछ करने की जरूरत थोड़े ही है। इतना तो तभी करते हैं, जब कोई अपना गुजर जाता है। '