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Mukta Sahay

Abstract

4.5  

Mukta Sahay

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उस सुबह की रंग बदली धुआँ

उस सुबह की रंग बदली धुआँ

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सुबह से ही धूएँ का बादल देख रैना बहुत परेशान थी। आज कारख़ाने से निकलते धुएँ के बादल का रंग कुछ गहरा था। वह अपने पति की प्रतीक्षा बड़ी बेसब्री से कर रही थी। रैना और राहुल की शादी दो वर्ष पूर्व हुई थी और तभी से दोनो कारख़ाने की कम्पनी से मिले इस मकान में रहते हैं। मकान वैसे तो कारख़ाने से बहुत दूर है किंतु यहाँ से कारख़ाने की ऊँची चिमनियाँ दिखती हैं। जब राहुल काम पर कारख़ाने गया होता है तो नैना इन चिमनियों से निकलते धूएँ को देख कर अपना समय काटती है । 

आज राहुल रात की पाली में काम पर गया था और अभी तक नही आया था। अमूमन इस समय थक तो वह आकर नहा-धो कर नश्ता भी कर लेता था। राहुल के काम से वापस आने में देरी और धूएँ का बादल रंग रैना को किसी अनहोनी का आभास दे रहा था। वह बेचैन में घर के बाहर ही टहल रही थी। जैसे जैसे समय निकलता जा रहा था रैना की बेचैनी बर्दाश्त से बाहर होती जा रही थी। कई बार कारख़ाने के फ़ोन को भी घुमाया, घाटी तो गई पर किसी ने उठाया नही। उससे अब नही रहा जा रहा था वह पड़ोस में रहने वाले अखिल के घर गई, कारख़ाने के खबर पता करने। अखिल को दोपहर की पाली में जाना था और कल भी वह दोपहर की पाली में ही गया था।

जब राहुल कारख़ाने पहुँचा तो अखिल की छुट्टी हुई थी। अखिल ने बताया जब तक वह कारख़ाने में था तब तक तो सब ठीक था। कल तो कोई ब्रेक-डाउन भी नही हुआ था उसके रहते। अखिल ने रैना को ढाढ़स बांधते हुए कहा कि राहुल आता ही होगा, शायद अगली पाली में आने वाले व्यक्ति को देर हो गई होगी और उसके आए बिना राहुल कारख़ाने को छोड़ कर नही आ सकता। रैना ने चिमनी से निकलते धूएँ के बदले रंग के बारे में भी पूछा। अखिल के पास इसका कोई समुचित उत्तर तो नही था पर फिर भी वह रैना को बोला कभी कभी ऐसा हो जाता है। 

रैना वापस तो आ गई लेकिन अखिल की बातों से वह आस्वस्त नही थी। इन दो सालों में चिमनियों से निकलते ये धूएँ ही तो उसके साथी हुआ करते थे। कभी हवा के रुख़ के साथ लहराते तो कभी पक्षियों की चहक पर अठखेलियाँ करते और कभी धीर-गम्भीर हो शांति से एक ही तरफ़ बढ़े जाते। कभी इन धूँओं के छोटे छोटे बादल राहुल की खबर साथ लिए रैना के घर की तरफ़ आते तो कभी अपना मुख मोड़ दूसरी तरफ़ कहलें जाते। ऐसे में इन धूँओं का बादल रगं मानने ही नही दे रहा था कि सब सामान्य है। 

तभी रैना ने देखा कारख़ाने की गाड़ी उसके घर की तरफ़ बढ़ी आ रही है। गाड़ी के रुकने के पहले ही रैना उसकी तरफ़ तेज़ी से चल पड़ी। गाड़ी घर पर आ कर रुकी, राहुल नही था गाड़ी में। कारख़ाने का एक गार्ड था। उसने रैना को साथ अस्पताल चलने को कहा। अस्पताल की बात सुन रैना की साँस तो जैसे अटक सी गई। उसने गार्ड से पूछा क्या हुआ है, राहुल ठीक तो हैं। कोई जवाब नही मिला। वह व्यक्ति फिर थोड़े ज़ोर से बोला, आप तुरंत ही मेरे साथ अस्पताल चलिए, राहुल के बारे में मुझे कोई जानकारी नही है। आपको साथ लाने का आदेश हुआ है मुझे। अनिष्ट के होने का संशय अब और गहराता जा रहा था। स्वयं को सम्भालती रैना घर में ताला लगा उस गार्ड के साथ गाड़ी में चल पड़ी। 

अस्पताल पहुँच उस व्यक्ति ने अंदर जाने का इशारा किया। वह आगे बढ़ी। बिखरे बाल, बहते आँसु, बदहवास चाल, रैना अब तक गश खा कर गिरने की हालत में आ चुकी थी। बस राहुल को देखने और उसके बारे में जानने की प्रबल इच्छा ने उसे होश में रखा था। कारख़ाने के कुछ लोग खड़े थे रैना को देख किनारे हो, जाने का रास्ता दिए। उन में से एक रैना को एक कमरे की तरफ़ ले गया। राहुल पट्टियों में लिपटा लेता था और आँखे बंद थी। कई सारी पाइप और तारे राहुल से जुड़ी थी, जिनका सिरा बड़ी बड़ी मशीनों से निकल रहा था।

रैना दौड़ पड़ी राहुल की तरफ़ और वहाँ खड़े डॉक्टर से पूछा क्या हुआ है, इतनी पट्टियाँ, तारें क़्यों लगी है, राहुल की आँखे बंद क़्यों हैं। पास खड़े दूसरे व्यक्ति ने बताया, सुबह सुबह कारख़ाने की एक बड़ी मशीन कुछ गड़बड़ी की वजह से अचानक फट गई। कई लोग उसमें घायल हुए। राहुल को तो उस हादसे की वजह से कोई चोट नही आई लेकिन वहाँ मलबे में फँसे एक मज़दूर को बचाते समय इसके ऊपर मशीन का एक बड़ा टुकड़ा गिर गया और राहुल को चोट आ गई। डॉक्टर ने फिर आगे बताया पैर की हड्डियाँ टूटी है और कंधे पर चोट है।

कुछ जगहों पर गहरे घाव हो गए है। ये तो पता नही लेकिन आशंका है की कहीं सिर पर तो चोट नही आई है, इस कारण इन्हें अभी यहाँ निगरानी में रखा जाएगा। रैना पास रखे कुर्सी पर बैठ गई और धीरे से राहुल का हाथ अपने हाथों में ले लिया। राहुल ने आँखे खोली। रैना की जान में जान आई और आंसुओं की बहती धाराओं के बीच हल्की से मुस्कान झांक गई। राहुल की आँखों में भी सूकुन दिखने लगा। रैना को राहुल के ठीक होने की ख़ुशी तो थी ही साथ ही गर्व भी था कि राहुल ने मुश्किल में फाँसी एक जान को बचाया था। 

रैना समझ गई थी की चिमनी से निकलने वाली धूँओं का बदला रंग क्या कह रहा था। शायद अब कारखाने की चिमनी से निकलते धूएँ से रैना की दोस्ती और भी गाढ़ी हो गई थी क्योंकि अब वह उसके भेजे संदेश को समझ गई थी।  


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