उंगलियां भाग 3
उंगलियां भाग 3
उंगलियां, भाग 3
अंजली के जाने के बाद कमल भी अपने काम में व्यस्त हो गई लेकिन उसके मन से सुनीता की बात निकली नहीं थी। शाम को जब वह मिहिर के साथ चाय पी रही थी तब उसने यह बात उसे भी बता दी।
" यार कमल, सुना तो मैने भी था ये सब लेकिन कभी ध्यान नहीं दिया था और सच कहूं तो मुझे तो यहां रहते हुए काफी समय बीत गया लेकिन मैंने ऐसा कुछ अजीब सा महसूस भी नहीं किया।"
" फिर भी...शाम को लोग यहां क्यों नहीं आना चाहते हैं?", कमल की जिज्ञासा बढ़ गई।
" एक कहानी बताते हैं लोग कि जिस जगह हमारा घर है यह कभी यहां के जमींदार का बाग हुआ करता था। जमींदार अय्याश प्रवृत्ति का था। बाग में बने उसके घर में अक्सर महफ़िल सजा करती थीं। एक बार पूर्वी उत्तर प्रदेश की कुछ नर्तकियां अपने साजिंदे और उस्ताद के साथ यहां आई थीं और जमींदार की नीयत उन पर खराब हो गई। उन लोगों ने उसकी बात नहीं मानी तो जमींदार ने उन सभी को मारकर बाग में ही कहीं दफना दिया था।", मिहिर ने सुनी हुई कहानी ज्यों की त्यों बता दी।
" मुझे समझ नहीं आता कि जमींदार इतने निर्दयी क्यों होते थे?"
" सभी नहीं होते थे जान, कुछ अच्छे भी हुए हैं लेकिन दौलत और सत्ता का नशा अगर चढ़ जाए तो अच्छे से अच्छे इंसान की आंखों ओर बुद्धि पर पर्दे डाल कर उन्हें हिंसक पशु बना देता है।", मिहिर की बात से सहमत होकर कमल ने केवल अपना सिर हिला दिया और पूछा, " तो उन नर्तकियों की आत्माएं लोगों को परेशान करती हैं?"
" देखो, सच क्या है ..नहीं पता। कोई कहता है कि यहां के पेड़ो के नीचे रात में वे लघुशंका के लिए गए तो किसी ने उनको थप्पड़ मार कर कहा कि दिखता नहीं यहां महिलाएं बैठी हैं तो कोई कहता है कि यहां रात भर गीत संगीत की महफ़िल सजती है तो किसी का कहना है कि वह जमींदार आज भी अपनी लोलुप आंखों से महिलाओं को परेशान करता है पर मैने या मेरे दोस्तों ने कभी भी ये सब नहीं देखा।"
" हां, बहुत बार लोग कहानियां बना लेते हैं, छोड़ो ये सब और यह बताओ कि आज पूरे दिन में आपको एक बार भी अपनी खूबसूरत पत्नी की याद नहीं आई?"
" खूबसूरत पत्नी!", मिहिर ने चौंक कर कप मेज पर रख दिया।," मेरी तो एक ही पत्नी है लेकिन वो तो खूबसूरत... नहीं है।"
" क्या कहा?..रुको तुम... अंदर कहां भाग रहे हो!", मिहिर की बात सुनकर आंखें तरेरती हुई कमल उसके पीछे भाग कर बेडरूम में गई और तकिया उठाकर उसके सिर पर मारने लगी।
हँसते हुए मिहिर खुद को तकिए की मार से बचा रहा था और साथ ही कमल को पकड़ने की कोशिश भी कर रहा था।
कुछ देर की नोकझोंक के बाद वे दोनों बिस्तर पर लेट गए और एक दूसरे को प्यार से निहारने लगे।
" मुझे ऐसे मत देखो क्योंकि मैं खूबसूरत नहीं।", कमल ने मुंह बनाया तो मिहिर ने उसकी नाक पर अपनी नाक को रगड़ते हुए कहा, " पर तुम मेरी नकचढी प्यारी सी बीवी हो जिसके बिना मैं एक पल नहीं रह सकता।"
" झूठ"
" ऊं हूं... सच।", कहते हुए वे एक – दूसरे के आगोश में समा गए।
रात के खाने के बाद रसोई समेटती हुई कमल को याद आया कि शाम की चाय के कप तो बाहर लॉन की मेज पर ही रह गए थे। वह कप लेकर अंदर आते हुए उसे दरवाजे पर एक गर्म हवा का झोंका महसूस हुआ और अचानक वो चिहुंक उठी। उसे फिर से अपनी कमर में किसी की छुहन महसूस हुई थी
जैसे किसी ने अपनी उंगलियां उसकी कमर में धंसाई हों और उसके बाद कमर को बांह से लपेट लिया हो। यह अहसास बहुत स्पष्ट था।
" मिहिर तो कमरे में है फिर यह...?", सोचती हुई कमल के माथे पर पसीने की बूंदे आ गई। वह वहीं जड़ होकर रह गई थी ,उसके मुंह से आवाज़ भी नहीं निकल रही थी कि तभी उसने पाया कि वह अहसास खत्म हो गया है और कमरे में चमेली के फूलों की हल्की खुशबू फैल गई है।
न जाने क्यों पर इस महक ने उसे भयमुक्त कर दिया। उसने पलट कर पीछे देखा लेकिन वहां कोई भी नहीं था। दरवाजा बंद करके कमल ने कप सिंक में रखे और बेडरूम में आ गई। वह मिहिर को इस बारे में बताना चाहती थी लेकिन उसे लगा कि शायद वह उस कहानी में ज्यादा खो गई इस कारण उसे ऐसा महसूस हुआ होगा।
मिहिर और कमल देर तक बातें करते हुए बाहों में बाहें डाले सो गए इस बात से बेखबर कि कोई खिड़की से उन्हें जलती हुई आंखों से घूर रहा था और उसकी उंगलियां खिड़की के कांच पर खरोंच बना रहीं थीं।
आधी रात में मिहिर टॉयलेट जाने की जरूरत महसूस हुई। फारिग होकर जब उसने बाहर आने के लिए दरवाजा खोलना चाहा तो दरवाजा खुला ही नहीं।
" यह क्या हो गया? मैने तो कुंडी भी नहीं लगाई थी पर यह तो शायद बाहर से बंद है। कमल ने शायद लगा दी होगी...कमल...कमल।"
लेकिन उसकी आवाज़ कमल तक पहुंची ही नहीं। थोड़ी देर बाद मिहिर जोर जोर से कमल का नाम लेकर दरवाजा पीटने लगा लेकिन अब भी कमल ने नहीं सुना। तभी मिहिर की गर्दन के बाल खड़े हो गए। एक गर्म हवा के झोंके ने उसे अंदर तक सिहिरने पर मजबूर कर दिया था। नवम्बर के अंतिम दिनों में इतनी गर्म हवा का झोंका आना असंभव था।
" उससे दूर रहो...अब वो मेरी है। वो मेरे लिए ही यहां आई है।", मिहिर के कानों में फुसफुसाती हुई मगर खौफनाक आवाज आई।
मिहिर सन्न रह गया। " कौन है? क्या मतलब है तुम्हारी बात का? वह मेरी पत्नी है तुम कौन हो जो ये सब कह रहे हो?", मिहिर समझ नहीं पा रहा था कि वह सपना देख रहा है या यह सब हकीकत में हो रहा है। तभी उसकी बांह पर किसी पैनी धार वाली चीज से एक ज़ख्म बन गया।
बहते खून की गर्मी ने मिहिर को अहसास दिला दिया कि यह सपना नहीं है।
" कौन है यहां?", थर्राती हुई आवाज में मिहिर ने फिर से पूछा। बदले में एक चेतावनी की तरह वही बात उसके कानों में गूंजी।
तभी बाथरूम का दरवाजा खुल गया और सब शांत हो गया।
" मिहिर... कब से बाथरूम में हो और तुम्हारा चेहरा पीला क्यों हो रहा है?", कमल ने अंदर आते हुए कहा।
" कमल, वो मैं..दरअसल...", हकलाते हुए मिहिर ने अपनी बांह की ओर देखा लेकिन अब वो एकदम सामान्य थी। ऐसा लग हो नहीं रहा था कि उसे कभी चोट लगी भी थी।
" चलो भी मिहिर या तुम्हारा बिस्तर यहीं लगाना है!", कमल के व्यंग्य पर मिहिर ने एक झूठी मुस्कान दी और बेड पर आकर लेट गया।
उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। क्या वो सब सपना था लेकिन उसने हकीकत में उस दर्द और दहशत को महसूस किया मगर उसकी बांह...एकदम सही थी।
( क्या मिहिर ने सच में सपना देखा था? या इस चेतावनी में भी छिपा है कोई राज? कमल को ऐसे अहसास क्यों हो रहे हैं? चमेली के फूलों की मजाक का रहस्य क्या है?, जानने के लिए साथ बने रहिए।)
क्रमशः