उंगलियां
उंगलियां
वह रात बहुत सुकून से बीती। अगले दिन सुबह जल्दी उठकर वे नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर पूजाघर में दीप प्रज्वलित कर पंडित जी मिलने चले गए क्योंकि उसके बाद मिहिर को ऑफिस भी जाना था।
जब वे मंदिर में पहुंचे तो पंडित जी आरती कर रहे थे। सभी भक्तों के साथ वे दोनों भी आरती में सम्मलित हो गए। आरती के उपरांत प्रसाद लेने के बाद वे पंडित जी के इशारे पर मंदिर में एक और रखे आसन के पास बैठ गए। मंदिर का यह भाग संभवतः कीर्तन या भजन के लिए प्रयुक्त होता था क्योंकि यहां बैठने हेतु अच्छा खासा स्थान था।
कुछ ही देर में पंडित जी वहां आ गए और उन्होंने आसन को प्रणाम किया तत्पश्चात उस पर विराजमान हो गए। चंदन के त्रिपुंड के मध्य लाल रोली के टीके उनका गौर ललाट दमक रहा था। वैसे भी उनके चेहरे पर तेज था। मिहिर और कमल ने स्वतः ही उनको प्रणाम किया और पुनः बैठ गए।
" क्या आपको उस स्थान का इतिहास ज्ञात है?" पंडित जी ने गंभीर स्वर में पूछा।
" पंडित जी कुछ कहानियां अवश्य सुनी हैं परंतु सत्य नहीं पता है।" मिहिर ने उत्तर दिया।
" पंडित जी हमारे साथ जो अस्वाभाविक घटनाएं घटी हैं क्या उनका संबंध उन कहानियों से है?" कमल ने चिंतित स्वर में पूछा।
पंडित जी ने कोमल और दयालु दृष्टि से उन दोनों को देखा और फिर अपनी आंखें बंद कर ली। " कल रात मां जगदम्बा का ध्यान किया था हमने। कुछ बातें हमारी जानकारी में आई हैं सुनिए–
करीब सौ वर्ष पूर्व की बात है जब अंग्रेजों का राज्य था। यहां एक जमींदार का राज्य था जिसके विषय में कहा जाता है कि वह अय्याश था लेकिन अंदर का सत्य उसके बेहद नजदीकी लोगों के सिवा किसी को भी ज्ञात नहीं था।
अपनी अय्याशियों की आड़ में वह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल लोगों की मदद करता था। गीत – संगीत की महफिलें मात्र दिखावा थीं।
एक बार उसके पास पूर्व दिशा से पांच नर्तकियों और उनके उस्ताद अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए आए। जमींदार ने उनके रुकने की व्यवस्था अपने बाग में की। उसे लगा कि ये भी स्वतंत्रता सेनानी होंगे। रात में सज संवर कर इत्र लगाकर एक विलासी जमींदार की तरह वह उनके पास गया। नर्तकियों ने उसकी खूब आव भगत की ओर उनका उस्ताद जमींदार की खातिर में कोई कमी नहीं छोड़ रहा था। उस रात कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद वे नर्तकियां उनका उस्ताद और खुद जमींदार का भी कुछ पता नहीं चला। लोगों ने कहानियां बना लीं।
"क्या? जमींदार असलियत में वैसा नहीं था जैसा लोग कहते हैं!" कमल और मिहिर हैरान थे।
" कल से पहले मैंने भी कभी सच जानने का प्रयास नहीं किया था... आवश्यकता ही नहीं पड़ी क्योंकि छिट पुट डरने की घटनाओं के अलावा ऐसा कुछ भी घटित नहीं हुआ था जिससे किसी का कोई नुकसान हुआ हो किंतु आप दोनों ने अपने जो अनुभव बताए वे नज़र अंदाज़ नहीं किए जा सकते थे और हमने स्वयं भी आपके घर में कुछ अजीब सा महसूस किया था। तुलसी जी का सूख कर काला हो जाना भी इस बात का प्रमाण था। "
" पंडित जी क्या हम उस घर को छोड़ दें?" कमल ने डरते हुए पूछा। मिहिर की आंखों में भी यही प्रश्न था।
" आप प्रयास कर के
देख सकते हैं लेकिन हमें लगता नहीं कि वे आपको जाने देंगे क्योंकि इसके पहले किसी भी मनुष्य को उन्होंने अपने होने का अहसास आपकी तरह नहीं करवाया है। " पंडित जी के होंठों पर हल्की मुस्कान थी।
उनकी मुस्कान देखकर वे दोनों ओर उलझ गए।
" आप मुस्कुरा क्यों रहे हैं?"
" नियति क्या चाहती है और इसके अनुसार क्या घटित होना है उसे कोई नहीं जानता सिवा ईश्वर के। हमें आभास हो रहा है कि आपका उस घर में आना किसी विशेष प्रयोजन का भाग है और आप इन सबसे बचना चाह रहे हैं!" पंडित जी का स्मित हास्य बना हुआ था।
" तो क्या हम इस प्रेत लीला के शिकार बन जाए?" मिहिर के चेहरे पर क्रोध की छाया आ गई।
" ऐसा न कहिए। हमारा या नियति का यह आशय कदापि नहीं है।" पंडित जी गंभीर हो गए। " यह रक्षा कवच अभी धारण कर लीजिए। जब तक ये आपके हाथ में हैं वे बुरी आत्माएं आपके दूर ही रहेंगी।
" पंडित जी अभी मुझे एक बात याद आई।" कमल ने पंडित जी को चमेली की खुशबू की बात बता दी।
" यह तो आपके लिए प्रसन्नता की बात है । इसका अर्थ है कि वहां कोई दिव्य शक्ति या पवित्र आत्मा है जो आपकी रक्षा कर रही है।" पंडित जी ने कहा।
" आपको ध्यान में उस पवित्र आत्मा के विषय में पता नहीं चला।" न चाहते हुए भी मिहिर का स्वर व्यंगात्मक हो गया।
" मैने ध्यान में केवल आपकी समस्या के बारे में सोचा था कि वे कौन हैं इससे अधिक नहीं। " पंडित जी के स्वर की कोमलता अभी भी बनी हुई थी।
कमल ने बात को संभालने का प्रयास करते हुए पंडित जी से पूछा " पंडित जी आप बताइए कि हमें जब तक दूसरा घर नहीं मिलता है तब तक के लिए हम क्या करें?"
" आप दोनों समय पूर्ण श्रद्धा से दीप प्रज्वल और पूजन अवश्य कीजिए रक्षा सूत्र आप यहीं मंदिर में ही बांध लीजिए अपने हाथ में और घर में मांसाहारी भोजन– शराब इत्यादि से दूर रहिएगा प्रयास करिएगा कि बाहर भी न लें।"
" हम लोग तो शाकाहारी हैं और रही शराब की बात तो मिहिर इन सबसे दूर रहते हैं।" कमल के कहने पर मिहिर थोड़ा सा असहज हो गया क्योंकि वह दोस्तों के साथ कभी–कभी पी लेता था लेकिन उसने यह बात कमल को नहीं बताई थी।
" बहुत अच्छी बात है लेकिन यदि लेते भी हों तो अब न लें। " यह बात उन्होंने मिहिर को देखते हुए कही जैसे वे उसके मन की बात समझ गए थे।
पंडित जी को प्रणाम कर और रक्षासूत्र बांध कर वे दोनो घर आ गए। मिहिर ऑफिस चला गया। सुनीता भी आ गई थी।कमल सुनीता के साथ घर का काम निबटाने लगी।
Megha
( क्या हुआ था उस रात?क्या वास्तव में नियति उनके द्वारा कुछ करवाना चाहती है? मिहिर और कमल दूसरे घरमें जा सकेंगे? जानने के लिए साथ बने रहिए।)
एक बात बताती हूं आप सभी को परसों रात में जब इस कहानी को आगे बढ़ाने के विषय में सोच रही थी तब अचानक मुझे खुद ही डर लगने लगा इन किरदारों से ऐसा लगा जैसे वे उंगलियां मेरे आस पास हैं और एक अस्पष्ट चेहरा छत से मुझे घूर रहा है। मैं चौंक गई कि अपनी ही कहानी के किरदारों से मैं क्यों डर रही हूं उसके बाद मैं उसके बारे में सोचना छोड़ कर सोने का प्रयास करने लगी।