अश्रु मौन हैं
अश्रु मौन हैं
कुछ जज्बात आंखों में उमड़ते हैं लेकिन कोर तक गीले होने के पहले ही ठिठक कर रुक जाते हैं। इसके पहले कि आंखें छलछलाएं मौन उनको रोक लेता है ..किसलिए ? क्यों ? अंतस की पीड़ा का यूं इस तरह व्यक्त होना हर बार आवश्यक है क्या ? क्यों न इस पीड़ा को हृदय में रखकर इसका आनंद भी लिया जाय !
क्योंकि जिस कारण से यह पीड़ा महसूस हो रही है, रोने से उस पर किंचित मात्र भी प्रभाव नहीं पड़ेगा और फिर यह सोचा ही क्यों जाय कि पड़ेगा यदि पड़ना होता तो यह पीड़ा प्रकट ही क्यों होती!
फिर यह भी तो होता है कि इस कष्ट का आवेग कितना है ? यदि आवेग अधिक है तो रोकना विफल रहेगा। सभी तटबंध टूट कर यह बहेगा ही लेकिन ऐसा भी तो होता है न कि आवेग तो बहुत है पर बार–बार की खिन्नता ने इस बार मार्ग अवरूद्ध कर इस आवेग का आनंद लेने की ठान ली हो।
कभी आवेग को उसी स्थान पर रोकर महसूस किया है ? जब आंखें इस आवेग को रोकने के परिश्रम में जलने लगती है और मौन होंठो पर ही नहीं शरीर के रोम–रोम में। प्रस्फुटित होने लगता है। इस समय यह मौन शून्यता की ओर ले जाता है। मन की उथल–पुथल के मध्य से गुजरते हुए एक सीधी सड़क पर जिसका कोई मोड़ नहीं, जहां से जुड़ा अन्य कोई रास्ता नहीं... बस चल
ते जाना , बिना किसी उद्देश्य के।
मन का मौन मुखरित होता है और बाहर का कोलाहल श्रवण इंद्रियों के पास आने के पहले ही चुप्पी साध लेता है। इस अवस्था में शून्यता का व्याप्त होना भी एक प्रकार का आनंद प्रदान करता है।
स्वयं से साक्षात्कार करने का समय... स्वयं से वार्तालाप करने का समय... और कुछ भी न हो तो स्वयं के साथ समय गुजारना ही बहुत बड़ी बात हो जाती है जो हम अक्सर जीवन की आपाधापी के मध्य नहीं कर पाते हैं।
कभी अश्रुओं के आवेग को रोककर इस परिस्थिति को भी आने दें, आनंद लें इन पलों का भी, पीड़ा का क्या है... वह तो किसी न किसी रूप में विद्यमान रहेगी ही। इस पीड़ा को पीकर उसके साथ चलकर भी कभी देखा जाए। मौन की गुंजित परिभाषाओं को साथ रखकर भी उनसे विरक्त होना... कुछ समय के लिए सबसे पृथक होना और फिर धीरे – धीरे लौट आना अपने स्थूल जगत में फिर निर्बाध बहने देना इस अश्रु प्रवाह को क्योंकि तब ये अश्रु उस यात्रा की थकान को दूर कर देने में कुछ सहायक होंगे हां पीड़ा अपना समय लेगी और यह स्वयं पर भी निर्भर करता है कि कब तक हम इसे स्थान देना चाहते है अथवा इस पीड़ा का आलंबन कितना मजबूत है, इसका रहना न रहना इस बात पर भी निर्भर करता है।