Megha Rathi

Horror Fantasy

4  

Megha Rathi

Horror Fantasy

उंगलियां ,भाग 6

उंगलियां ,भाग 6

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उंगलियां , भाग 6


काम के साथ ही साथ कमल बीच – बीच में सुनीता से बात भी करती जा रही थी। सुनीता की कहानी आम कामवालियों की तरह ही थी। पति गांव से यहां मजदूरी करने आया और साथ में सुनीता को भी ले आया। बच्चे होने के बाद घर का खर्च बढ़ गया और साथ ही उसके आदमी को शराब की लत लग गई जिसके कारण उसने भी काम करना शुरू कर दिया।

बस एक बात कमल को अलग लगी और वो ये कि वह बच्चों को तो पढ़ा ही रही थी साथ ही रात में खुद भी एक एन जी ओ द्वारा संचालित कक्षा में पढ़ने जा रही थी ताकि वह अपने बच्चों की पढ़ाई समझ सके।

काम खत्म करके सुनीता जा ही रही थी कि उसे कुछ याद आया और वह पलट कर कमल के पास आई, " मैडम, आपकी नई शादी हुई है न...नई दुल्हन का रूप उनको बहुत लुभाता है तो आप घर में ज्यादा बनाव सिंगार करके मत रहना और हां सिंदूर रोज लगाना।"

" यह क्या कह रही हो सुनीता? मैं तो वैसे भी घर में साधारण ढंग से ही रहती हूं और किसे रूप लुभाता है?...तुम कहना क्या चाहती हो?", कमल सशंकित हो गई।

" उनका नाम नहीं लेते मैडम.. न उनके बारे में ज्यादा बात करना और सोचना चाहिए वे बुरी ताकत होती हैं। ", कहते हुए सुनीता ने अपनी जीभ काट ली। " आप घबराइए मत, ये तो गांव में सभी नई ब्याहता महिलाओं को कहा जाता है , हमने भी आपको बस यूं ही कह दिया था। अच्छा, चलती हूं मैं। दरवाजा बंद कर लीजिए।"

सुनीता तो चली गई लेकिन कमल उसकी बातों से डर गई थी। उसका ध्यान अपनी कलाई में बंधे रक्षा सूत्र पर गया तो उसका डर कुछ कम हुआ। तभी उसे ख्याल आया कि क्यों न वो नीलम अंजली या वीना में से किसी को यहां बुला ले। यह सोचकर उसने सबसे पहले अंजली को कॉल किया क्योंकि वह घर के पास रहती थी लेकिन अंजली किसी काम में व्यस्त थी इस कारण उसने आने में असमर्थता व्यक्त कर दी। नीलम के यहां भी कोई आया हुआ था और वीना बाजार गई हुई थी।

कमल लॉन में टहलते हुए सड़क की ओर देखने लगी। यहां दिन में भी चहल– पहल कम थी। सर्दी की जाती हुई शामें वैसे भी थोड़ी भारी होने लगती हैं। अभी दिन ढलने में समय था लेकिन शाम के पांच बजे के बाद अंधेरा होने लगते था।

तभी उसने पड़ोस की एक महिला को गुजरते देखा। उन दोनों की आंखें मिली और वे मुस्कुरा दीं। वह महिला ठहर गई। कमल उसके पास पहुंच गई। औपचारिक परिचय के दौरान कमल को पता चला कि वह महिला उसके घर से कुछ ही आगे रहती है और उसका नाम साधना है।

" एक बात पूछूं अगर बुरा न माने तो?", साधना ने कहा।

" कहिए न।"

" आपको यहां डर नहीं लगता...मेरा मतलब है इस जगह के बारे में कई कहानियां फैली हुई हैं।", साधना के पूछने पर कमल का चेहरा फक्क हो गया।

इसी डर को भूलने के लिए वह बाहर आई थी और यहां भी...

" ऐसा क्या है इस जगह पर? मैं तो नई हूं इसलिए कुछ खास नहीं पता मुझे।", कमल ने अनभिज्ञता जाहिर करने का दिखावा किया।

" लोग यहां शाम को आने से बचते हैं , कहा जाता है...", साधना भी वही कहानी सुनाई जो वो पहले भी सुन चुकी थी।

"पर जमींदार किसी को क्यों परेशान करेगा , वह तो देशभक्त था।", अचानक ही कमल के मुंह से यह बात सुनकर साधना पहले चौंकी फिर उसने अपनी आंखें बड़ी करते हुए पूछा, " तुमको कैसे पता यह?"

"अरे नहीं, मैने तो सुना है कि जमींदार अच्छे होते थे ,देशभक्त होते थे, इसी कारण मुंह से निकल गया लेकिन यह जमींदार हो सकता है बहुत बुरा हो।", कमल ने बात को संभालने की कोशिश की।

साधना ने कुछ नहीं कहा बस उसे ध्यान से देखा और बोली, " अपना ध्यान रखना। मेरी जब भी जरूरत हो, मुझे किसी भी समय, आधी रात को भी कॉल कर लेना।", कहते हुए उसने कमल को अपना नंबर नोट करवा दिया और चली गई।

कमल को साधना कुछ अजीब लगी।

दरवाजे के पास आते हुए उसने फिर से गर्म हवा को अपने इर्द– गिर्द महसूस किया लेकिन वह हवा उसे पहले की तरह छू नहीं पा रही थी। अचानक आंधी चलने लगी और तेज हवाओं के साथ पेड़ पौधे जोर –जोर से हिलने लगे।कमल घर में जाना चाहती थी लेकिन हवाओं के वेग के कारण नहीं जा पा रही थी। हवाएं उसे एक खास दिशा की ओर धकेल रही थीं और वह बेबस सी उस ओर चली जा रही थी। कमल को बहुत डर लग रहा था, वो मदद के लिए चिल्ला रही थी लेकिन उसकी आवाज़ हवाओ के शोर में दब कर रह जा रही थी।

भयभीत सी कमल ने गर्दन पीछे मोड़ कर देखा तो लॉन की कंटीली बाड़ उसके निकट ही थी। कमल अपने कदमों को खींचने की कोशिश कर रही थी पर उसकी कोशिश बेकार हो रही थी। 

अब कमल को एक हल्की गुर्राहट मिश्रित हँसी की आवाज भी सुनाई देने लगी थी। तभी कमल को रक्षा कवच की याद आई। उसने मां दुर्गा को याद कर के रक्षाकवच वाला अपना हाथ ऊपर उठाया। हवाओं का वेग कम ज़रूर हुआ किंतु थमा नहीं। कमल को याद आया कि पंडित जी ने कहा था कि यह बुरी आत्माओं को तुमसे दूर रखेगा। 

" शायद इसी कारण यह आत्मा मेरे पास नहीं आ पाई लेकिन यह इस तरह से तूफान पैदा कर मुझे डराने और चोट पहुंचाने का प्रयास कर रही है।", कमल ने सोचा और अपना हाथ ऊंचा किए हुए ही वापिस घर के दरवाजे की ओर चलने लगी। हवाओं का जोर कम हो जाने के कारण अब उसे उतना संघर्ष नहीं करना पड़ रहा था।

अंधेरा भी होने लगा था। सहसा कमल को मिहिर की चिंता होने लगी। कहीं ये आत्मा उसे नुकसान न पहुंचाए। उसके आने का समय भी हो गया था। " एक बार घर में पहुंच जाऊं फिर मिहिर को फोन करके सब बता दूंगी और उसे पंडित जी के पास जाने के लिए कहूंगी। ", अभी वो ये सोच ही रही थी कि पेड़ की एक बड़ी डाली टूट कर उड़ती हुई आई और उसके सिर पर जा गिरी। कमल के मुंह से एक चीख निकली और वह जमीन पर गिर कर बेहोश सी हो गई। अर्ध बेहोशी में उसने मिहिर की मोटर साइकिल की आवाज सुनी और हवाओ के बढ़ते वेग को महसूस किया। उसने उठने की कोशिश की लेकिन उठ नहीं पाई। 

” मिहिर चले जाओ ,यहां खतरा है। हे देवी मां मिहिर की रक्षा कीजिए।”, बुदबुदाती हुई कमल ने पूरी तरह बेहोश होने के पहले चमेली की खुशबू को पास आते हुए महसूस किया और साथ ही कुछ कदमों की आहट को भी।

( अरे अब क्या होगा? वो बुरी आत्मा तो अब अपना शिकंजा बढ़ाने लगी है। मिहिर का क्या होगा? कया चमेली की गंध वास्तव में किसी अच्छी आत्मा की है या यह भी कोई छलावा है? जानने के लिए साथ बने रहिए।)


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