उंगलियां भाग 4
उंगलियां भाग 4
उंगलियां, भाग 4
देर रात तक मिहिर को नींद नहीं आई और न ही कमल सो पा रही थी। वे दोनों ही इस बारे में बात करना चाहते थे लेकिन कर नहीं पा रहे थे।
अगले दिन ऑफिस में मिहिर ने लंच टाइम में अपने दोस्तों के बीच इस विषय पर चर्चा की।
" तुझे पूरा यकीन है कि ये सपना नहीं था।", नमन ने गौर से उसे देखते हुए पूछा।
"यार सपने में दर्द कैसे महसूस हो सकता है, ऑफकोर्स यह सब हकीक़त में हुआ था और वो कहानी भी तो यहां के लोग सुनाते हैं।", मिहिर ने परांठे का कौर मुंह में रख लिया।
"देख भाई, ऐसी कहानियां तो हर कहीं सुनने के लिए मिलती हैं। इन पर भरोसा थोड़े ही कर सकते हैं। मेरे गांव में भी ऐसी कई कहानियां हैं। मुझे लगता है तुम एक बार डॉक्टर से बात करके देखो।",सुमित ने अपना लंच बॉक्स बंद करते हुए कहा।
" मैं बीमार नहीं हूं सुमित, यह सब मैंने खुली आंखों से देखा और महसूस किया है कल रात।"
" यार, तेरी शादी के पहले हम कई बार देर रात तक तेरे घर रहे हैं और बीवियों के मायके जाने पर तो रात भर भी, हम में से किसी के साथ तो ऐसा कुछ होता!", नमन झल्ला गया।
"कहना क्या चाहते हो , मैं झूठ बोल रहा हूं या कहानी सुना रहा हूं।", मिहिर भी तैश में आ गया।" तुम लोगों को मेरी बात पर भरोसा ही नहीं है!"
" चुप हो जाओ तुम दोनों।" विकास ने दोनों को टोका।" सुन मिहिर, एक काम करते हैं.. कोई अच्छा सा दिन देखकर तुम घर में कथा करवा लो। घर में सकारात्मकता बढ़ेगी और वैसे भी भगवान का नाम लेने में क्या सोचना! मैं नीलम से कह देता हूं वह पंडित जी से पूछ लेगी और जरूरी सामान की लिस्ट भी ले लेगी।"
" यह मेरे दिमाग में क्यों नहीं आया पर चलो अच्छा है इस बहाने घर में शुद्धि हो जाएगी।", मिहिर इस ख्याल से सुकून से भर गया।
शाम को उसने कमल को कथा करवाने के बारे में बताया।
" परसों पूर्णमासी है, उसी दिन कथा होगी। तुम नीलम भाभी से सभी सामान की लिस्ट ले लेना।"
" ठीक है लेकिन मिहिर, यहां घर में हमने अभी तक पूजा घर स्थापित नहीं किया और न ही तुमने तुमने तुलसी का पौधा लगाया है।"
" मम्मी पापा ने गणेश जी की तस्वीर रखी थी न।"
" हां , रसोई में कलश के साथ थी लेकिन पूजा का स्थान भी होता है न।", कमल की बात पर मिहिर ने अपनी गर्दन हिलाई।
" ऐसा करते हैं, परसों पंडित जी से ही स्थापित करवा लेंगे।कल पूजा का सामान लेने चलेंगे तो पूजा घर के लिए भी सब वस्तुएं और देव प्रतिमाएं ले लेंगे।"
नीलम ने पूजन सामग्री की सभी वस्तुओं की लिस्ट कमल को व्हाट्स अप कर दी थी।
अंजली के साथ जाकर कमल आस– पड़ोस के घरों में में भी कथा के लिए बोल आई थी। इस बहाने उसका परिचय भी आस –पास के लोगों से हो गया था। उसने सुनीता को काम के लिए कह दिया था। ’ जब तक दूसरी नहीं मिलती तब तक तो इसी से करवा लो।’ अंजली की सलाह उसे उचित लगी थी।
खाना खाने के बाद वे दोनों बाजार जाकर सभी सामान और फल आदि ले आए थे।दुर्गा मां की एक भव्य प्रतिमा के साथ बाल गोपाल जी का स्वरूप और विष्णु भगवान की झिलमिलाती तस्वीर उन्होंने पूजा घर बनाए जाने वाले स्थान पर रख दी थी।
उस रात उनके साथ कोई भी भयावह अनुभव नहीं हुआ। अगले दिन सुबह से ही कमल और मिहिर कथा की तैयारी और भोजन – प्रसाद की व्यवस्था में जुट गए। कथाएं के ग्यारह बजे से आरंभ होनी थी। नौ बजे तक नीलम– विकास, नमन–वीना और सुमित–अंजली भी उनकी मदद के लिए आ गए थे।
वीना तुलसी का गमला लेकर आई थी जिसे उसने आंगन में रख दिया।
कुछ समय बाद पंडित जी भी आ गए। पीली धोती के साथ लाल कुर्ता पहने हुए गौर वर्णी पंडित जी ने सिर पर शिखा बांधी हुई थी। देखने में वह पच्चीस– छब्बीस साल से ज्यादा के नहीं लग रहे थे पर उनके मुंह पर तेज था।
" ये बाल ब्रह्मचारी हैं, सुना है बजरंगबली जी की सिद्धि प्राप्त है इनको।", नीलम कमल के कान में बताया।
पंडित जी कथा स्थल पर बैठ गए और पूजन स्थल सजाने लगे। केले के पत्तों का मंडप मिहिर और नमन पहले ही बना चुके थे।
" पंडित जी हमारे घर में भी पूजा घर भी स्थापित कर दीजिएगा।" कमल ने प्रसाद सभी सामग्रियां उनके पास रखते हुए कहा।
" अभी तक आपने घर में पूजा घर नहीं बनाया!.. जबकि आपको सर्वप्रथम यही करना चाहिए था, खैर...बताइए कहां स्थापित करना है।", कहकर पंडित जी खड़े हो गए। उनका कार्य पूर्ण हो गया था, अपने साथ लाई भगवान सत्यनारायण जी की तस्वीर पर चौकी पर लाल कपड़ा बांधकर, कलश को चावल की ढेरी पर रखकर उसमें आम के पत्ते और श्री फल रखकर स्थापित कर चुके थे।
कमल उन्हें कमरे में ले गई जहां पूजा घर बनाना था। पंडित जी को इस कमरे में प्रवेश करते ही कुछ अजीब सा लगा । उन्होंने तुरंत मंत्रोच्चारण आरंभ कर दिया। गंगाजल छिड़क कर स्थान पवित्र करने के बाद उन्होंने रोली से स्वस्तिक का निशान बनाया और एक कलश रखा। पीला वस्त्र बिछाकर सभी देव प्रतिमाओं और तस्वीर को गंगाजल से स्नान करवा कर शुद्ध कर उन्होंने पूजा घर में स्थापित कर दिया। पुष्प चढ़ा कर और अगरबत्ती दीपक प्रज्वलित कर उन्होंने उनकी आराधना की तथा भोग लगाया।
" सुबह और गोधूलि बेला के समय आप आरती अवश्य करें। तुलसी को नियमित रूप से जल चढ़ाएं। तुलसी तो है न?"
" हां पंडित जी, आंगन में रखी है आज ही। "
" चलिए वहां भी पूजन कर देते हैं।"
आंगन में जाते ही सभी आश्चर्य से भर गए। वीना और कमल भागकर गमले के पास गए।
" मैं तो एकदम हरी भरी तुलसी जी लाई थी और अभी तो गर्मियां भी नहीं कि धूप बहुत तेज हो।", वीना हैरान थी।
हैरान तो सभी थे क्योंकि तुलसी न केवल मुरझा गई थी अपितु उसके पत्ते भी काले पड़ कर झुलसे हुए दिख रहे थे।
पंडित जी ने आंखें बंद कर कुछ ध्यान किया।
" दूसरा पौधा ले आइए यजमान। "
" मेरे पास एक और पौधा है। नमन तुम घर जाकर ले आओ।", वीना ने जल्दी से कहा। नमन स्कूटर की चाबी लेकर चला गया।
" परेशान न हों, आइए कथा का समय हो रहा है।", कहकर पंडित जी अंदर चले गए।
धीरे– धीरे सभी लोग आ गए थे। नमन दूसरा पौधा ले आया था जिसे पंडित जी ने इशारे से कमरे में ही रखने के लिए कह दिया था। कथा आरंभ करने के पहले उन्होंने शंख ध्वनि की।
" श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पंचम अध्याय संपूर्ण"
इसके बाद आरती हुई और फिर प्रसाद वितरण। अभी तक सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा था।
कथा के बाद कमल और मिहिर के मन में भी सकारात्मकता भर गई थी। आंचल में रखे पंडित जी के दिए फल रसोई रखकर कमल किसी काम से आंगन में गई तो उसे फिर से गर्म हवा का झोंका महसूस हुआ लेकिन इस बार कोई छुअन नहीं थी पर वह किसी आवेश को अपने इर्द गिर्द महसूस कर रही थी।
वह जल्दी से घर के अंदर आ गई। यहां सब कुछ ठीक था। पंडित जी भोजन के बाद के बाद चलने को हुए तो अचानक ठिठक गए और उन्होंने उन दोनों को अपने पास बुलाया।
" कुछ है यहां जो सही नहीं। मैं महसूस कर रहा हूं लेकिन अभी जान नहीं पाया हूं। क्या आप लोगों को भी ऐसा लगा है?"
यह सुनते ही वे आश्चर्य से भर गए। उन दोनों ने अपनी पूरी आपबीती पंडित जी को सुना दी।
" आप लोग कल मंदिर आइएगा। मैं आपकी समस्या के संदर्भ में कुछ सोचता हूं, ईश्वर पर विश्वास बनाए रखियेगा। ", कहकर पंडित जी चले गए।
( क्या पंडित जी इस रहस्य को सुलझा सकेंगे? तुलसी का पौधा सूखने
का कारण क्या है? जानने के लिए साथ बने रहिए।)
क्रमशः