Megha Rathi

Horror Fantasy Thriller

4  

Megha Rathi

Horror Fantasy Thriller

उंगलियां भाग 2

उंगलियां भाग 2

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उंगलियां, भाग 2


 सुबह उठने पर कमल रात की बात काफी हद तक भूल चुकी थी। अपने बालों का जूड़ा बनाते हुए उसने मिहिर की तरफ देखा। सोता हुआ मिहिर एकदम मासूम बच्चे की तरह लग रहा था। सोते हुए भी उसकी आंखें थोड़ी खुली हुई थीं। कमल को याद आया कि उसकी दादी कहती थीं कि ऐसे अधखुली आंखों से देवता सोते हैं। यह याद आते ही कमल के चेहरे पर एक मुस्कान खिल गई। " तुम भी तो देवता हो...मेरे प्रेम के देवता।", कहते हुए उसने मिहिर के माथे पर चुम्बन अंकित किया ही था कि उसने अपनी आंखें पूरी खोल कर कमल को बाहों में कस कर खुद पर गिरा लिया।

" बदमाश.. तुम जागे हुए थे।", कमल ने उसके सीने पर मुक्का मारते हुए खुद को छुड़ाने की एक नकली कोशिश की। अंदर ही अंदर वो खुद मिहिर की बाहों में यूं ही समाए रहना चाहती थी।

" छोड़ो मुझे तुम।", कमल ने फिर से झूठ मूठ कहा।

" ओके,ठीक है ..छोड़ दिया। जाओ।", अचानक मिहिर के उसे अपनी कैद से आजाद कर देने पर कमल हक्की बक्की रह गई पर वही तो नखरे दिखा रही थी इसलिए वह बिना कुछ कहे बेड से उठकर जाने लगी तो मिहिर ने फिर से उसे खींच लिया। इस बार कमल बिना कुछ कहे मिहिर की आंखों में देखकर चाहत भरी नजरों से मुस्कुराने लगी।

"रात को थकी हुई थीं न तुम?"

"हां, बहुत।", कमल की आवाज मिहिर की देहगंध के कारण मदहोश होने लगी थी।

" अब तो थकान दूर हो गई न, तो बंदे को इजाज़त...."

"उफ्फ मिहिर, चाय तो बनाने दो।", कमजोर पड़ती हुई कमल के कहने पर मिहिर ने उसे अपने और करीब खींच कर उसके कान में कुछ कहा जिसे सुनकर वह लाज से दोहरी होकर भागने को हुई तो मिहिर ने उसे अपने और पास कस लिया।

अपने आप में खोए इस जोड़े को जरा भी अंदाज नहीं था कि दरवाजे के पास कुछ हलचल हो रही थी।

अचानक एक तेज आवाज से वे दोनों चौंक कर अलग हो गए और बाहर के कमरे की ओर भागे।

" यहां तो सब ठीक है फिर ये आवाज़ कहां से आई?...रसोई में चलकर देखते हैं।"

पर रसोई में भी सब ठीक था और दूसरे बेडरूम में भी सब सामान्य ही था।

" यार, आवाज़ तो बहुत जोर से आई थी जैसे कोई सामान गिरा हो पर यहां तो ऐसा कुछ नहीं दिख रहा।", मिहिर अब भी घर में नजरें दौड़ा रहा था।

" हो सकता है अड़ोस पड़ोस से आवाज़ आई हो।", कमल ने अंदाज लगाया।

" पर इतनी तेज!"

" मिहिर सुबह का समय है, अभी इतना शोर शराबा नहीं बढ़ा और फिर हम दोनों एक दूजे में खोए हुए थे कि अचानक आई आवाज हमें बहुत तेज महसूस हुई वर्ना घर में तो सब ठीक है। तुम मुंह हाथ धो लो मैं चाय बनाती हूं तब तक। ", कहते हुए कमल अपने दुलक गए जूडे को फिर से बांधती हुई रसोई चली गई। नहा कर नाश्ता करने के बाद मिहिर ऑफिस चला गया और कमल जुट गई अपनी गृहस्थी को जमाने में। सब कुछ व्यवस्थित सा था ही बस कमल ने अपने साथ लाए सामान को जमाया, घर की साफ सफाई की ओर फिर नहा कर गुलाबी रंग का लखनवी काम का सूट पहन लिया।

सिर पर दुपट्टा लेकर वह भगवान का दिया जलाने ही जा रही थी कि किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी।

कमल ने दरवाजा खोला तो देखा सुमित की पत्नी अंजलि आई थी और उसके साथ एक महिला और थी। 

" अंजली आप, आइए न।, " कहते हुए कमल ने दरवाजे से थोड़ा हटते हुए उसे अंदर आने के लिए कहा।

" फिर से आप... कल कितना समझाया था न कि अब हम सभी सहेलियां हैं।"

" सॉरी अंजली, एकदम से मुंह से निकल गया, धीरे· धीरे आदत आ जाएगी। तुम आओ न।"

"ये हुई न बात।", अंजली आकार सोफे पर बैठ गई लेकिन उसके साथ आई महिला अंदर आकर भी खड़ी रही।

"यह सुनीता है। मुझे लगा शायद तुम्हें घर के कामों में मदद के लिए किसी की जरूरत हो।"

" तुम सच में बहुत अच्छी हो अंजली। बिना कहे ही तुमने मेरी मदद के लिए सोचा, थैंक यू।"

" अरे बस यार, तुम बात कर लो इससे पहले। सुनीता अपने काम में बहुत माहिर है। मेरे और नीलम के घर भी यही काम करती है।"

"अच्छा।",कहते हुए कमल सुनीता से बात करने लगी। उसका मेहनताना छुट्टियां सब तय हो गई। अगले दिन से सुनीता ने काम करने के लिए हामी दे दी।

" लेकिन दीदी,हम शाम चार बजे के बाद आपके घर में नहीं रुक पाएंगे।"

" तब तक तो काम वैसे भी निबट जाएंगे लेकिन कभी कोई इमरजेंसी हुई तब तो रुक सकती हो न?"

" दीदी, आप भले हमें काम पर मत रखो पर शाम चार बजे के बाद कॉलोनी के इस हिस्से की ओर कोई कामवाली नहीं आएगी। ",कहते हुए सुनीता की आंखों में भय उतर आया।

"पागल है क्या? हम तो कल देर रात तक यहीं थे, ऐसी क्या बात है जो तुम लोग यहां नहीं आ सकते?", अंजली ने सुनीता को झिड़कते हुए कहा।

" आप पढ़े – लिखे लोग हैं दीदी लेकिन हम लोग ये सब मानते हैं। दीदी आप सोच कर हमको बता देना या कोई और बाई मिले तो उसे रख लेना पर हमारी बस इतनी सी ही दिक्कत है।", सुनीता विनम्रता से कहती हुई चली गई।

" बहुत अंधविश्वासी होते हैं ये लोग। टेंशन मत ले मैं और किसी से पूछती हूं। ये कोई अकेली थोड़े ही है।", अंजली ने माहौल सामान्य करते हुए कहा।


( क्या वास्तव में यह सुनीता का अंधविश्वास है? कोई भी काम शाम चार बजे के बाद उनके घर के आस पास क्यों नहीं रुकना चाहती? सुबह आई तेज आवाज का रहस्य क्या

 है? जानने के लिए साथ बने रहिए।)

क्रमशः


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