Ira Johri

Abstract

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Ira Johri

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उल्लास के रंग

उल्लास के रंग

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जिस आँगन में अठखेलियां करते कभी बचपन गुजरा था। हर तरफ खुशियों की बरसात से सभी सरोबार नजर आते थे। आज उम्र की ढलान में उसी आँगन की ठइया जाने क्यों बेगानी सी लगने लगी है।  दिल करता है एक बार फिर से सबके साथ जिन्दगी के अनमोल लम्हों को जी कर जीवन में कुछ रस घोल लूँ।    

पर वर्तमान हालात देख दिमाग भविष्य के गर्त में छिपी सच्चाई दिखला अपने कर्तव्य की इतिश्री सब झटक कर आगे बढ़ जाने में ही समझा कुछ सोचने को मजबूर कर देता है।  

आज उसी आँगन से उल्लास का रंग न जानें कहाँ खो गया है। 


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