त्यौहार पर चढ़ा आधुनिकता चादर
त्यौहार पर चढ़ा आधुनिकता चादर
हैप्पी होली अभि...गाल पर गुलाल लगाते हुए आयशा कहती है....। और अभि तकिये में गुलाल पोंछते हुए अनमने ढंग से कहता है " हाँ हैप्पी होली "...कहकर फिर से करवट लेकर सो जाता है...।
उठो ना अभि...।। चलो ना कहीं चलते या अपने दोस्तों को घर पर बुलाते है और तुम्हारी दूर की मौसी भी तो है उन्हें भी बुला लेते है...मजा आयेगा अभि...उठो ना अभि आज होली है यार उठो ना.....अभि को गुदगुदी करते हुए उठाती है...।
आयशा प्लीज मुझे सोने दो...। और तुम्हें पता है ना कि मुझे ये रंग गुलाल खेलना और लगाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता...। फिर भी तुम परेशान कर रही हो और घर बुलाने के बारे में सोचना भी मत.... खामखा मेरी छुट्टी खराब हो जायेगी । अब हटो यहाँ से और मुझे सोने दो....थोड़ा चिढ़ते हुए अभि कहता है...।
अच्छा चलो नहीं उठायेंगे पर ये तो बता दो की आज खाने में क्या खाओगे....? मालपुए, दही बड़े, भजिया बना दूँ.....वो आज होली है इसलिए मैं सोच रही थी ये सब थोड़ा थोड़ा बना दूं...खुश होते हुए आयशा कहती हैं...।
तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है आयशा...इतना ऑइली और अनहेल्थी खाना कौन खाता है...? सदा बनाना सदा वर्ना खुद ही खा लेना....गुस्से से अभि कहकर सो जाता है...।
हर बात पर अभि की ना सुनकर आयशा का मन उदास हो जाता है और वो मायूस होकर अपने खिड़की के पास लगे कुर्सी पर बैठ जाती है और अतीत के गलियारों में भटकने लगती है.....।
मुझे आज भी याद है मायके की होली और वो सभी बहुओं का ताकत प्रदर्शन होली के माध्यम से । कितना मजेदार हुआ करता था वो पल जब सभी चाचियाँ आपस में रंग लगाने के बहाने आंगन में पटकम पटकाई करती थी और जो रंग लगाने में कामयाब हो जाती थी उनके चेहरे की खुशी देखने लायक होती थी.....।
कितना भरा पूरा परिवार हुआ करता था....? दादा दादी , चाचा चाची और दर्जनों भाई बहनों की टोली । ऐसा लगता था जैसे पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया हो । बड़े बड़े हांडी में खाना तैयार होता था । दही बड़े , पुआ , पूरी , मिठाई तरह तरह की सब्जी क्या कहने थे उस खाने का । पर अब दो लोगों में सिमट गए है ये पर्व त्योहार । कौन खाएं और कौन पकाएं......?
अब तो अबीर गुलाल भी लगाने का मन नहीं करता । जीवन का सारा मजा जैसे संकुचित हो गया हो वैसे ही लगता है आजकल के त्योहार । एक वो दिन थे और एक आज का दिन है...। कितना बदल गया है सब कुछ...।
पहले तो बड़े बड़े ड्रम में रंग बिरंगे रंग भर कर रखे जाते थे और फिर बाल्टी भर भर कर सबको भिंगाया जाता था । हर उम्र वालों की अपनी अपनी टोली और सब रंग की मस्ती में मस्त एक दूसरे को रंग लगा कर होली की बधाइयां देते थे । कितना मजा आता था उन दिनों....? सुबह से रात कब हो जाता पता ही नहीं चलता था पर आज की होली का त्योहार नाम का त्यौहार हो गया है और बड़े शहरों में तो खास कर ये नाम के त्यौहार हो गए हैं.....।
इंसान अपने हर दिन की दिनचर्या से इतना थक जाता है कि बस उसे सिर्फ छुट्टी चाहिए होती है किसी तरह बस आराम करना और अगर मन हो भी गया तो किसी ऐसे प्रोग्राम में चले जाते हैं जहाँ रेन डांस और मस्ती धमाल हो...। खुद दो चार लोग जाते हैं और नाच गान करके अपने कबूतर खाने में वापस....। जैसा मैं बैठी हूँ अपने कबूतर खाने में....।
पहले का समय ही अच्छा था...। संयुक्त परिवार कितना अच्छा था हाँ झगड़े होते थे पर जहाँ चार बर्तन होंगे वहाँ तो टकरायेंगें ही पर अब देखो दो से तीन लोगों का परिवार रह गया है....सोचते सोचते आयशा के आँखों में आंसू आ जाता है कि तभी दरवाजे की घंटी बजती है....।
अनमने मन से आयशा दरवाजा खोलती है और जैसे ही दरवाजा खोलती है वैसे ही गुलाल उसके गालों पर लगा दिए जाते हैं और मीठी सी आवाज़ में " हैप्पी होली भाभी " शब्द सुनाई देता है...। जिसे सुनकर आयशा खुशी से हँसते हुए कहती हैं " तनु दीदी जीजाजी आप अचानक... । फिर हैप्पी होली कहते हुए तनु के गले लग जाती है....।।
हाँ भाभी वो इनके ऑफिस की मीटिंग थी यहाँ मुंबई में तो अचानक आना प़डा तो सोचा आपको और भाई को सरप्राइज दे दूं.....।। क्यों अच्छा लगा ना हमारा सरप्राइज भाभी....। अच्छा छोड़ो भाभी ये बात पहले ये बताओ हमारा रंग से बचने वाला भाई कहाँ है....? जल्दी बताओ भाभी....।
बहुत अच्छा लगा दीदी....। आप आई तो घर में और त्यौहार में रौनक आ गई.....ऐसा कहते हुए आयशा बेडरुम की तरफ इशारा करती है । तनु और उसका पति करण हाथों में गुलाल लिए सीधा अभि के कमरे में जाते हैं और अभि को रंग लगाते हुए हैप्पी होली कहती हैं...।
बहन और जीजाजी की आवाज सुनकर अभि खुशी से उठ जाता है फिर पूरा दिन यूँ ही मस्ती मज़ाक में निकाल जाता है.....।
सच में दोस्तों त्यौहार का मजा तो अपनों के साथ ही आता है.....। दो पैसे कमाने के चक्कर मे लोग अपने घर से दूर जाते हैं और वहाँ आधुनिकता के चंगुल में फंस कर त्यौहार को बस नाम का बना देते हैं....। और आयशा जैसी अकेली इंसान चाह कर भी त्योहार का मजा नहीं उठा पाता इसलिए होली दिवाली अपने पूरे परिवार के साथ ही मनाएँ खुशिया दुगुनी हो जाती है......।
नोट : इस कहानी के माध्यम से आप लोगों के समक्ष सिर्फ अपने विचारों को रख रही हूं । मेरा मकसद किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है । ये रचना पूरी तरह से मेरी लिखी हुई है ।
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