" बेटियां कमजोर नहीं होती "
" बेटियां कमजोर नहीं होती "
ट्यूशन से आते ही सिया सीधा अपने कमरे में चली जाती है और बेड पर बैठ कर रोने लगती है । तभी कमरे में सिया की मां सविता ये कहते हुए दाखिल होती है " क्या बात है सिया आज तेरे चेहरे पर ये मायूसी..... कहते कहते उनकी नजर सिया पर जाती है जो घुटने पर सिर रख कर सुबक रही थी।"
सिर पर हाथ फेरते हुए सविता जी कहती है " क्या हो गया मेरा बच्चा रो क्यों रही है......?? किसी ने कुछ कहा क्या......?? फिर अपनी साड़ी के पल्लू से सिया के आंसू पोंछते हुए चुप कराती है । थोड़ी शांत होने के बाद सिया गुस्से से कहती है " मम्मा मैं कल से फिजिक्स क्लास करने सिन्हा सर के वहां नहीं जाऊंगी.....??
पर क्यों बेटा....?? ऐसे बीच समय में क्लासेस छोड़ देगी तो तेरा ही नुकसान होगा न......?? तू समझ रही है सिया मैं क्या कह रही हूं ।
हां मम्मा पता है मुझे....!! पर मैं कल से सिन्हा सर के यहां नहीं जाऊंगी तो नहीं जाऊंगी......!! गुस्से से चिल्लाते हुए सिया कहती है ।
सिया की गुस्से से भरी आवाज को सुनकर सबिता जी के मन में कुछ संदेह होने लगता है फिर वो प्यार से सिया का हाथ पकड़ कर कहती है " क्या बात है बेटा बता ना क्या छुपा रही है अपनी मां से अपने दिल की बात नहीं बताएगी "........?? इससे पहले तो आज तक तूने ऐसे किसी भी सर के बारे में ऐसा नहीं कहा पर आज तेरी बातों में ये नाराजगी झलक रही है । कुछ बताएगी तभी तो मैं भी कुछ मदद कर पाऊंगी न.......!!
सोलह साल की सिया जो अभी ग्यारहवीं में साइंस की स्टूडेंट है और फिजिक्स की कोचिंग क्लास विनोद सिन्हा के यहां करती थी । ऐसे तो ग्रुप में टोटल दस लड़के लड़कियां थी जो वहां पढ़ती थी पर कुछ दिनों से सिन्हा सर सिया को क्लास खत्म होने के बाद कुछ देर रुकने कहते है एक्स्ट्रा क्लास के नाम पर.....!! उस क्लास के नाम पर अकेले में सिन्हा सर सिया के बदन को बहाने से छुआ करते थे जिसे सहन कर पाना सिया के लिए मुश्किल हो रहा था......!!
जिसके कारण वो पूरे समय डरी सहमी सी रहती थी । कई बार तो सिया ने क्लास ही छोड़ दिया पर दो दिन पहले जब सिया के पापा सुमित ने सिया को डांटते हुए ये कहा कि " सिन्हा सर का कॉल आया था ।। तुम कुछ दिनों से कोचिंग सेंटर नहीं जा रही हो......!! सिन्हा सर ने सुमित को बहुत आसानी से अपने पक्ष में कर लिया ये कहकर की " अगर ऐसे ही रहा तो रिजल्ट खराब हो जायेगा....!! फिर मुझ पर ब्लेम मत कीजिएगा .......!!
ये सारी बात सिया गुस्से से तिलमिलाई हुई अपनी मां सविता जी से कह रही थी । सिया की बात सुन सविता जी का खून खौल उठा । " वो चाहती तो अभी जाकर अपने बच्ची के साथ हुए शोषण का तुरंत बदला ले सकती थी पर वो ये कतई नहीं चाहती थी कि सिया को हर बार उसकी मां की सहायता की आवश्यकता पड़े इसलिए उन्होंने सिया को कहा कि " कल तुम पूरे निडर निर्भीक मन से सिन्हा सर के यहां जाएगी और अपनी लड़ाई अपने दम पर जीत कर आएगी......!!
" अपने डर को अपनी ताकत बनाओ और उसे हथियार की तरह इस्तेमाल करो....."!! आज के जमाने में दस तरीके हैं किसी के कुकर्म को उजागर करने के लिए । फिर सिया को उसका मोबाइल हाथ में थमाते हुए कहती है " ये है तुम्हारे डर पर जीत पाने का तरीका।" कल तुम अपने मोबाइल पर सिन्हा सर के करतूत का वीडियो बना लेना और उसे वायरल कर देना । देखना कैसे उनका डर उनके चेहरे पर दिखता है......!!
" तब देखना मजा बेटा पब्लिक कैसे उन्हे जूते मारती है....."!! तब धरी की धरी रह जायेंगी उनकी डिग्रियां और उनका ज्ञान जिसका उन्हें घमंड है......।। सविता जी की बात सुन सिया के चेहरे पर आत्मविश्वास की रेखा खींच जाती है । वो अगली सुबह पूरे आत्मविश्वास के साथ उठती है और तैयार होकर सिन्हा सर के क्लासेस जाती है ।
" सिया ठीक वैसा ही करती है जैसा सविता ने बताया था । जैसे ही सिन्हा सर सिया के कंधे पर हाथ फेरता है वैसे ही सिया उठकर एक तमाचा गाल पर खींच देती है और चुपके से रिकॉर्ड किया हुआ वीडियो जो अभी तक शेयर हो चुका था उसे सिन्हा सर के सामने दिखाते हुए कहती है " हम लड़कियां कमजोर नहीं है जरूरत है तो सिर्फ अपने ताकत को दिखाने की जो मैंने कर दिखाया.......!!
" आप गुरु के नाम पर धब्बा है......!! आपने गुरु शिष्य के पवित्र बंधन को बदनाम कर दिया है । अब आपकी सजा यही है कि आप जिस ताकत के बल पर मासूम लड़कियों को अपना शिकार बनाते थे वो सिर्फ नाम की ही रह जायेगी क्यूंकि इस वीडियो को देखने के बाद कोई माता पिता अपनी बेटियों को यहां पढ़ने नहीं भेजेंगे.....!! ऐसा कहकर सिया बड़े शान से अपना बैग उठती है और बाहर निकल जाती है.......!!
प्रिय पाठकों गुरु और शिष्य का रिश्ता बहुत बड़ा होता है तभी तो गुरु को गोविंद से श्रेष्ठ माना गया है ।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
गुरू और गोबिंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
पर इंसान की गलत दृष्टि की वजह से इस पवित्र बंधन को भी शर्मशार कर दिया है ।
इस कहानी के माध्यम से आप लोगों के समक्ष सिर्फ अपने विचारों को रख रही हूं । मेरा मकसद किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है । ये रचना पूरी तरह से मेरी लिखी हुई है ।
