राहों में उनसे मुलाकात हो गई
राहों में उनसे मुलाकात हो गई
जल्दी चलो बेटा ईशा..... नहीं तो ट्रेन छूट जायेगी.....आती हूं मम्मा बस टू मिनिट्स.....अपनी तोतली आवाज में ईशा बोलते हुए अपने हाथों में पापा की दी हुई गुड़िया लेकर घर से बाहर आती है !! नैना जल्दी से घर का दरवाजा बंद करती है और दोनों मां बेटी रिक्शा पर बैठ जाते है। रिक्शा वाला भी अपनी तेज गतियों से स्टेशन की तरफ भागता है।
शाम सात बजे की कोलकाता से दिल्ली तक की ट्रेन थी। रिक्शे वाले ने ठीक पंद्रह मिनट में उन्हे स्टेशन पर पहुंचा दिया। फटाफट रिक्शे से उतर कर नैना ईशा का हाथ पकड़ कर ट्रेन की तरफ भागी क्योंकि ट्रेन खुलने में मात्र पंद्रह मिनट ही बच गए थे। किसी तरह भाग भाग कर नैना अपने सीट पर बैठ पाई। उसके बैठते ही ट्रेन खुल गई। तब जाकर नैना के सांस में सांस आई।
अब जब उसकी नजर अगल बगल पर पड़ी तो सभी के सभी पुरुष थे। सभी पुरुषों को देखकर नैना थोड़ी सहम सी गई क्यूंकि नैना अपनी तीन साल की बेटी के साथ ट्रेन से पहली बार अकेली सफर कर रही थी। उसे कुछ अंदाजा भी नहीं था ट्रेन के सफर के बारे में पर इन सब बातों से ध्यान हटा कर उसने अपनी बेटी पर ध्यान केंद्रित किया और खिरकियो के सहारे टिक कर बैठ गई।
तभी रेलगाड़ी के रुकने का एहसास हुआ। उसने मन ही मन सोचा अभी अभी तो ट्रेन का चलना शुरू हुआ था और अभी तुरंत ट्रेन एक स्टेशन पर आकर रुक भी गई। मुश्किल से पांच मिनट का हाल्ट था फिर रेलगाड़ी पटरियों पर दौड़ने लगी। एक तो सर्दी की रात उस पर से बाहर घोर अंधेरा था और ईशा भी नैना की गोद में सो चुकी थी। तभी नैना की नजर सामने बैठे एक आदमी पर पड़ी जो चुपचाप नैना और ईशा को रहा था।
उस अजनबी को यूं देखते देख नैना थोड़ी असहज महसूस करने लगी। रात भी अपनी गति से बढ़ रही थी। नैना को असहज देख कर उस अजनबी ने कहा " देखिए आप बेफिक्र रहिए " एक काम कीजिए आप और आपकी बेटी आराम से सो जाइए मैं हूं ना आपकी सुरक्षा के लिए....." !! उस अजनबी की आवाज सुन नैना पल भर के लिए सोच में पड़ गई और उसे ऐसा लगने लगा मानो ये आवाज कुछ जानी पहचानी सी है......!!
दिमाग पर जोर डालने के बाद नैना को निहाल की याद आ जाती है जिससे कभी वो प्रेम करती थी पर वक्त और परिस्थिति ने उन्हें मिलने नही दिया। नैना सोचते सोचते उस अजनबी को बड़े गौर से देखने लगती है फिर नैना कहती है " आपकी आवाज कुछ जानी पहचानी सी लगती है क्या आप.......?? कह कर अपने शब्दों को रोक लेती है।
नैना की ढूंढती आंखों ने शायद निहाल को ढूंढ लिया था पर शक्ल से बिल्कुल अगल दिखने की वजह से वो थोड़ी कन्फ्यूज हो जाती है। निहाल को देखे भी तो करीब बारह साल हो चुके थे। एक लंबा अरसा बीत चुका था नैना और निहाल के दरमिया। अपनी उधरबुन में उलझी ही हुई थी नैना की निहाल कहता है " हां नैना मैं वही हूं जो तुम्हारी आंखें देखना चाहती है , मैं निहाल ही हूं......"!!
" मैं निहाल ही हूं सुनकर जैसा नैना की सांसें क्षण भर के लिए जोर जोर से धड़कने लगा "........! बहुत चाहते थे दोनों एक दूसरे को पर इनके लिए अपनी चाहत से बड़ी थी परिवार का सम्मान , इज्जत। जिसकी वजह से इनका प्यार अधूरा रह गया। क्या हुआ नैना तुम चुप क्यों हो गई....? कुछ कहोगी नही.....?? पूछोगी नही कुछ भी ......?? निहाल नैना की खामोशी देखकर कहता है।
हां सवाल तो बहुत हैं पर उन सवालों का अब क्या फायदा निहाल .......! बीते हुए कल को कुरेदने से अच्छा है हम अपने आज के बारे में जाने.....! फिर नैना कहती है " तुम कितने बदल गए निहाल मैने तो बिलकुल ही नहीं पहचाना तुम्हें पर तुमने कैसे मुझे पहचान लिया......??
" तुम बिलकुल नहीं बदली नैना " !! बिल्कुल वैसी की वैसी ही हो। और सुनाओ नैना कहां जा रही थी और ये तुम्हारी बेटी है.....??
अच्छा.....कहकर नैना अपने बातें को आगे बढाती है। हां निहाल ये मेरी बेटी हैं ईशा और मैं अपने पति से मिलने दिल्ली जा रही हूं। फिर एक क्षण रुक कर नैना कहती है " पर निहाल तुम यहां कैसे.....? और तुमने ये नही बताया कि तुमने मुझे पहचाना कैसे......??
" मैंने कहा न नैना तुम बिलकुल नहीं बदली ".....बिल्कुल वैसी ही हो जैसा तुम्हारा रूप मेरी आंखों में छपा हुआ है !! तुम आज भी उतनी ही खूबसूरत हो नैना.....!! आहिस्ता आहिस्ता निहाल नैना को बोल रहा था ताकि दूसरे लोगों को कोई परेशानी न हो। आधे लोग तो सो भी चुके थे।
अच्छा रहने भी दो अब निहाल अब मैं वो नैना नही हूं जो तुम्हारी आंखों में बसती थी। अब मैं किसी और की महबूबा हूं। बात को काटते हुए नैना जवाब देती है। अच्छा चलो अभी बताओ तुम अचानक यहां कैसे आ गए.....??
दरअसल मैं अपने घर जा रहा था। कुछ दिनों की छुट्टी मिली थी। हम करीब दस आर्मी के जवान एक साथ एक ही ट्रेन से सफर कर रहे थे। तभी हमारी ट्रेन पिछले स्टेशन पर रुकी हुई थी। मैं ताजी हवा खाने नीचे उतरा हुआ था तभी मेरी नज़र तुम पर पड़ी। मैने देखते ही तुम्हे पहचान गया और अपने दोस्तों के हवाले अपना सामान छोड़ कर मैं इस ट्रेन पर चढ़ गया और जब आकर देखा तो तुम अकेली बच्ची के साथ दिखी तो मेरी चिंता बढ़ गई इसलिए मैं तुम दोनों की सुरक्षा के लिए यहां बैठ गया।
फिर निहाल अपनी बातों को आगे बढ़ाता है " माना हमारा प्यार मुक्मबल नही हुआ पर एक आर्मी ऑफिसर के हिसाब से मेरा दायित्व बनता है की तुम्हे सही सलामत तुम्हारे गंतव्य पर पहुंचना......!! और ये भी जरूरी नहीं है नैना की प्यार में हर चीज मिल ही जाएं कुछ प्यार खोकर भी संभाला जा सकता है।
निहाल की बड़ी बड़ी बातें सुन नैना उसकी बातों में कहीं गुम हो गई थी। आज भी निहाल की बातों में वो जादू है जिसका नशा नैना को बहुत सालों तक था पर वक्त ने निश्चल को उसकी जिंदगी में भेज कर पूरी कर दिया था। पूरी रात यूं ही बातों बातों में कट गई। कुछ निहाल ने कहा कुछ नैना ने कहा.....!!
ट्रेन में एक दूसरे को मिलाकर उनके अधूरे प्यार की सिसकियों को पूरा कर दिया। ये प्रेम तन का नहीं था अपितु मन और आत्मा का था जिसे निहाल ने आज तक संभाल कर रखा था और नैना अपने प्रेम के अगले पड़ाव पर निश्चल के साथ तय कर रही थी। दोपहर तीन बजे ट्रेन अपने गंतव्य पर पहुंच गई और निहाल नैना को सुरक्षित उसके पति के हवाले कर अपने पथ पर वापस लौट गया।
इस कहानी के माध्यम से आप लोगों के समक्ष सिर्फ अपने विचारों को रख रही हूं। मेरा मकसद किसी की भावनाओं को आहत करना नही है। ये रचना पूरी तरह से मेरी लिखी हुई है।
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