कुछ नहीं बदला हम आज भी वही हैं
कुछ नहीं बदला हम आज भी वही हैं
"कुछ नहीं बदला हम आज भी वही है जहां कल थे । औरतों की स्थिति आज भी उपेक्षित है चाहे वो हाउसवाइफ हो या होममेकर । पुरुषों और घर वालों की मानसिकता नही बदल सकती है वो अपना रंग दिखाते ही है । आज मैं ये अच्छे से समझ गई.....".रोते हुए सुलभा अपनी खास सहेली नालिनी को बोल रही थी ।
"चुप हो जा सुलभा चुप हो जा ...... तू उन लोगों के लिए रो रही है जिन्हे तुम्हारी कद्र ही नहीं है । मुझे पता है सुलभा तुमने अपनी जिंदगी में कितने समझौते किए हैं । तूने अपनी अच्छी खासी नौकरी को छोड़ कर सचिन से शादी की उसकी शर्तो पर यहां तक की दिन से रात तक तू सचिन के घर को घर बनाती रही । उसके माता पिता को अपनी माता पिता मानकर उनकी देख रेख की और आज तुझे ही थक्के मारकर बाहर निकल दिया ।"
"ऐसे लोगों को बिलकुल नहीं छोड़ना चाहिए सुलभा....! तुझे इनके ऊपर घरेलू हिंसा का केस दर्ज करना चाहिए ताकि इन्हें भी तेरी ताकत का पता चल सके । तू अपना हक बिल्कुल मत छोड़ना । तूने अपनी जिंदगी के दस साल दिए हैं । एक एक दिन का हिसाब गिन गिन कर लेना । समझी या नही समझी या सिर्फ उनके लिए आंसुएं ही बहाती रहेगी ।"
"मुझे अभी कुछ समझ नहीं आ रहा नलिनी मैं क्या करूं , कहां जाऊं । मैं बिल्कुल पंगु हो गई हूं । दिमाग बिल्कुल शून्य है मेरा । मेरे बच्चे उसे भी मुझसे छीन लिए गए । मैं क्या करूं ....." और फिर फफक फफक कर रोने लगी सुलभा ।
सीने से लगा कर चुप कराती है नलिनी और कहती है मेरी एक सहेली है वो वकील हैं । हम आज ही उनसे मिलेंगे और कानूनी कार्रवाई करके तुम्हारे बच्चे और तुम्हारा हक दिलवाएंगे। अब तू जल्दी से फ्रेस हो जा और खाना खा लेना तब तक मैं ऑफिस से आती हूं......ऐसा कहकर नलिनी अपने ऑफिस के लिए निकल जाती है ।
सुलभा अभी भी अपनी यादों में उलझी हुई थी और अपने अतीत की यादों को याद कर रही थी । कितना प्यारा था हमारा परिवार और खास कर सचिन । कितना प्यार करता था वो तभी तो मां बाबा को मनाकर सचिन से शादी की थी वो भी उनके शर्तो पर पर शादी के बाद धीरे धीरे सचिन का असली रूप सामने आने लगा ।
पति के रूप में छिपे भेड़िए का रूप तो उस दिन दिखने लगा जब सचिन शराब पीकर जबरदस्ती संबंध बनाने की जिद्द करने लगा और तब जब मैं दूसरी बार मां बनने वाली थी और जब मैंने विरोध किया तो उसने कितना पीटा था मुझे । आज भी उस पल को याद करके मेरे रोम रोम सिहर जाते है । पता नहीं ये पुरुष वर्ग क्यों नहीं समझते औरतों को । सिर्फ अपने सुखों से सुखी रह सकते है ऐसे लोग.....!
उसके बाद तो हर दिन का यही सिलसिला हो गया । मार पीट , गली गलौज जीना दुश्वार हो गया था । हर रात मैने उसके भेड़िए पन को झेला है ।
मैंने उस आदमी के लिए अपने सपनों को कुर्बान कर दिया जिसे सिर्फ अपनी खुशी का ध्यान हो । सचिन ने ही शादी से पहले शर्त रखी थी कि मैं पूरी तरह से उसका घर संभालूंगी वो भी एक अच्छी होममेकर बनकर । किया मैंने वो सब जो सचिन चाहता था पर बदले में क्या मिला मानसिक तनाव , शारीरिक उत्पीड़न.....?
कितना समझया था बाबा ने की ऐसी शर्तो पर शादी मत कर पर मैं उमकी एक ना सुनी और सजा भुगत रही हूं । आखिर प्यार जो था तो शादी तो करनी ही पड़ेगी । अच्छा हुआ आज मां बाबा नही है इस दुनिया में वरना उन्हे कितना दुख होता ये सब देखकर ........! फिर सुलभा अपने बच्चे को याद करते करते सो जाती है । शाम को नलिनी घर आती है और उसे कहती है जल्दी तैयार हो जा हम अभी लॉयर मोनिका के पास चलेंगे । फिर दोनों मोनिका से मिलने जाती है ।
मोनिका सुलभा की शुरू से अंत तक की कहानी सुनती है और सचिन के खिलाफ केस दर्ज करने कहती है । सचिन के खिलाफ मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का मामला दर्ज किया जाता है । फैमिली कोर्ट में कुछ दिन सुनवाई होती है और जज तलाक पर अपना ठप्पा लगा देते है । साथ ही दोनों बच्चों की कस्टडी सुलभा को दी जाती है और बच्चों के खर्चा पानी का जिम्मा भी सचिन को ही दिया जाता है । सचिन को हर्जाने के तौर पर दस लाख की रकम सुलभा को देनी पड़ी ।
सचिन से छुटकारा पाकर सुलभा आज कुछ आजाद महसूस कर रही थी । इतने वर्षो से जो घुटन थी वो अब खत्म हो चुकी थी । आज सही मायने में सुलभा अपने जीवन की एक नई शुरुआत करने वाली थी एक वर्किंग वुमन बनकर और एक अच्छी होममेकर बनकर वो भी अपने बलबूते.........!!
प्रिय पाठकों आज भी औरतें वही सब झेलती है जो पहले झेलती थी । कुछ नहीं बदला हाउसवाइफ हो या होममेकर औरतों की स्थिति जस की तस है । शब्दों का हेर फेर हैं बस और फर्क है तो बस इतना की आज औरतें खुद को आजाद करने में ज्यादा समय नहीं लगाती क्यूंकि अब औरतें पढ़ी लिखी हो गई है । उन्हे किसी पर डिपेंड रहने की कोई जरूरत नहीं होती ।
