तू फिर लौट के आ
तू फिर लौट के आ
अरे दिन तो ये कैसे भी कट ही जाते
मगर रातें कैसे भी कटती नहीं हैं,
खुशी की खिली धूप जब छांव बनती
घटाएं ग़मों की ये छंटती नहीं हैं।
तुम्हें भूल जाने की कोशिश बहुत की
मगर तुम हमें हर घड़ी याद आये,
बहुत दिन गुजारे हैं हमने तेरे बिन
मगर याद तो जाने के बाद आये
लकड़ियाँ हैं गीली सुलगती नहीं हैं
घटाएं ग़मों की ये छंटती नहीं हैं।
था सोचा ये कब तुमको होगा यों जाना
बना लोगे तुम बादलों में ठिकाना ,
अगर हो सके तो सनम ! लौट आना
हमारे लिए फूल बन मुस्कुराना
अधर काँपते हैं हँसी ही नहीं है
तू फिर लौट आये ये मुमकिन नहीं है,
हमें चैन साथी ! तेरे बिन नहीं है
अगर हो सके तो तू फिर लौट के आ,
तू फिर लौट के आ तू फिर लौट के आ।