डॉ. रंजना वर्मा

Inspirational

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डॉ. रंजना वर्मा

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अशोक के फूल

अशोक के फूल

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सूरज बालकनी पर खड़े होकर अपनी छोटी सी वाटिका को निहार रहे थे । बड़े यत्न से उन्होंने वर्षों पहले वाटिका में किनारे-किनारे अशोक के पौधे लगाए थे जो अब बढ़ कर घने वृक्ष बन चुके थे ।

उनके हृदय में एक दिन पूर्व अपने पोते द्वारा पूछा गया प्रश्न दंश दे रहा था । पिछली सन्ध्या सदा की भांति व अशोक के वृक्ष के निकट कुर्सी डालें उसकी पत्तियों को छूकर आने वाली पवन का आनंद ले रहे थे जब अचानक उनके पोते बबलू ने पूछ लिया था -

"दादाजी ! इन अशोक के पेड़ों पर फूल कब आएंगे ?"

"इन पर फूल नहीं आएंगे बेटे !"

गंभीर भाव से कहा था उन्होंने ।

"क्यों दादा जी ? उधर वे गुलमोहर, गेंदा चंपा, बेला सभी तो समय-समय पर फूलते रहते हैं फिर अशोक में भी तो फूल आने चाहिए । आज मैम एक किताब दिखा रही थीं जिसमें अशोक की पत्तियों के बीच बीच में लाल रंग के फूल झलक रहे थे । फिर हमारे अशोक के पेड़ों पर फूल क्यों नहीं आते ?"

"क्या पढ़ा रही थी तुम्हारी मैम ?"

सूरज ने यूं ही पूछ लिया ।

"वो मदनोत्सव के विषय में पढ़ा रही थीं । बता रही थीं कि मदनोत्सव में अशोक के वृक्षों की पूजा की जाती थी और फिर कुमारी कन्याएं उस पर अपने पैरों से आघात करती थीं जिससे अशोक पर फूल आ जाते थे ।"

"ओह !"

"हमें भी मदनोत्सव मनाना चाहिए दादा जी !"

"उस से क्या होगा ?"

"मदनोत्सव की पूजा के बाद जब कुमारी कन्या अशोक के तने पर पैरों में आलता लगा कर आघात करेगी तब हमारे अशोक वृक्षों में भी सुंदर फूल खिलेंगे ।"

"ठीक कह रहे हो बेटे ! लेकिन हम कुमारी कन्याएँ कहां से लाएंगे ? यहाँ हमारे घर में और आस पास के घरों में ही क्या पूरे गांव में भी कोई कुमारी कन्या नहीं है । दो एक कन्याएं थी भी तो वे ब्याह कर ससुराल चली गयीं ।"

"ऐसा क्यों है दादा जी "

"क्योंकि.... क्योंकि हमने उन्हें आने ही नहीं दिया । कन्या का जन्म होने देते, जन्म होने पर उन्हें पालते तब न ! हमारी कुंठित सोच ने, हमारी निंदनीय विचारधारा ने कभी कन्या - संतान का स्वागत नहीं करने दिया हमें । कन्या को बोझ समझते रहे हम इसीलिए उसके आगमन में रोड़े अटकाते रहे । इसीलिए.... इसीलिए तो हमारे यहाँ अशोक के पेड़ों पर फूल नहीं आते ।...."

न जाने क्या क्या कहते रहे थे सूरज और उनका पोता उनकी किसी बात का मर्म न समझ पाने के कारण अवाक खड़ा उनका मुख देखता रहा था ।

आज अशोक के वृक्षों की प्रत्येक डाली, प्रत्येक पत्ती मानो उनसे पूछ रही थी -

"हमें पुष्पित क्यों नहीं होने देते तुम ?"


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