ज़िंदाबाद
ज़िंदाबाद
सलीम दूध का पैकेट लेकर घर जा रहा था तभी चौराहे पर भीड़ लगी हुई देख कर उसके कदम ठिठक गये । सभी लोग सहमे हुए थे । कोई कुछ भी बोल नहीं रहा था और सबके बीच में एक तालिबानी सैनिक एक महिला को बुरी तरह पीट रहा था ।
महिला बुर्के में थी तथा उसके शरीर का कोई भी अंग बाहर दिखाई नहीं दे रहा था । कोड़ों की मार पर वह हर बार तड़प उठती थी परंतु उसकी दबी दबी चीखों को सुनने वाला कोई नहीं था । सब लोग उस महिला को आतंकित होकर पिटते हुए देख रहे थे ।
तभी एक आदमी वहाँ से दौड़ता हुआ गया और एक वृद्ध को घसीट कर खींच लाया । वह बुरी तरह चीख रहा था । यह देख कर सलीम सहम उठा । वह तो उसके अब्बाजान थे । तो क्या पिटने वाली .... हाँ... यह उसकी अम्मी थी जिसे तालिबानी सैनिक बुरी तरह पीट रहे थे ।
उसके पिता को उसके करीब पटकते हुए उसने कहा -"हरामजादे ! क्या अपनी बीवी को अपने काबू में नहीं रख सकता ? अकेली घर से बाहर जा रही थी ।"
"वह मेरे लिए दवा लेने जा रही थी ।"
सलीम का अब्बा चिल्लाया परंतु तब तक आतंकवादी तालिबानी सैनिक उसके ऊपर टूट पड़े और उसे जूतों से बुरी तरह धुन दिया ।
सलीम को ध्यान आया । उसका पिता पिछले बीस दिनों से बुखार में पड़ा हुआ था । खाना न खा पाने के कारण शरीर कमजोर हो गया था और अब उसमें उठने की ताकत भी नहीं थी । उसी के लिए सलीम दूध लेने गया था । शायद इस बीच पिता की तबीयत ज्यादा खराब हो गयी होगी तभी उसकी अम्मी अकेली घर से किसी मदद के लिए निकली होगी और इन सिपाहियों ने उसे अकेली देख कर पकड़ लिया क्योंकि इनके कानून के अनुसार बिना किसी मर्द के कोई औरत घर से बाहर नहीं निकल सकती थी ।
कोड़ों की मार अब उसकी माँ के साथ-साथ पिता पर भी पड़ रही थी और वह कष्ट से तड़प रहा था । अब तो उसके मुख से चीखें भी नहीं निकल रही थीं । यही हाल माँ का था ।यह देख कर सलीम तड़प उठा । उसने लपक कर एक तालिबानी के हाथ से बंदूक छीन ली अगले ही क्षण उसकी गन गरज उठी -
तड़ तड़ तड़ तड़ ....
और देखते ही देखते उसके माँ बाप के शरीर गोलियों से छलनी हो गये । तालिबानी सैनिक चौंक पड़े । एक ने तड़प कर उसका हाथ पकड़ा -"कौन है बे ? क्या कर दिया तूने ?"
"इन्हें मर जाना चाहिए था । ये शरिया के हिसाब से नहीं चलते ।"सलीम जोर से बोला । यह सुन कर वह खुश हो गया । उसने उसकी पीठ पर ठोकते हुए कहा -
"शाबाश ! तू बिल्कुल हमारी तरह है । चल, आज से तू भी हमारे साथ ही रहना ।"
सलीम उनके साथ हो लिया । उसके निष्ठुर कारनामों से जल्दी ही वह उनका प्रिय हो गया ।
सलीम यद्यपि ऊपर से बहुत सामान्य तथा कठोर होने का अभिनय कर रहा था परंतु उसका मन रो रहा था । वह जानता था कि वे लोग उसके माता-पिता को जिंदा नहीं छोड़ेंगे इसलिए उसने उन्हें उनके कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए खुद ही मार दिया । अब वह अवसर की तलाश में था ।
ऐसे ही एक दिन ...
उनका विश्वासपात्र बनने के बाद वह अब उनके साथ बाहर निकलने लगा था और सड़कों पर गश्त देने जाने लगा था । दो दिन बीत चुके थे जब उसे अपनी इच्छानुसार अवसर मिल गया ।
उस समय वह तालिबानी सैनिकों की टुकड़ी के साथ था जिसमें लगभग बीस तालिबानी सैनिक थे ।वह उनके साथ निशानेबाजी का अभ्यास कर रहा था ।
"शाबाश !"
उनके नेता ने कहा -"बहुत अच्छे बच्चे ! ठीक है । अब तू उस उड़ती चिड़िया पर निशाना लगाने की कोशिश कर ।"
कह कर उसने उसके हाथ में गन थमा दी । सलीम ने एक बार गन को ऊपर करके चिड़िया का निशाना लिया । सबकी निगाहें उस उड़ती चिड़िया की तरफ थीं जब अचानक सलीम के गन का रुख मोड़ा और और एक बार फिर वातावरण गोलियों की आवाज़ से थर्रा उठा -
"तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ ......"
देखते ही देखते सारे तालिबानी सैनिक गोलियों से छलनी हो गये । उनको तो चीखने का भी समय नहीं मिला और बड़े संतोष से सलीम ने गन को उठा कर नारा लगाया -
"अफगानिस्तान जिंदाबाद !
मेरी धरती जिंदाबाद !
मेरा देश जिंदाबाद !"
तभी किसी गन की गोली अचानक आकर उसका सीना भेद गयी और वह अपनी प्यारी धरती की गोद में गिर कर हमेशा के लिए सो गया ।
