Vandanda Puntambekar

Romance

4.2  

Vandanda Puntambekar

Romance

तुम्हारे लिए

तुम्हारे लिए

6 mins
246



शनै-शनै उसके हौसले बढ़ने लगे। उसने अपने विचारों को पत्र में लिखकर अलमारी के दराज में रखे लिफाफे को निकालकर उसमें अपनी भावनाओं को मंत्राभिषिक्त कर अपने सीने से लगा लिया था। वह उस खत भेजने का साहस नहीं कर सका। अपने विचारों की कश्ती में बैठ अपने जीवन के अधूरे होते सपने को देख सोच रहा था। अधूरे शब्दों का प्यार कहीं अधूरा ना रह जाए। अपनी जीवन कश्ती को डूबता देख मन से लड़खड़ा ने लगा। किनारा शायद मेरी किस्मत में नहीं अधर में डूबती नैया देख अपना आत्मबल खोने लगा था। मन का अवसाद उसे रश्मि से धीरे-धीरे दूर करता जा रहा था। वह अपने मन में उठते वेग के ज्वार में उफन रहा था। बाहर से आती तेज हवाओं ने खिड़की की चटकनी लगाने पर मजबूर कर दिया। आज उसे रश्मि की बहुत याद सता रही थी। अकेलापन उसे किसी खामोश जगह इस शहर के शोरगुल से दूर किसी विरान जगह चले जाने को मचल रहा था। तभी मोबाइल की घंटी बज उठी। मन के ज्वार भाटे पर संयम का चापू बांधते हुए उसने देखा रश्मि का कॉल था। उसके दिल की धड़कनों का वेग धोकनी की तरह तेज हो गया। लगातार रिंग बज रही थी बमुश्किल अपने आपको संभालते हुए फोन उठाकर बोला -"हाय" उधर से आवाज आई इतनी देर क्यों लगाई फोन उठाने में....? रश्मि ने अपने वही अल्हड़ अंदाज में नाराजगी भरे स्वर में कहा। खुद पर संयम साधते हुए विकास बोला- "मैं वॉशरूम में था..।

 "सुनो... आज पापा मैं और मम्मी बाजार गए थे, तुम्हारे लिए ब्लू कलर का सूट पसंद किया है, मैंने व्हाट्सएप किया है, देख लेना।, "हां यार देखता हूं, थोड़ा पेट दर्द है, अभी थोड़ी देर में देखकर बताता हूं। 

उसकी और रश्मि की शादी की सारी तैयारियां लगभग हो चुकी थी। रश्मि और विकास का प्रेम परवान चढ़ शादी के पवित्र बंधन में बंधने जा रहा था। दोनों परिवारों के पारिवारिक संबंध आज रिश्तेदारी में बंधने जा रहे थे। बचपन से साथ रहे पड़ोसी आज एक परिवार होने जा रहे थे। विकास की जॉब बेंगलुरु में थी। आईटी कंपनी में अच्छे पैकेज की जॉब थी। उसका शादी की तैयारियां का उत्साह अब फीका पड़ चुका था। अपने बचपन के साथी को धोखा देना नहीं चाहता था। रश्मि का उत्साह देख वह बेचैन हो उठा अपने मन की पीर अपनी मां को बताना चाह रहा था। घर में बजने वाली शहनाई को रोकना चाह रहा था। लेकिन वह कैसे कहे यह समझ नहीं सका। अंदर ही अंदर वह घुटन महसूस कर रहा था। रश्मि के मासूम प्रेम को वह भूलना चाह रहा था। उसकी नजरों में वह अपने आपको गुनहगार महसूस कर रहा था। कल उसे घर के लिए रवाना होना था। बीस दिनों की छुट्टी उसे मिल चुकी थी। हनीमून पर जाने के सारे टिकट होटल सबकुछ बुक हो चुके थे। अचानक इस शादी को कैसे रोकूँ। इसी ऊहापोह में विकास का खुद के साथ द्वंद्व चल रहा था। अलमारी के ऊपर रखे सूटकेस को कुछ पल यूं ही निहार रहा था। तभी व्हाट्सएप की रिंगटोन बजी। रश्मि का वीडियो कॉल था शायद वह सूट दिखाना चाह रही थी। उसका चेहरा घबराहट से भर गया। उसने भागकर वॉश बेसिन में अपना सिर भीगो लिया बेंगलुरु की बेवजह होती बारिश ने आज उसका साथ दिया टावेल से अपना सिर को पूछते हुए उसने फोन उठाया। रश्मि के चेहरे पर शादी की खुशी का नूर अलग ही झलक रहा था। इसकी भोली मुस्कान देख वह भी कुछ पल के लिए अपना दर्द भूल मुस्कुरा उठा। "बोलो...,"अरे आ ही रहा हूं, और चार दिन की बात है, वहीं आकर देख लेता व्हाट्सएप पर दिखाने की अभी क्या जरूरत थी। शिकायत भरे लहजे में उसने कहा। "तुम भी ना...., "देखो यह मेरी रेड साड़ी के साथ मैच कर रहा है ना..। हम्म..! " यह क्या अभी नहाए हो...? इतनी रात बीमार पड़ना है क्या...। परवाह करते हुए रश्मि ने पूछा, "नहीं यार थोड़ा मार्केट में दूध लेने चला गया था, अचानक तेज बारिश शुरू हो गई घर आते-आते भीग गया। अपनी लाल हुई आंखों के दर्द को छुपाते हुए उसने कहा...। "ठीक है, दूध गर्म करके पी लेना, कल कितने बजे की ट्रेन है तुम्हारी, कहते हुए गहरी नजरों से रश्मि उसे देखने लगी। विकास आज उसे बहुत कुछ कहना चाह रहा था। लेकिन वह कह ना सका। सुनो.... "क्या हम..... कहते- कहते रुक गया।

 "बोलो ना..., क्या कहना चाह रहे थे। कुछ नहीं, मिल कर बताऊंगा कहते हुए उसने फोन काट दिया। अलमारी के दराज में रखा लिफाफा निकालकर वह उसे बार-बार देखने लगा। अचानक मन में एक निर्णय लेकर..। मैं रश्मि के साथ धोखा नहीं कर सकता। सोचते हुए उसने उन कागजों के बहुत सारे फोटो रश्मि को व्हाट्सएप कर दिए। रात के बारह बज चुके थे अचानक इतनी रात व्हाट्सएप पर इतने सारे मैसेज की आवाज सुन रश्मि की नींद खुल गई वह अपने आनेवाले स्वप्निल एहसासों में खोई थी। अंधेरे में विकास द्वारा भेजे गए मैसेज उसने अपनी घुँघली नज़रों से देख सोने की कोशिश करने लगी। अचानक उसके मस्तिष्क में उन तस्वीरों को देख कुछ बेचैनी सी महसूस हुई। उसने रूम की लाइट खोलकर विकास द्वारा भेजे गए मैसेज पढ़ें मैसेज को पढ़ते- पढ़ते मोबाइल उसके हाथों से छूटकर जमीन पर जा गिरा। उसमें विकास की कुछ रिपोर्ट थी। विकास के गाल ब्लेंडर में ट्यूमर था। रश्मि ने बेचैन हो उसे फोन लगाया। विकास की नींद तो अब कोसों दूर थी। उसने फोन उठाकर कहा- "प्लीज तुम अपना निर्णय बदल लो, रश्मि की गहरी आंखों में भी एक निर्णय था। उसे "प्यार" जैसे अधूरे शब्द को समझने के लिए उसे पूर्ण करने का निर्णय वह पहले ही ले चुकी थी। विकास से बोली- "प्यार साथ छोड़ने का नहीं साथ निभाने का नाम है। जो रिपोर्ट तुमने मुझे भेजी है, उसे अपने घरवालों को मत बताना। तुम्हें मेरी कसम है, मैं तुम्हारी हूं तुम्हारी ही रहूंगी। विकास ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की कि तुम्हारे सामने पूरी जिंदगी पड़ी है। बचपना छोड़ दो और अपना निर्णय बदल दो। रश्मि अपनी उम्मीद की रश्मियों को समेटकर विकास से बोली तुम मेरी जिम्मेदारी हो यदि यहीं बात शादी के पंद्रह दिनों के बाद मुझे मालूम पड़ती या तुम शादी के पंद्रह दिनों के बाद पेट दर्द होने पर रिपोर्ट करवाते तो क्या मैं तुम्हें छोड़कर जाती ... नहीं....न। एक नारी यदि किसी को दिल से अपनाती है, तो उसके लिए परिस्थितियां कोई मायने नहीं रखती। यह बात सिर्फ तुम्हारे और मेरे बीच रहनी चाहिए, मैं हमेशा तुम्हारे सुख-दुख में साथ हूं। वचन दो किसी को कुछ भी नहीं बताओगे। तुम्हारा साथ ही मेरी खुशी है, चाहे वह दिनों का महीनों का या साल का हो। मेरा यह जन्म अब सिर्फ तुम्हारे लिए है। उसके निर्णय से विकास को आशा के पंख मिले। मैं भी अपनी बची शेष जिंदगी रश्मि के साथ गुजारना चाहता था। आज उसके अरमानों की कश्ती को किनारा मिलता नजर आया।रश्मि के प्रति उसकी संवेदनाएं और भी गहरी हो गई। उसने देखा बातों-बातों में भोर की लालिमा खिड़की से नजर आने लगी। उसके जीवन में आई इस रश्मि की आशा की किरण उसके साहस और विश्वास से उसके अंतर्मन में एक आत्मबल प्रदान कर रही थी। वह सूटकेस निकालकर घर जाने की तैयारी करने लगा। आज उसके अरमानों के पंख अपनी शादी की शहनाई सुनने के लिए आतुर हो उठे।

  


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