Vandanda Puntambekar

Others

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शक के दायरे

शक के दायरे

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शानू की मां ने उसे आवाज लगाकर कहा, "सारा दिन किताबें फैलाकर बैठी रहती हो... और हाथ में मोबाइल चलाती हो या तो पढ़ लो या फिर मोबाइल चला लो।

मां के तानों में कहे शब्द शानू के अंतर्मन को घायल कर गए। मां आप भी ना...., ऑनलाइन वर्क चालू है, दोनों की जरूरत पड़ती है।आप तो कुछ भी....!कहते हुए गुस्से में न जाने क्या-क्या बड़बड़ाती हुई फोन पटककर बाथरूम में घुस गई।

 अब माँ की बातें शानू को जरा भी अच्छी नहीं लगती। जब भी देखो हमेशा मोबाइल को लेकर कुछ ना कुछ कड़वी बातें सुना देती है।

 निर्मला सोच रही थी कि सारा दिन बंद कमरे में रह कर कोई इतनी पढ़ाई करता है क्या!

 रात के दो-दो बजे तक जागना सुबह लेट दस ग्यारह बजे तक उठना तीन चार बजे नहाना यह आजकल की लड़कियों की यह दिनचर्या क्या आने वाले देश को एक मजबूत भविष्य दे सकती हैं।

हमने तो मां को सुबह पाँच बजे से ना जाने कितने काम करते देखा है। दूध धोने से कुएँ का पानी भरने तक उसके बाद हमने भी अपनी छोटी उम्र से माँ के साथ ढेरों काम कराएं ओर परिवार को भी समय के साथ संस्कार और अनुशासन देने में कोई कसर नहीं छोड़ी फिर भी...?

जैसे ही शानू ने कॉलेज में कदम क्या रखा उसकी तो दिनचर्या खानपान सब कुछ बदल गया दाल चावल पसंद करने वाली शानू आज मैगी पास्ता जैसी चीजों को अहमियत देने लगी।

देर रात जागना मोबाइल में कोड़ लगाकर रखना इन सब बातों को सोचते हुए निर्मला का मन बहुत व्यथित हो चला था। 

तभी अचानक किचन से कुछ गिरने की आवाज आई वह दौड़कर किचन की ओर भागी कान में ईयर फोन लगाकर शानू फ्रिज से फेंटा की बोतल निकाल कर ग्लास भरने लगी।

तभी ग्लास हाथ से छूट गया पूरे किचन में कांच के टुकड़े बिखर गए शानू ने माँ की और देख सॉरी कहा।

माँ ने उसे कहा कोई बात नहीं झाड़ू से इसे उठाकर इसे डस्टबिन में डाल दो। शानू माँ की बात को अनसुना कर अपने रूम में चली गई।

उसका पूरा कमरा कपड़ों ओर किताबों से तितर-बितर पड़ा था। उसे देखकर निर्मला बहुत ही बेचैन हो उठी।

 तभी घर की डोर बेल बजी दरवाजा खोला तो उसके दो पुरुष मित्रों को सामने देख मां की आंखें उन्हें इस तरह अचानक सामने देख चौड़ी हो गई।

शानू माँ की ओर देखकर बोली- "इट्स कूल मॉम, यह मेरे क्लासमेट है, मैंने ही इन्हें ग्रुप स्टडी के लिए बुलाया है।

 इस आधुनिक पढ़ाई और शानू के तेवर देख निर्मला ने उसके जल्दी हाथ पीले करने की सोचकर प्रवीण से बात की।

 प्रवीण और शानू ने बात सुनी तो घर में चार दिन महाभारत मची रही। आखिरकार निर्मला को बाप बेटी के सामने हथियार डालने पड़े।

शानू अपनी जिद पर अड़ी रही कहने लगी-"माँ अब आप मुझे आगे पाँच साल तक शादी-वादी के लिए प्रेशर नहीं करोगी, मुझे मेरा कैरियर बनाना है,आपकी तरह घरेलू औरत बनकर पुरुषों की दासी बंद घुट-घुट कर नहीं जीना है, आपका जमाना तो सिर्फ किचन और बच्चों तक की सीमित रहा, लेकिन आज दौर बदल चुका है,यदि हम अपने पैरों पर खड़े नहीं होंगे तो हमारी भी कोई इज्जत नहीं होगी, पहले कैरियर आजकल शादी-वादी तो सिर्फ एक फंक्शन बनकर रह गया है,यदि आपको मेहमानों को बुलाकर कुछ करवाना ही है तो आप अपनी एनिवर्सरी दो महीने बाद आने वाली है, तब आप अपने रिश्तेदारों को  

बुलाकर एक यादगार पार्टी दे देना, तुम्हें ऐसी फीलिंग आएगी कि घर में कोई बड़ा फंक्शन हुआ है।

निर्मला मौन बैठी शानू की सारी बातें सुन रही थी।

 उसके मन के शंकाओं का तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा था तभी निर्मला ने मौन तोड़ते हुए कहां- ठीक है, मैं तुम्हारी सारी बातों से सहमत हूं, लेकिन तुम अपने मोबाइल में कोड क्यों लगाती हो घर में तो कोई है नहीं जो तुम्हारा मोबाइल छुए, तुम अपना मोबाइल का कोड निकाल लो मुझे कोई आपत्ति नहीं। 

देर रात तक पढ़ाई सिर्फ पुस्तकों से करो घर में मोबाइल पर ईयर फोन लगाकर नहीं!

क्या तुम्हें मंजूर है, आखिर मां हूँ तुम्हारी, चिंता तो होगी ना, पापा को तुम्हारी दिनचर्या कहा मालूम है, वह तो सुबह निकल जाते हैं शाम को आते हैं।

 कहते हुए चाय का कप टेबल से उठाकर किचन में चली गई। शानू अब ऊहापोह में पड़ चुकी थी। कम पढ़ी-लिखी माँ को इन सब बातों से क्या लेना देना।

 माँ से नजरें चुराते हुए वह फोन पटक कर मुंह फुलाए कमरे में चली गई। 

आज उसे एहसास हो रहा था कि माँ ही है जो अंतर्मन के भावों को पहचान लेती हैं। शानू ने इस सब झंझटों से छूटने के लिए एक नया रास्ता खोज लिया नए फोर्स के जरिए दूसरे शहर में रहकर पढ़ने का।

पिता की स्वीकृति मिल चुकी थी लेकिन माँ की आंखें आज भी उसे जाने की अनुमति नहीं दे रही थी। अब उसे अपने और माँ के बीच शक के दायरे और बढ़ते नजर आ रहे थे। सुबह पापा से बोली-" पापा मुझे कहीं नहीं जाना, यहीं रहकर पढ़ाई करूंगी बेवजह माँ परेशान हो जाएगी, मैं माँ को अब और परेशान नहीं करना चाहती हूं। कहते हुए आज पहली बार वह किचन समेटने में माँ की मदद करने लगी। उसके इस बदलते रूप को देख माँ की आंखों में एक सुकून नजर आ रहा था। शानू भी माँ की भावनाओं की कद्र करते हुए। अपने ओर माँ के बीच आए इस शक के दायरे को कम होता देख मुस्कुरा उठी।

     


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