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Vandanda Puntambekar

Tragedy

4  

Vandanda Puntambekar

Tragedy

इंतजार

इंतजार

4 mins
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आज घर मे सुन्दर काण्ड का पाठ रखा गया था ।सभी स्वजन लोग हॉल में विराजमान थे ।नए घर की सुख शांति के लिए यह पाठ रखा गया था । सारे हॉल में लोगों का जमावड़ा मौजूद था ।तरह-तरह के भोग प्रसादी से भगवान की झांकी सजा रखी थी ।

अगरबत्तियों की खुशबु के गुबार से पूरा माहौल भक्तिमय हो रहा था ।तीन प्रहर बीत चुके थे ।लोगो को सतत आवाजाही लगी हुई थी । तभी नीरजा ने मंगलू को आवाज दी ।पहले तो उसने अनसुनी कर दी ।फिर आकर झल्लाकर बोला-""क्यो चिल्ला रही हो । । ।?,उधर मालकिन खड़े दम काम करवा रही हैं, हम तो सुबह से इधर-उधर भागते-भागते थक गए ।ऊपर से तुम्हारी भी सुने,में इंसान हू, भगवान नही।"नीरजा की आँखों मे नीरसता देख बोला,"जल्दी बोलो क्या काम है,अभी मालकिन ने देख लिया तो । हमारी तो नौकरी से छुट्टी हो जायेगी ।"

,"सुन कुछ खाने को ला दे!कल रात से कुछ खाया नही है,पेट मे चुहे कूद रहे हैं ।आलीशान कोठी के एक कमरे में खाट पर असाय पड़ी नीरजा बोली । । ।,

"अभी तो तुम्हे इन्तजार करना पड़ेगा,सब का खाना होने के बाद ही तुम्हे खाना मिलेगा ।"

,"अब और इंतजार नही हो रहा,थोड़ा सा ला दे,नही तो प्राण निकलने में देरी ना लगेगी,हाँफते हुए नीरजा बोली!,

"ठीक है तुम थोड़ा इंतजार करो ,हम मौका देखते ही तुम्हारी थाली लगा लाते हैं" ।कहते हुए मंगलू गमछे से हाथ पोछते हुए भागा ।मंगलू अपने काम मे मग्न था । लेकिन मन मे बार,बार नीरजा देवी का ख्याल सता रहा था ।पैसा हैं,रुतबा हैं, पर फिर भी खाने को तरसती बूढ़ी आँखे बार-बार उसे अपनी और खीच रही थी ।वह मौके की तलाश में था ।कि मालकिन की नजर हटते ही वह माँजी की थाली लगाए ।तभी मालकिन ने आवाज दी । ।,

"मंगलू मेहमानों का अच्छे से ख्याल रख,ध्यान रख,कुछ कम पड़े तो किचन से लाकर बर्तनों में भर दे,किसी चीज की कमी मत होने देना ,में अभी आई कहते हुए चढ़ावे में आए रुपयों को एकत्र कर अलमारी में रखने चली गई ।मंगलू ने मौका देखा और माँजी की थाली लगाकर कमरे की ओर जाने की सोच रहा था ।तभी उसके मन मे विचार आया कि यही मालकिन को पता चला तो खड़े-खड़े नौकरी दाव पर लग जायेगी ।वह नौकरी की चिंता छोड़ थाली लेकर वह माँजी के कमरे में गया वह थाली टेबल पर रख माँजी को बैठने लगा ।अचानक माँजी के निर्जीव शरीर को देख कॉप उठा ।थाली उठाकर भागते हुए ।मालकिन के पास पहुँचा ।घबराते पसीना पोछते ,हाँफते हुए बोला-"मालकिन माँजी तो चल बसी ।","क्या ? बिना पूछे तू माँजी के कमरे में क्यो गया । ।?,वह मंगलू पर दहाड़ उठी और भागकर माँजी के कमरे का दरवाजा बंद कर आई ।मंगलू अपने आँसुओ को छुपाता हुआ बोला-"मालिकन अब क्या । ।?,कुछ नही कार्यक्रम खत्म होने का इन्तजार करना पड़ेगा,तू चुपचाप अपना काम कर।"

मंगलू ने आव देखा न ताव वह चीख कर बोला,"जीते जी इंसानों की कद्र नही इस घर मे मरने पर तो सही समय पर मुक्ति दो,नही रहना मुझे इस घर में चीखते हुए बोल पड़ा,"मालकिन ने त्यौरियां चढ़ाते हुए उसे नौकरी से निकाल दिया।

मंगलू सोच रहा था ।कि पैसा बोलता है,गरीब की कौन सुनता है वह जानता था ।कि कल घर मे चुल्हा नही जलेगा ।क्योकि वह पहले ही एडवांस पर चल रहा था ।गरीब जो ठहरा!सही बात कहने पर नौकरी चली गई पर झूठ की नमक हलाली उसे पसन्द नही ।उसने माँजी की सात साल से सेवा की मगर कभी नमक हरामी नही की उसे आज फिर नई नौकरी का इंतजाम करना था ।वह माँजी के कमरे जाकर उन्हें सफेद चादर से ढककर प्रणाम कर उस घर से बिदा होकर नई नौकरी की तलाश में निकल पड़ा ।मालकिन उसकी स्वामी भक्ति और ईमानदारी को देख उसे रोकने का भरपूर प्रयास करने लगी ।और माँजी के कमरे की ओर सब काम छोड़कर भागी ।आज एक नौकर उसे इंसान बना गया था ।वह मंगलू के वापस आने का इंतजार करने लगी ।सास के पार्थिव शरीर के देख पछताने लगी ।कि उसने सास को भूख लगने पर भी खाना खाने का इंतजार करवाया ।भूख की तड़प उसे लील गई ।उसकी आँखों से पश्चाताप के आंसू बह निकले।




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